“शिवानी शक्तिपीठ” देवी सती का दायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 


भारतीय उपमहाद्वीप में शक्ति की उपासना का एक अत्यंत प्राचीन और दिव्य इतिहास है। यहाँ हर पर्वत, हर नदी, हर शिला में देवी की कोई न कोई लीलामयी उपस्थिति मानी जाती है। इन्हीं 51 शक्तिपीठों में से एक है “शिवानी शक्तिपीठ”, जो उत्तरप्रदेश के चित्रकूट के समीप झाँसी-मणिकपुर रेलवे मार्ग पर स्थित रामगिरि क्षेत्र में अवस्थित है। यह वही पावन भूमि है जहाँ माता सती का दायाँ वक्ष (स्तन) गिरा था। इसीलिए यहाँ माता को शिवानी कहा गया है और उनके भैरव के रूप में चंड भैरव की आराधना की जाती है।

शिवानी पीठ केवल एक तीर्थ नहीं है, यह माँ के मातृत्व, करुणा और सृजनशक्ति का मूर्त स्वरूप है। यहाँ की वायु में भक्तिभाव की ऐसी सुगंध घुली हुई है कि साधक का मन स्वतः ही समाधि में प्रविष्ट हो जाता है। यह स्थल केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से भी अनुपम है।

शिवानी पीठ की कथा का मूल देवी भागवत, कालिका पुराण, तंत्र चूड़ामणि और मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित है। कहा जाता है कि जब माता सती ने अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शंकर का अपमान सहन न कर पाईं, तो उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। यह दृश्य देखकर महादेव शोकाकुल हो उठे। वे सती के निष्प्राण शरीर को अपने कंधे पर उठाकर सृष्टि भर में तांडव करने लगे। ब्रह्मांड काँप उठा, देवता भयभीत हो गए। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के 51 अंगों को पृथ्वी पर विभिन्न स्थलों पर गिराया। जहाँ-जहाँ माता के अंग गिरे, वहाँ- वहाँ शक्तिपीठ की स्थापना हुई। इन्हीं में से एक स्थान है चित्रकूट का शिवानी शक्तिपीठ, जहाँ माता का दायाँ वक्ष गिरा था, जो मातृत्व, सृजन और करुणा का प्रतीक है।

‘शिवानी’ शब्द का अर्थ ही है शिव की अर्धांगिनी, अर्थात जो शिव में लीन होकर भी स्वतंत्र है। यहाँ देवी को शिव की ऊर्जा के रूप में पूजित किया जाता है। उनका यह स्वरूप सौम्य भी है और तेजस्विनी भी। वे करुणा की सागर हैं, परंतु अन्याय और अधर्म के विरुद्ध अग्निज्वाला बन जाती हैं। इस पीठ में माता की मूर्ति अत्यंत मनोहर है मुखमंडल शांत, किंतु नेत्रों में तेज, और वक्षस्थल पर शाश्वत करुणा की छाया। भक्त जब उनके दर्शन करते हैं, तो उन्हें ऐसा प्रतीत होता है मानो माता स्वयं उनके कष्टों को अपने हृदय में समाहित कर लेती हों।

चित्रकूट का नाम सुनते ही रामायण की स्मृतियाँ जागृत हो उठती हैं। यही वह स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम, माँ सीता और लक्ष्मण ने अपने वनवास का लंबा काल व्यतीत किया था। वाल्मीकि रामायण में चित्रकूट को “देवों की भूमि” कहा गया है। इसी पावन क्षेत्र में जब देवी सती का अंग गिरा, तो वह स्थान दिव्य ऊर्जा से आलोकित हो उठा। स्थानीय जनश्रुतियों के अनुसार, माँ के वक्ष गिरने से यहाँ की भूमि में अद्भुत औषधीय शक्ति आ गई। यहाँ की मिट्टी आज भी देह और मन के रोगों को दूर करने में सक्षम मानी जाती है। चित्रकूट की पहाड़ियों, मंदाकिनी नदी की कल-कल धारा और सघन हरियाली के बीच स्थित यह शक्तिपीठ, साधना और तपस्या के लिए आदर्श स्थान माना जाता है।

हर शक्तिपीठ की तरह शिवानी पीठ के साथ भी एक भैरव का स्वरूप जुड़ा है “चंड भैरव”। इन्हें यहाँ माँ के रक्षक और न्यायकारी देवता के रूप में पूजा जाता है। चंड भैरव का स्वरूप उग्र किंतु करुणामय है। भक्त जब उनसे प्रार्थना करते हैं, तो वे पाप और भय का नाश करते हैं। कहा जाता है कि बिना चंड भैरव की पूजा के शिवानी माता की आराधना अधूरी मानी जाती है।

शिवानी शक्तिपीठ का मंदिर पारंपरिक उत्तर भारतीय नागर शैली में बना हुआ है। मंदिर का मुख्य गर्भगृह अत्यंत शांत और दिव्य है, जहाँ देवी शिवानी की मूर्ति स्वर्णाभ चमक लिए हुए विराजमान है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर दो सिंह प्रतिमाएँ हैं जो शक्ति और साहस के प्रतीक हैं। गर्भगृह के भीतर प्रवेश करते ही हवा में चंदन, कपूर और पुष्पों की सुगंध घुली रहती है। दीवारों पर देवी महात्म्य के श्लोक और दुर्गा सप्तशती के मंत्र अंकित हैं। मंदिर के चारों ओर छोटे-छोटे मंदप बने हैं, जहाँ भक्त दीपक जलाते हैं और अपने मनोवांछित कार्यों की सिद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।



शिवानी पीठ में पूरे वर्ष अनेक पर्व और अनुष्ठान होते हैं, जिनमें प्रमुख हैं नवरात्र महोत्सव,  चैत्र और आश्विन नवरात्र में यहाँ भक्तों का सागर उमड़ पड़ता है। नौ दिनों तक देवी के नौ रूपों की पूजा होती है। अंतिम दिन कन्या पूजन और भंडारा आयोजित किया जाता है। श्रावण मास में विशेष पूजा, क्योंकि यह स्थल शिवशक्ति का संगम माना जाता है, इसलिए श्रावण में यहाँ शिव और शिवानी दोनों की संयुक्त आराधना होती है। शक्ति जयंती और पूर्णिमा पर्व, हर पूर्णिमा को यहाँ रात्रि में दीपदान और जप-तप का विशेष आयोजन होता है। कहा जाता है कि इस दिन माँ के दर्शन से हजार यज्ञों का फल प्राप्त होता है। माँ शिवानी मेला, स्थानीय परंपरा के अनुसार, हर वर्ष मार्गशीर्ष मास में विशाल मेला लगता है, जहाँ दूर-दूर से साधक, तांत्रिक और भक्त एकत्र होते हैं।

शिवानी पीठ केवल एक दर्शनीय स्थल नहीं है, बल्कि तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र भी है। यहाँ की शक्ति अत्यंत जाग्रत और साक्षात मानी जाती है। कई तांत्रिक यहाँ नवरात्र के दौरान साधना करने आते हैं। कथाओं में कहा गया है कि यहाँ साधना करने वाला साधक देवी के दर्शन पा सकता है या सिद्धि की प्राप्ति कर सकता है। कई साधकों ने यहाँ कुंडलिनी जागरण, महामृत्युंजय साधना, और शक्ति तंत्र की दीक्षा प्राप्त की है।

चित्रकूट में जहाँ एक ओर रामभक्ति का अमृत बहता है, वहीं शिवानी शक्तिपीठ में शक्तिभक्ति की ज्योति प्रज्वलित रहती है। यहाँ शिव और शक्ति की आराधना एक साथ होती है, जैसे राम और सीता अविभाज्य हैं, वैसे ही शिव और शिवानी भी। यह स्थल इस बात का साक्षी है कि धर्म का सार एक ही है प्रेम, समर्पण और संतुलन। भक्त यहाँ आकर अनुभव करता है कि शक्ति बिना शिव मृत है, और शिव बिना शक्ति शव।

स्थानीय जनश्रुति में एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक निर्धन ब्राह्मण स्त्री ने माता से प्रार्थना की कि उसके पुत्र को जीविका का साधन मिले। उसने शिवानी माता के मंदिर में सात दिन उपवास रखा और भक्ति भाव से जप किया। सातवें दिन जब उसने प्रसाद ग्रहण किया, उसी समय उसके द्वार पर एक व्यापारी आया और उसे अपने आश्रम में काम देने का प्रस्ताव दिया। ब्राह्मणी ने जब धन्यवाद दिया, तो व्यापारी ने कहा कि “मुझे नहीं पता मैं यहाँ क्यों आया, बस ऐसा लगा जैसे किसी ने मुझे यहाँ बुलाया।” लोगों ने इसे माँ शिवानी की करुणा कहा। तभी से यहाँ यह मान्यता है कि माँ की कृपा से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है।

शिवानी शक्तिपीठ तक पहुँचने के लिए भक्तों को झाँसी-मणिकपुर रेलवे मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है। निकटतम स्टेशन है मणिकपुर या चित्रकूट धाम करवी, सड़क मार्ग से झाँसी से लगभग 210 किलोमीटर की दूरी पर, निकटतम हवाई अड्डा प्रयागराज या खजुराहो एयरपोर्ट है। यहाँ तक पहुँचने पर चारों ओर हरियाली, मंदिरों की घंटियाँ और श्रद्धालुओं के “जय माँ शिवानी” के जयघोष से वातावरण पवित्र हो उठता है।

भक्त रोजाना यहाँ  “ॐ ह्रीं शिवान्यै नमः।” का जाप करते हैं, यह बीजमंत्र माँ शिवानी की साधना के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। देवी स्तुति (लोक प्रसिद्ध) है- “जय शिवानी करुणामयी, मातृरूप धरिनि भवानी। तेरे चरणन की रज से, मिटे पाप सब प्राणी।”

“शिवानी शक्तिपीठ” केवल एक मंदिर नहीं है, बल्कि शक्ति-साधना का जीवंत केंद्र है। यहाँ आकर भक्त यह अनुभव करता है कि माँ का प्रेम न किसी सीमा में बँधा है, न किसी वर्ण में।

माँ शिवानी का यह पवित्र स्थल यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति आत्मा की शांति है, और शक्ति का सच्चा स्वरूप करुणा में निहित है। जब कोई भक्त यहाँ “जय माँ शिवानी” का उच्चारण करता है, तो उसकी पुकार सीधे देवी के हृदय तक पहुँचती है, क्योंकि यह वही स्थान है जहाँ माँ का हृदय, उनका दायाँ वक्ष धरती पर विराजमान है।



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