बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के पहले चरण में पटना की कुम्हरार विधानसभा सीट एक बार फिर से सुर्खियों में रही है। सुबह 7 बजे से शुरू हुआ मतदान शांतिपूर्ण माहौल में संपन्न हुआ, लेकिन इस शांत माहौल के भीतर बहुत कुछ ऐसा छिपा था, जिसने राजनीतिक विश्लेषकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। बूथों पर भीड़ कम रही, मतदाता बिना किसी शोर-शराबे के मतदान केंद्रों तक पहुंचे और चुपचाप अपने मताधिकार का उपयोग कर लौट गए। यह मौन मतदान कई सवाल छोड़ गया है, क्या मतदाता इस बार किसी नए बदलाव का संकेत दे रहे हैं या यह पारंपरिक वोट बैंक की मजबूती का परिणाम है?
कुम्हरार विधानसभा सीट बिहार की उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जिसने हमेशा से पटना की राजनीति को दिशा दी है। यह क्षेत्र न सिर्फ राजधानी का केंद्र बिंदु है, बल्कि बिहार की राजनीतिक समझ का भी आईना है। कुम्हरार का इतिहास देखा जाए तो यह सीट लंबे समय तक भाजपा का गढ़ मानी जाती रही है। हालांकि समय-समय पर विरोधी दलों ने भी यहां अपने पैर जमाने की कोशिश की, मगर यह क्षेत्र हमेशा से भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर का केंद्र रहा है। पिछले कुछ चुनावों में भाजपा उम्मीदवारों ने लगातार जीत दर्ज की, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरणों और स्थानीय असंतोष ने इस बार तस्वीर को कुछ अलग बना दिया है।
इस बार कुम्हरार सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है। कांग्रेस से मैदान में हैं इंद्रदेव चंद्रवंशी, जो अपने सामाजिक जुड़ाव और जमीन से जुड़े मुद्दों को लेकर सक्रिय रहे हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) ने बबलू कुमार को उतारा है, जो साफ-सुथरी राजनीति और शिक्षा एव स्वास्थ्य सुधार के मुद्दे पर वोट मांग रहे हैं। वहीं जन सेवा पार्टी (JSP) के के. सी. सिन्हा अपने कायस्थ समाज और बुद्धिजीवी वर्ग के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं। इन तीनों उम्मीदवारों के बीच मुकाबला इस कदर दिलचस्प बना कि किसी के लिए भी स्पष्ट बढ़त कहना मुश्किल हो गया है।
कुम्हरार की राजनीति में कायस्थ मतदाताओं की भूमिका हमेशा निर्णायक रही है। यह समुदाय यहां की आबादी का एक बड़ा हिस्सा है और परंपरागत रूप से शिक्षित एव राजनीतिक रूप से सजग माना जाता है। लेकिन इस बार कायस्थ वोटों का बिखराव पूरे समीकरण को उलझा गया है।
सूत्रों के अनुसार, कायस्थ समुदाय के मतदाता इस बार एकजुट होकर मतदान नहीं कर पाए। कुछ मतदाताओं ने अपनी राजनीतिक निष्ठा के आधार पर अलग-अलग दलों को वोट दिया। कई कायस्थों ने स्थानीय स्तर पर उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि को देखकर वोट करने का निर्णय लिया। वहीं कुछ कायस्थ मतदाता मतदान केंद्रों तक पहुंचे ही नहीं, जो शायद मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों से निराशा या उदासीनता का संकेत देता है।
स्थानीय स्तर पर तो यह भी चर्चा रही कि कुछ कायस्थ नेताओं के बीच आपसी मतभेद के चलते वोटों का ध्रुवीकरण नहीं हो सका। कुछ बूथों पर कायस्थ मतदाताओं के बीच बहस और नाराजगी भी देखी गई, जो यह दर्शाता है कि समाज के भीतर मतों का रुझान विभाजित हो गया है।
मतदान के दिन कुम्हरार विधानसभा क्षेत्र के विभिन्न मतदान केंद्रों पर स्थिति भिन्न-भिन्न रही। कुम्हरार पुराना बाजार और भट्टाचार्य रोड जैसे क्षेत्रों में सुबह से ही मतदान की रफ्तार धीमी रही। राजेन्द्र नगर और किदवईपुरी जैसे शहरी इलाकों में शिक्षित वर्ग शांत भाव से वोट डालने पहुंचा। कुम्हरार कॉलोनी, सतघरवा टोला, लोदीपुर, और गुलजारबाग जैसे इलाकों में मतदाताओं की संख्या दोपहर के बाद बढ़ी।
महिलाओं की भागीदारी इस बार उल्लेखनीय रही। कई जगहों पर महिलाएं पारिवारिक निर्णय से अलग अपनी स्वतंत्र सोच के साथ वोट डालती दिखी।
मतदान का कुल प्रतिशत पिछले चुनाव से कुछ कम रहा, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि कम मतदान प्रतिशत अक्सर सत्ता विरोधी लहर की ओर इशारा करता है।
मतदान के बाद अब प्रत्याशियों का भविष्य ईवीएम में कैद है। हर दल अपने-अपने हिसाब से गणित बैठाने में जुटा है। कांग्रेस खेमे का मानना है कि इंद्रदेव चंद्रवंशी को पिछड़े वर्ग, महिला मतदाताओं और कुछ कायस्थ परिवारों का मजबूत समर्थन मिला है। AAP को भरोसा है कि शहरी युवाओं, पहली बार वोट डालने वालों और सरकारी सेवाओं में पारदर्शिता चाहने वाले वर्ग ने उन्हें वोट दिया है। JSP के के.सी. सिन्हा का कहना है कि उनके साथ कायस्थ समाज का पारंपरिक समर्थन और कुछ व्यावसायिक वर्ग के मतदाता जुड़े हैं। हालांकि जमीन पर वास्तविक स्थिति इन अनुमानों से भिन्न भी हो सकती है क्योंकि साइलेंट वोटिंग ने किसी भी पार्टी को स्पष्ट संकेत नहीं दिए हैं।
कुम्हरार जैसे क्षेत्र में जब वोटिंग शांतिपूर्ण और “साइलेंट” होती है, तो इसका अर्थ सिर्फ कम उत्साह नहीं होता। कई बार यह मतदाता की नाराजगी या गोपनीय फैसले का संकेत होता है। मतदाता अब खुलकर अपनी पसंद-नापसंद नहीं बताते हैं। सोशल मीडिया के प्रभाव और समाजिक समीकरणों के कारण मतदाताओं ने अपने मन की बात छिपाकर रखी। यह भी संभव है कि मतदाता इस बार पारंपरिक राजनीति से हटकर किसी नए विकल्प की ओर मुड़े हों। कई बूथों पर युवाओं ने यह कहा कि “हम किसी पार्टी के नाम पर नहीं, काम के आधार पर वोट देंगे।” यह सोच कुम्हरार जैसे शहरी निर्वाचन क्षेत्र में राजनीतिक परिपक्वता का संकेत है।
कायस्थ समाज के भीतर इस बार मतों का बिखराव केवल राजनीतिक रणनीति की विफलता नहीं है, बल्कि आंतरिक असंतोष का परिणाम भी माना जा रहा है। कई कायस्थ मतदाता मानते हैं कि चाहे कोई भी सरकार आई हो, उनके सामाजिक और आर्थिक हितों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। ऐसे नाराजगी का कारण यह भी हो सकता है कि स्थानीय प्रतिनिधित्व में उनकी भागीदारी का अभाव। प्रशासनिक पदों और नियुक्तियों में उपेक्षा की भावना। क्षेत्रीय विकास परियोजनाओं में असमान ध्यान और अब नए उभरते वर्गों के मुकाबले राजनीतिक संतुलन का बदलना। इन कारणों से कायस्थ समाज के भीतर एकता की भावना कमजोर हुई है, जिससे विभिन्न दलों के प्रत्याशी अपने अपने हिस्से के वोट लेने में सफल हुए हैं।
कुम्हरार के युवा मतदाता इस बार बेहद सक्रिय दिखाई दिए हैं। हालांकि यह सक्रियता प्रचार रैलियों में नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर ज्यादा दिखी है। युवा मतदाताओं की प्रमुख प्राथमिकताएँ थीं रोजगार के अवसर, साफ-सुथरा प्रशासन, शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता और स्थानीय सुविधाओं का विकास। युवाओं का झुकाव किसी एक पार्टी की ओर नहीं दिखा, बल्कि उन्होंने “इश्यू बेस्ड वोटिंग” को प्राथमिकता दी। इस बदलते सोच का प्रभाव आगे आने वाले चुनावों में भी देखने को मिल सकता है।
इस बार कुम्हरार में महिला मतदाताओं की भागीदारी ने भी सबका ध्यान खींचा है। जहां पहले महिलाओं का मतदान पुरुषों के प्रभाव में होता था, अब वे स्वतंत्र सोच के साथ बूथों तक पहुंचीं। कई महिला मतदाताओं ने कहा कि वे सुरक्षा, शिक्षा, महंगाई और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को ध्यान में रखकर मतदान कर रही हैं। यह परिवर्तन बताता है कि कुम्हरार जैसे शहरी क्षेत्र में महिलाओं का वोट अब निर्णायक कारण बन सकता है।
कुम्हरार विधानसभा का परिणाम केवल एक सीट का नतीजा नहीं होगा, बल्कि यह आने वाले वर्षों में पटना शहर की राजनीति का रुख तय करेगा। यदि कांग्रेस या AAP जैसी पार्टी यहां अच्छा प्रदर्शन करती है, तो यह भाजपा के लिए एक संकेत होगा कि शहरी मतदाता अब विकल्प तलाश रहे हैं। वहीं JSP जैसे छोटे दल का प्रदर्शन यह बताएगा कि स्थानीय समाज-आधारित पार्टियों के लिए भी शहरी राजनीति में जगह बन सकती है।
कुम्हरार क्षेत्र में इस बार जिन मुद्दों पर चुनाव केंद्रित रहा, वह सीधे जनता के जीवन से जुड़ा था। पेयजल और जलजमाव की समस्या, सड़क और ट्रैफिक जाम की स्थिति, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, अवैध निर्माण और नगर नियोजन की अनदेखी तथा शिक्षा संस्थानों का स्तर। इन मुद्दों को लेकर सभी उम्मीदवारों ने अपने-अपने वादे किए, लेकिन जनता ने इस बार सुनकर नहीं, सोचकर वोट किया है।
मतदान समाप्त होने के बाद तीनों प्रमुख उम्मीदवारों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दी है। इंद्रदेव चंद्रवंशी (कांग्रेस) ने कहा कि “जनता ने बदलाव के लिए वोट किया है। कुम्हरार इस बार नई दिशा दिखाएगा।” बबलू कुमार (AAP) बोले कि “लोगों ने काम की राजनीति को प्राथमिकता दी है। हमें पूरा विश्वास है कि कुम्हरार में ईमानदार राजनीति जीतेगी।” के.सी. सिन्हा (JSP) ने कहा कि “हमारे समाज का समर्थन हमारे साथ है। कायस्थ मतदाता समझदार हैं और उन्होंने सोच-समझकर मतदान किया है।” तीनों दल अपने-अपने तरीके से जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन असली सच्चाई ईवीएम खुलने पर ही सामने आएगी।
कुम्हरार के मतदाता अब इंतजार कर रहे हैं कि इस बार जो भी जीते, वह स्थानीय समस्याओं पर काम करे, क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को सुधारे, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाए और सबसे बढ़कर “सुनने वाली राजनीति” करे। कुम्हरार की जनता अब वादों से आगे विकास के साक्ष्य चाहती है।
कुम्हरार का यह चुनाव सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं है, बल्कि बदलते जनमत और राजनीतिक सोच की परीक्षा है। कायस्थ मतदाताओं का बिखराव, युवाओं की नीति आधारित वोटिंग, महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और साइलेंट मतदान, यह संकेत बताती हैं कि कुम्हरार का मतदाता अब परिपक्व हो चुका है। वह पार्टी नहीं, व्यक्ति और कार्य को महत्व देने लगा है। अब देखना यह होगा कि जब ईवीएम के बटन खुलेंगे तो यह मौन मतदाता किसे विजेता बनाएगा, पारंपरिक शक्ति को या किसी नए चेहरे को?
