राजनीतिक गलियारों की साजिश, सत्ता का संघर्ष और एक महिला की अदम्य इच्छाशक्ति है ‘महारानी सीजन 4’ इन तीनों को एक बार फिर शानदार अंदाज में परोसता है। सोनीलिव पर रिलीज़ हुआ यह चौथा सीजन, पिछले तीनों सीजनों से ज्यादा परिपक्व, तीखा और रणनीतिक रूप से दिलचस्प है।
हुमा कुरैशी एक बार फिर रानी भारती के किरदार में लौट आई हैं, लेकिन इस बार वे पहले जैसी मासूम या अनजान नहीं हैं। अब वह अनुभवी नेता हैं, जिनके पास सत्ता के हर खेल की बारीकी का अनुभव है। बिहार की राजनीति अब केवल विपक्षी दलों तक सीमित नहीं है, बल्कि केंद्र की सत्ता से टकराने की हिम्मत भी रानी में आ चुकी है। चौथे सीजन की कहानी इसी संघर्ष को केंद्र में रखकर आगे बढ़ती है।
कहानी की शुरुआत होती है रानी भारती के दोबारा सत्ता में लौटने से। लेकिन यह वापसी सिर्फ कुर्सी की नहीं, बल्कि एक मिशन की भी है, अपने राज्य बिहार को राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और बाहरी हस्तक्षेप से बचाने का मिशन। इस बार रानी के साथ हैं उनके रणनीतिकार वीरेंद्र देव (विनीत कुमार सिंह) और भरोसेमंद सहयोगी विनोद सक्सेना (प्रमोद पाठक)। दोनों मिलकर सत्ता के इस खेल में रानी को आगे बढ़ाने की जद्दोजहद करते हैं।
प्रधानमंत्री से सीधी टक्कर लेने की तैयारी, पार्टी के भीतर गुटबाजी, विपक्ष की चालें और मीडिया के सवाल, रानी भारती को हर मोर्चे पर परीक्षा देनी पड़ती है। सीरीज का हर एपिसोड दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या राजनीति में नैतिकता और सत्ता एक साथ चल सकती है?
हुमा कुरैशी ने रानी भारती के किरदार को फिर से जीवंत कर दिया है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, संवाद अदायगी और चेहरे के भावों में सत्ता के अनुभव की परिपक्वता झलकती है। अमित सियाल का किरदार भी इस सीजन में गहराई लिए हुए है, जो रानी की राह में रोड़ा भी बनता है और कभी-कभी सहयोगी भी।
निर्देशक पुनीत प्रकाश ने इस बार कहानी को और धार दी है। स्क्रिप्ट मजबूत है, संवाद तीखे हैं और राजनीतिक घटनाक्रम यथार्थ के करीब लगता है। सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड स्कोर भी कहानी के मूड को और प्रभावी बनाता है। बिहार की राजनीति की गर्माहट और दिल्ली की चालाकी दोनों का मेल इस बार बखूबी दिखाया गया है।
‘महारानी 4’ सिर्फ एक वेब सीरीज नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति की जटिलता और सत्ता के बदलते समीकरणों की कहानी है। हुमा कुरैशी ने इस किरदार को और भी ऊँचाई दी है, और दर्शक उनके हर कदम पर तालियाँ बजाने को मजबूर हैं।
