बिहार में मतदान से उभरी - “नई राजनीतिक दिशा”

Jitendra Kumar Sinha
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“लोकतंत्र का उत्सव” यह वाक्य तब पूरी तरह सार्थक हो उठता है जब जनता सिर्फ मतदान नहीं करती है, बल्कि अपने वोट से भविष्य को नई दिशा देती है। 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव ने यही किया है। राज्य में रिकॉर्ड तोड़ मतदान, महिलाओं की अभूतपूर्व भागीदारी, युवाओं का उबाल, और जनता की राजनीतिक सजगता, सब कुछ मिलकर इस चुनाव को बिहार की राजनीति का सबसे उल्लेखनीय अध्याय बना दिया है।

एनडीए को मिले प्रचंड बहुमत ने यह संदेश दिया है कि मतदाता सिर्फ विकास की बातें सुनना नहीं चाहते, बल्कि उसके प्रमाण देखना चाहते हैं। दूसरी ओर, विपक्ष के लिए यह एक आत्ममंथन का अवसर छोड़ गया। पिछली बार तक जिन सामाजिक समीकरणों को ‘जादुई फार्मूला’ माना जाता था, वे इस बार पूरी तरह उलटते नजर आया। विशेष रूप से महिला मतदाताओं और युवाओं ने परिणामों को निर्णायक मोड़ दिया।

चुनाव आयोग के अनुसार, 2025 में जिस प्रकार का मतदान देखा गया, वह पिछले कई दशकों में कम ही हुआ था। कई क्षेत्रों में मतदान प्रतिशत 70% से ऊपर चला गया। ग्रामीण इलाकों में सुबह से ही मतदान केंद्रों पर लंबी कतारें थीं, जो दर्शाती हैं कि जनता इस बार उदासीन नहीं, बल्कि अत्यंत गंभीर थी।

मतदाताओं में खास उत्साह का कारण था चुनावी मुद्दों की स्पष्टता, सरकार के कार्यक्रमों की प्रत्यक्ष पहुंच, विरोधी दलों में स्पष्ट नेतृत्व का अभाव, युवाओं को पहली बार महसूस हुआ कि उनकी भागीदारी बदलाव ला सकती है, महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा। इन सबने मिलकर चुनाव को अभूतपूर्व बना दिया।

जहाँ कभी ‘MY’ यानि मुस्लिम + यादव समीकरण का राजनीतिक वर्चस्व था, वहीं इस चुनाव में ‘MY’ का नया अर्थ सामने आया महिला + युवा। एनडीए ने इस फैक्टर को सबसे बेहतर समझा और अपने चुनाव अभियान में इसे केंद्र में रखा।

2025 में महिला मतदाता संख्या कई क्षेत्रों में पुरुषों से भी अधिक रही। यह इसलिए हुआ, क्योंकि मुख्यमंत्री द्वारा महिलाओं के लिए योजनाओं का प्रभाव जमीनी स्तर पर दिखा। मुफ्त राशन, नल-जल, उज्ज्वला, विद्यालयों में साइकिल/स्कॉलरशिप ने जीवन बदल दिया। सुरक्षा और सम्मान के प्रश्नों पर महिलाओं ने निर्णायक वोट दिया। शिक्षा में बढ़ती भागीदारी ने महिलाओं को राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक बनाया। चुनाव के दौरान महिलाएँ सिर्फ देखने वाली नहीं थीं, बल्कि पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे आकर मतदान कर रही थी।

2025 में बड़ी संख्या में 18-25 आयु वर्ग के मतदाताओं ने पहली बार मतदान किया। यह नया वर्ग बेरोजगारी पर ज्यादा संवेदनशील है। सोशल मीडिया और डिजिटल बहसों से प्रभावित है। पारंपरिक जातीय राजनीति की बजाय विकास को तरजीह देता है। यही कारण रहा कि युवाओं का झुकाव उस पक्ष की ओर अधिक रहा जिसने 'रोजगार + विकास + स्थिर सरकार' का मजबूत संदेश दिया।

युवा अब यह मानकर चल रहा है कि राजनीति अवसर दे सकती है। शासन स्थिर हो तो रोजगार की स्थिति सुधरती है। तकनीकी शिक्षा, स्टार्टअप नीतियाँ और स्किल डेवलपमेंट उसके लिए आवश्यक हैं। एनडीए ने अपने घोषणापत्र और अभियान दोनों में युवाओं को केंद्र में रखा, जिसके परिणाम स्पष्ट रूप से वोट में दिखा।

एनडीए ने पिछले वर्षों में जिन योजनाओं को प्राथमिकता दी, वे सीधी जनता के जीवन से जुड़ी थी। जैसे सड़कों का तीव्र विस्तार, स्वास्थ्य केंद्रों में सुविधाएँ, स्कूल-कॉलेजों का उन्नयन, महिलाओं की सुरक्षा और प्रोत्साहन योजनाएँ, गरीबों के लिए आवास। इन योजनाओं का सीधा असर मतदान पर दिखा।

वहीं विपक्ष की सबसे बड़ी कमजोरी थी नेतृत्व पर एकमतता का अभाव, स्पष्ट एजेंडा की कमी, विकास बनाम जाति समीकरण के बीच फँस जाना, आंतरिक कलह और उलझनें। हालांकि आरजेडी ने 25 सीट जीतकर खुद को प्रमुख विपक्षी दल के रूप में स्थापित किया है, लेकिन यह संख्या भी जनता की नाराजगी दर्शाती है।

पिछले 30 वर्षों से बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन 2025 के चुनाव ने यह स्थापित कर दिया है कि अब जनता विकास, रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा और बेहतर शासन को प्राथमिकता दे रही है। यह बदलाव बिहार की राजनीतिक परिपक्वता दर्शाता है।

प्रचंड बहुमत से मिली जीत सिर्फ शक्ति नहीं, जिम्मेदारी भी देती है। जनता अब भ्रष्टाचार से मुक्त शासन, तेज गति से विकास, बेरोजगारी पर ठोस कार्य, अपराध पर सख्ती, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर तत्काल परिणाम चाहती है।

जब बहुमत बड़ा हो, तो अपेक्षाएँ भी उतनी ही विशाल होती हैं। अब यह देखने की उत्सुकता है कि सरकार गठन में कौन-कौन शामिल होते है? किसे मंत्री पद मिलता है और कितनी संख्या में? क्या एनडीए के सभी घटक दल मंत्रिमंडल का हिस्सा बनेंगे? यह फैक्टर आने वाले राजनीतिक समीकरण को तय करेगा।

आरजेडी बिहार के सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में उभरी है, लेकिन यह संख्या उसके लिए काफी कम है। यह उसके ‘पारंपरिक वोट बैंक’ के टूटने का संकेत है। अब सवाल है कि क्या पार्टी नेता प्रतिपक्ष चुनेगी? यह भी देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष अपनी भूमिका कितनी प्रभावी निभाता है।

कई दलों को अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इससे यह संकेत मिला है कि छोटे दलों की राजनीति अब कमजोर पड़ रही है। जनता राष्ट्रीय और बड़े क्षेत्रीय विकल्पों को प्राथमिकता दे रही है।

ग्रामीण इलाकों में सरकारी योजनाओं की बेहतर पहुंच, सड़क-संचार सुधार, कृषि और महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम ने मतदान को काफी प्रभावित किया है। शहरी क्षेत्रों में नौकरी, स्मार्ट सिटी योजनाएँ, यातायात सुधार, बिजली-पानी की स्थायी उपलब्धता जैसे मुद्दों ने समर्थन सुनिश्चित किया।

2025 का चुनाव सोशल मीडिया आधारित चुनाव भी कहा जा सकता है। युवा इस मंच पर सबसे अधिक सक्रिय थे। राजनीतिक संदेशों ने तेजी से पकड़ बनाई और प्रचार-युद्ध में डिजिटल मीडिया निर्णायक बना। मगर इसमें फेक न्यूज और अफवाहों की चुनौती भी रही, जिसे चुनाव आयोग और प्रशासन ने नियंत्रित किया।

सरकार को औद्योगिक निवेश, स्किल डेवलपमेंट, स्टार्टअप नीति और MSME को बढ़ावा देने पर तत्काल कार्रवाई करनी होगी। स्कूलों में शिक्षक संख्या बढ़ाना, कॉलेजों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का उन्नयन और जिला अस्पतालों की आधुनिक सुविधाएँ के क्षेत्र में जनता त्वरित सुधार चाहती है।

कानून-व्यवस्था बिहार की राजनीति में हमेशा मुद्दा रहा है। अब सरकार पर यह जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है कि अपराध, माफिया और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाए।

2025 के जनादेश ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिहार का मतदाता अब परिपक्व हो चुका है। भावनात्मक राजनीति के बजाय उसे परिणाम चाहिए। महिलाओं और युवाओं की भागीदारी राजनीति की दिशा बदल रही है और स्थिर सरकारों को जनता प्राथमिकता देती है। यह बदलाव आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीतिक संरचना को नई पहचान देगा।

2025 का बिहार चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं था, बल्कि एक सामाजिक-राजनीतिक क्रांति थी। जहाँ महिलाओं ने मजबूती से भाग लिया, वहीं युवाओं ने भविष्य के सपने लेकर मतदान किया। एनडीए की प्रचंड जीत यह संदेश देती है कि जनता विकास, स्थिरता, सुरक्षा और जवाबदेही को सर्वोपरि मानती है। 

अब देखना यह है कि सरकार अपने वादों को कितनी तेजी से पूरा करती है। मंत्रिमंडल में किसे स्थान मिलता है। एनडीए गठबंधन कितनी मजबूती से आगे बढ़ता है और विपक्ष कितनी प्रभावी भूमिका निभाता है बिहार आज बदलाव के मोड़ पर खड़ा है। जनता जागरूक है, राजनीतिक परिदृश्य नए सांचे में ढल चुका है, और भविष्य संभावनाओं से भरा है।



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