बिहार ने चुना विकास, सुशासन और स्थिरता का मॉडल - एनडीए के लिए ‘MY फैक्टर’ बदला

Jitendra Kumar Sinha
0

 



बिहार ने 2025 के ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव में यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि राज्य की जनता अब पुराने सामाजिक समीकरणों और जाति-ध्रुवीकरण की राजनीति से ऊपर उठ चुकी है। वह विकास, रोजगार, कानून-व्यवस्था, स्थिरता और सुशासन को प्राथमिकता देने लगी है। इसी मानसिकता ने इस चुनाव में एनडीए को अप्रत्याशित रूप से विशाल जनादेश प्रदान किया है और महागठबंधन विशेषकर आरजेडी को उसकी अब तक की सबसे करारी शिकस्त दी है।

इस चुनाव का सबसे बड़ा राजनीतिक संदेश था एनडीए के लिए ‘MY फैक्टर’ यानि “महिला + युवा” एक निर्णायक बूस्टर डोज साबित हुआ है। वहीं आरजेडी द्वारा वर्षों से चलाए जा रहे पारंपरिक ‘MY’ (मुस्लिम + यादव) समीकरण ने इस बार उतना असर नहीं दिखाया जितना वह पिछले दो दशकों तक करता आया था।

18वीं विधानसभा के चुनाव परिणाम बेहद ही रोचक, चौंकाने वाला और बिहार की बदलती राजनीतिक मानसिकता को बारीकी से दर्शाने वाला है। 243 सीटों वाली विधानसभा में जहां एनडीए को 202 सीटें मिलीं, वहीं महागठबंधन 35 पर ही सिमट गया। शेष 6 सीटें अन्य दलों के खाते में गईं।

नीतीश कुमार की राजनीति का सदाबहार फॉर्मूला रहा है महिला मतदाताओं का भरोसा। यह भरोसा इस चुनाव में तय कर देने वाला साबित हुआ। पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि महिलाओं की मतदान में बढ़ती सहभागिता ने राज्य की राजनीति का रुख बदला है, लेकिन 2025 में यह रूख अपने चरम पर था।

महिला मतदाताओं की प्राथमिकताएँ स्पष्ट थी घरेलू शांति, शराबबंदी की नीति, उज्ज्वला, जनधन, आवास, शौचालय जैसी योजनाओं का सीधा लाभ, सुरक्षा का अहसास, बेटियों की शिक्षा और छात्रवृत्ति योजनाएँ। इन सभी पहलुओं ने महिलाओं को एनडीए के पक्ष में दृढ़तापूर्वक खड़ा किया। ग्रामीण इलाकों में विशेष रूप से यह क्लियर ट्रेंड दिखा कि महिलाओं ने एकजुट होकर मतदान किया और परिणामों को निर्णायक बना दिया।

इस बार बिहार की राजनीति में युवा बेहद सक्रिय दिखे। राज्य में रिकॉर्ड संख्या में नए मतदाता जुड़े थे। बेरोजगारी, कौशल विकास, डिजिटल अवसर और स्टार्टअप जैसी नई संभावनाएँ युवाओं की चर्चा का बड़ा विषय था और इसी वर्ग ने आरजेडी को एक बड़ा झटका दिया। क्योंकि युवाओं में यह धारणा व्यापक थी कि ‘जंगलराज’ फिर लौट सकता है। राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था बिगड़ जाएगी। आर्थिक गतिविधियों की मंदी हो सकती है और राजनीतिक अस्थिरता रोजगार को प्रभावित करेगी। 

वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बड़ी विकास योजनाओं, सड़क–बिजली–पानी के मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर और निवेश आकर्षित करने वाली नीति ने युवाओं को एनडीए के पक्ष में खड़ा किया।

लंबे समय से बिहार की राजनीति में आरजेडी “MY” यानि “मुस्लिम–यादव” समीकरण की बदौलत सबसे मजबूत आधार वोट बैंक को साधती रही है। लेकिन 2025 के चुनाव में पहली बार इस वोट बैंक का बड़ा हिस्सा या तो तटस्थ हो गया या दूसरी पार्टियों की तरफ मुड़ गया।

इसके पीछे कई कारण रहे, यादवों के बीच पहली बार एनडीए को 15–18% तक वोट मिला। मुस्लिम वोट का महत्वपूर्ण हिस्सा सीमांचल में एआईएमआईएम की ओर गया। चुनाव में सबसे ज्यादा जिस बात ने आरजेडी को नुकसान पहुंचाया वह था अतीत का भय। मतदाताओं ने माना कि अपराध बढ़ेगा, निवेश घटेगा और प्रशासनिक स्थिरता खत्म होगी। यह धारणा इतनी गहरी थी कि आरजेडी की पूरी कैम्पेन रणनीति उसे कमजोर नहीं कर पाई।

कांग्रेस 61 सीटें मांगकर भी मैदान में कोई बड़ा कमाल नहीं कर पाई और कमजोर कड़ी साबित हुई। विपक्ष की एकजुटता सिर्फ मंच पर दिखी, जमीन पर नहीं। जिसे लोग चुनावी भाषा में कहते हैं “हवा में उड़ना” यह रवैया कई बार लोगों को चुभने लगा। यही कारण है कि बड़े-बड़े रैलियों के बावजूद वोटों में वह रुपांतरण नहीं दिखा।

बिहार विधानसभा चुनाव में कुल सीटें 243 है। इन सीटों में एनडीए  202, महागठबंधन 35 और अन्य 6 सीटें जीती। इस चुनाव में RJD को 22.86%, BJP को 20.39% और JDU को 19.03% मत मिला। इस से स्पष्ट है कि व्यक्तिगत तौर पर आरजेडी का वोट प्रतिशत सबसे ज्यादा है, लेकिन महागठबंधन का वोट बिखरा और एनडीए के वोट एक-दूसरे का समीकरण मजबूत किया। 

7 बार के सांसद और तीन बार प्रधानमंत्री के तौर पर नरेन्द्र मोदी का बिहार में गहरा प्रभाव है। उनकी 35 से ज्यादा रैलियाँ और बिहार-केंद्र के रिश्तों को मजबूत बनाने का वादा लोगों को भरोसेमंद लगा। “विकसित बिहार 2047” का नारा इस बार अत्यंत लोकप्रिय हुआ।

नीतीश कुमार 20 से अधिक वर्षों से बिहार की राजनीति और शासन का केंद्र रहे हैं। उनकी छवि विकास पुरुष, कानून व्यवस्था को सुधारने वाले मुख्यमंत्री, महिला सशक्तिकरण के जनक और शिक्षा–स्वास्थ्य सुधारक का है। इन सभी तत्वों ने जनता में एक स्थिर छवि पैदा की।

इस बार एनडीए का चुनाव प्रबंधन अत्यंत मजबूत और सुनियोजित था। बूथ लेवल मैनेजमेंट मजबूत किया, सोशल मीडिया पर माइक्रो टार्गेटिंग हुई, हर वर्ग के लिए अलग संदेश रहा, मनोवैज्ञानिक कैम्पेन की रणनीति अपनाई और घर-घर संपर्क कार्यक्रम चलाया।

किसी भी पार्टी के लिए यह बोझ सबसे भारी होता है उसके अतीत का अपराध बढ़ने का इतिहास। यह अध्याय मतदाताओं की स्मृतियों में अभी धुंधला नहीं हुआ है। उम्मीदवार चयन में असंतोष था, कांग्रेस की कमजोर आधारशक्ति था, वाम दलों की सीमित प्रभाविता रही और सीटों पर समन्वय की भारी कमी दिखी।

जन सुराज के प्रशांत किशोर को लोग एक मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट मानते हैं। लेकिन राजनीति में उनका पहला बड़ा चुनाव एक बुरे सपने जैसा रहा। एक भी सीट नहीं मिली। यह साबित करता है कि बिहार की राजनीति सिर्फ रणनीति से नहीं, जमीनी संगठन और सामाजिक पहचान की ताकत से चलती है।

वीआइपी के मुकेश सहनी का अति पिछड़ों की राजनीति को विस्तार देने की कोशिश विफल रही। उनका सामाजिक आधार पूरी तरह मजबूत नहीं हो पाया।

एआईएमआईएम के ओवैसी ने सीमांचल में अपनी पकड़ बरकरार रखी। यह आरजेडी के लिए बड़ा झटका साबित हुआ क्योंकि मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा बंट गया।

इस चुनाव में कई सीटों पर बेहद रोमांचक मुकाबला देखने को मिला। जहानाबाद में जीत का अंतर 793 वोट, संदेश सीट पर जीत का अंतर: सिर्फ 27 वोट, आरा की अगिआंव सीट पर बीजेपी के महेश पासवान ने 95 वोटों से जीत दर्ज की।mफारबिसगंज सीट पर कांग्रेस के मनोज बिश्वास ने 221 वोटों से जीत हासिल की। चनपटिया सीट पर कांग्रेस के अभिषेक रंजन ने 602 वोटों से जीत दर्ज की। बोधगया सीट पर आरजेडी के कुमार सर्वजीत ने 881 वोटों से जीत दर्ज की। बख्तियारपुर सीट पर एलजेपी (रामविलास) ने 981 वोटों से जीत ली। ढाका सीट पर आरजेडी उम्मीदवार ने 178 वोटों से जीत दर्ज की।

बिहार चुनाव 2025 का असली निष्कर्ष रहा कि महिला मतदाता जाति से ऊपर उठ चुकी हैं, युवा रोजगार और अवसरों को प्राथमिकता दे रहे हैं, ओबीसी–ईबीसी समुदाय स्थिर शासन चाहता है और व्यापारी वर्ग कानून- व्यवस्था को सबसे ऊपर देखता है। यह बदलाव आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति की दिशा बदल देगा।

एनडीए ने अपने घोषणापत्र में कई प्रमुख वादे किए थे रोजगार सृजन, कृषि आधुनिकीकरण, औद्योगिक कॉरिडोर, मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों का विस्तार, नदियों के किनारे इकोनॉमिक जोन, महिला सुरक्षा और शिक्षा कार्यक्रम, डिजिटल बिहार। इन सब को जनता ने सकारात्मक रूप से लिया और यह भरोसा दिखाया कि बिहार 2047 तक एक विकसित राज्य बन सकता है।

इस चुनाव की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि बिहार ने राजनीति की नई परिभाषा लिखी। बिहार ने “MY फैक्टर” को नया अर्थ दिया। बिहार ने वोटिंग पैटर्न बदल डाला। अब इससे यह साफ हो गया है कि महिला वोट ही असली “किंगमेकर” है। युवा वर्ग राज्य की दिशा तय करेगा। विकास बनाम अराजकता की लड़ाई में विकास जीता और सुशासन अब बिहार की मुख्य पहचान है। 

एनडीए की इस जीत ने बिहार में राजनीतिक स्थिरता को मजबूत आधार दिया है। वहीं महागठबंधन के लिए यह एक गहरी सीख है कि सिर्फ भीड़ नहीं, भरोसा मायने रखता है।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top