जिस भूमि को आर्यावर्त के प्राचीन ज्ञान, अध्यात्म और दर्शन का उद्गम स्थल माना जाता है, एक बार फिर सांस्कृतिक पुनर्जागरण के रास्ते पर बढ़ रही है। नालंदा, वैशाली, पाटलिपुत्र, विक्रमशिला से लेकर राजगीर तक, यह प्रदेश सदियों से आध्यात्मिकता और धर्म-साधना का केंद्र रहा है। यहाँ की मिट्टी में इतिहास का विस्तार भी है और भविष्य का बीज भी। इसी धरोहर को पुनः जीवंत करने की दिशा में “बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद” ने एक महत्वपूर्ण पहल की है कि “राज्य के सभी जिलों में सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए संयोजक नियुक्त किए जाएंगे।” यह निर्णय केवल प्रशासनिक कदम नहीं है। यह संस्कृति, अध्यात्म, परंपरा और सामाजिक मूल्यों का व्यापक पुनर्स्थापन है। यह उस धरोहर को पुनर्जीवित करने की पहल है, जो सदियों तक भारतीय समाज का पथ-प्रदर्शक रही है “सनातन धर्म”।
इस व्यापक योजना के तहत 38 जिलों में 38 संयोजक नियुक्त होंगे, जो पंजीकृत 2,499 मंदिरों और मठों के महंतों से मिलकर धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को सुदृढ़ करेंगे। यह प्रयास केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि जनजागरण, अध्यात्म-संस्कृति के प्रसार और सामाजिक उत्थान की एक बड़ी मुहिम है।
‘सनातन’ अर्थात जो नित्य है, जो शाश्वत है, जो कभी समाप्त नहीं होता है। सनातन धर्म केवल एक धार्मिक अवधारणा नहीं है, बल्कि मानव जीवन के हर पहलू से जुड़ा वह मार्ग है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य, मनुष्य के कर्तव्य, आचरण की मर्यादा, सभ्यता के शाश्वत मूल्य और जीवन की सर्वांगीण उन्नति का आधार है। आज के समय में सांस्कृतिक भ्रम, नैतिक मूल्यों का क्षरण, सामाजिक विभाजन और पश्चिमी संस्कृति के अंधानुकरण ने भारतीय पहचान को चुनौती दी है।
ऐसे समय में सनातन धर्म का पुनरुद्धार केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक पुनर्जागरण का मार्ग है। बिहार की पहचान केवल राजनीतिक नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक भी है। यहाँ योग-तंत्र साधना की परंपरा, शिव और शक्ति उपासना, सूर्य पूजा, ऋषि-मुनियों के आश्रम और प्राचीन मंदिरों-मठों की श्रृंखला, सनातन की गहरी जड़ों को दर्शाता है। इसलिए बिहार से उठी यह पहल राष्ट्रव्यापी सांस्कृतिक आंदोलन का सूत्रपात भी साबित हो सकता है।
“बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद” ने घोषणा की है कि 38 जिलों में 38 संयोजक नियुक्त होंगे। इन्हें संबंधित जिला के पंजीकृत मंदिरों और मठों के मुख्य महंतों में से ही चुना जाएगा। चयन प्रक्रिया 1–2 दिन में शुरू हो जाएगी। इन संयोजकों का मुख्य कार्य होगा मंदिरों की गतिविधियों का समन्वय, पूजा-पद्धति को सुव्यवस्थित करना, धार्मिक शिक्षाओं और मूल्यों का प्रचार, सामाजिक गतिविधियों को आगे बढ़ाना और सनातन परंपरा को जनसामान्य तक पहुँचाना।
राज्य में पंजीकृत धार्मिक संस्थानों की संख्या 2,499 है। यह सभी अब एक संगठित नेटवर्क बनकर कार्य करेंगे। यह प्रयास कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अगर हर मंदिर-मठ में रोज 100 लोग भी पहुँचते हैं, तो यह अभियान सीधा 2.5 लाख से अधिक लोगों तक प्रतिदिन पहुँचेगा। “बिहार धार्मिक न्यास परिषद” मंदिर/मठ की संपत्तियों का रिकॉर्ड रखती है, उनकी गतिविधियों की निगरानी करती है और अब सांस्कृतिक जिम्मेदारियाँ भी निभाएगी। यह एक सुसंगठित प्रशासनिक एव धार्मिक व्यवस्था का उत्कृष्ट उदाहरण है।
“बिहार धार्मिक न्यास परिषद” का निर्णय है कि हर पूर्णिमा को सत्यनारायण कथा और हर अमावस्या को भगवती पूजा, सभी पंजीकृत मंदिर-मठों में अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। इसके बड़े प्रभाव होंगे धार्मिक अनुशासन बढ़ेगा, लोग नियमित पूजा से जुड़ेंगे, समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलेगी, अध्यात्म और संस्कृति दोनों मजबूत होंगे।
संयोजकों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि लोग अपने घरों में भी सत्यनारायण कथा, भगवती पूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए प्रेरित हो। यह व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुशासन की ओर बड़ा कदम है। सनातन संस्कृति में ‘अखाड़े’ केवल व्यायाम स्थल नहीं है, बल्कि युवाओं को संस्कार देने, अनुशासन सिखाने और सामूहिक शक्ति निर्माण का माध्यम रहा है। “बिहार धार्मिक न्यास परिषद” चाहती है कि हर मंदिर-मठ में एक समर्पित अखाड़ा स्थल बनाया जाए। यह सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने की दूरदर्शी पहल है।
प्रत्येक संयोजक धार्मिक गुरु, सामाजिक नेता, सांस्कृतिक संरक्षक और जनजागरण कर्ता की भूमिका निभाएगा। यह दायित्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है, यह संपूर्ण समाज परिवर्तन का आधार है। भारत का हर त्योहार सामाजिक भागीदारी, सांस्कृतिक एकता, धार्मिक भावना और समुदायिक सद्भाव का प्रतीक है। “बिहार धार्मिक न्यास परिषद” का कहना है कि “हमारे त्योहार सद्भाव और सामुदायिक भागीदारी की जीवंत अभिव्यक्ति हैं।” यह केवल कथन नहीं है, बिहार की जीवन शैली का सार है।
भारत के प्रधानमंत्री द्वारा छठ पूजा को यूनेस्को की सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल कराने के प्रयास बिहार के इस त्योहार के वैश्विक महत्व को दर्शाता है। छठ पूजा सूर्य देव की आराधना, प्रकृति के प्रति आभार, शारीरिक शुचिता और सामुदायिक सहयोग का अनूठा पर्व है। धार्मिक न्यास परिषद का पहल बिहार की इसी विरासत को और मजबूत करती है।
राजगीर, भारत की आध्यात्मिक राजधानी से कम नहीं है। यहीं भगवान बुद्ध ने उपदेश दिया, जैन महावीर ने तपस्या की और अनेक हिन्दू परंपराओं की नींव रखी गई। यहाँ अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन बिहार की वैश्विक सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करेगा। सनातन धर्म के अध्ययन को विश्व पटल पर ले जाएगा। विदेशी शोधकर्ताओं और साधकों को आकर्षित करेगा और भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाएगा। इससे पर्यटन में वृद्धि, सांस्कृतिक एक्सचेंज प्रोग्राम, धार्मिक अध्ययन में नए आयाम, बिहार का अंतरराष्ट्रीय ब्रांड निर्माण और सनातन परंपराओं का वैश्विक दस्तावेजीकरण का लाभ होगा।
“बिहार धार्मिक न्यास परिषद” ने जो धार्मिक कैलेंडर जारी करने की घोषणा की है, उसमें सभी सनातन त्योहार, पूजा पद्धतियाँ, महत्वपूर्ण तिथियाँ, उपवास, संस्कार और धार्मिक गतिविधियों का विस्तृत उल्लेख होगा। यह कैलेंडर हर जिला के मंदिरों-मठों के माध्यम से लोगों तक पहुँचेगा। इसके तीन बड़े प्रभाव होंगे, लोग अपनी परंपराओं से अधिक जुड़ेंगे। त्योहारों की वैज्ञानिकता और महत्व समझेंगे। समाज में सांस्कृतिक एकरूपता बढ़ेगी।
वर्तमान समय में बदलती जीवनशैली, डिजिटल विचलन, परिवारों का टूटना, सामाजिक तनाव और नैतिक मूल्यों का क्षरण बड़ी समस्या बनकर उभरा है। ऐसे समय में सनातन धर्म की शिक्षाएँ विवेक, संतुलन, कर्तव्य, करुणा, और अनुशासन का मार्ग दिखायेगा। बिहार के युवा प्रतियोगी परीक्षाओं की दौड़, पलायन की मजबूरी, सामाजिक दबाव तथा सांस्कृतिक दूरी से गुजर रहे हैं। अगर वे अपने त्योहारों, परंपराओं, संस्कारों से जुड़ें, तो उनके मानसिक और सामाजिक व्यक्तित्व का विकास और समृद्ध होगा। सनातन धर्म विभाजन नहीं, एकता, सद्भाव और समरसता सिखाता है। मंदिर सामाजिक गतिविधियों के केंद्र बनकर समाज को जोड़ने का माध्यम बन सकता है।
“बिहार धार्मिक न्यास परिषद” के अध्यक्ष ने कहा है कि “मंदिरों और मठों को सामाजिक सुधार कार्यों में भी भाग लेना चाहिए।” शिक्षा, चिकित्सा, ऋण सहायता, अनाथ सहायता, संस्कार विद्यालय, विद्या और कला का संरक्षण, सब मंदिरों के ही माध्यम से होता था। संयोजक यह सुनिश्चित करेंगे कि मंदिर सामाजिक जनजागरण करें, युवाओं में संस्कार फैलाएं, महिलाओं को आध्यात्मिक शिक्षा दें, पर्यावरण संरक्षण अभियान चलाएं, स्थानीय कला-परंपरा को बचाएं, संस्कृत और हिन्दी भाषा प्रमोट करें और गरीबों के लिए सहयोग कार्यक्रम चलें, यह संपूर्ण सामाजिक उत्थान का मॉडल है।
आज बिहार की छवि राजनीति और माइग्रेशन तक सीमित मानी जाती है। हालाँकि, इसकी असल पहचान संस्कृति है। यह पहल बिहार को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र की पहचान वापस दिलाएगी। राजगीर, नालंदा, गया, वैशाली, पटना साहिब, देवघर (बिहार सीमा से जुड़ा) और सैकड़ों मंदिर-मठ विश्वभर के पर्यटकों को आकर्षित कर सकता है। धार्मिक कार्यक्रमों और कैलेंडर के कारण लाखों पर्यटक बिहार आएंगे।
नियमित पूजा-पाठ और धार्मिक गतिविधियाँ समाज को शांत, संतुलित और अनुशासित बनाती हैं। अखाड़ों और धार्मिक-नैतिक प्रशिक्षण से युवा शारीरिक रूप से मजबूत, मानसिक रूप से संतुलित और सांस्कृतिक रूप से जागरूक बनेंगे।
बिहार सरकार और धार्मिक न्यास परिषद की यह पहल केवल प्रशासनिक कदम नहीं है, बल्कि एक महाअभियान है, “सनातन पुनर्जागरण का”। इस योजना से मंदिरों की गतिविधियाँ संगठित होगी, समाज में अध्यात्म का प्रवाह बढ़ेगा, सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ें मजबूत होगी और बिहार भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनने की ओर बढ़ेगा। सनातन का स्वर बिहार से उठकर पूरे देश में गूंजेगा।
