उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सभी शिक्षण संस्थानों में “वंदे मातरम्” राष्ट्रगीत को अनिवार्य किए जाने के फैसले ने राजनीतिक हलचल मचा दी है। इस निर्णय पर समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तीखी प्रतिक्रिया दी है।
अखिलेश यादव ने कहा कि “सरकार ऐसे फैसले क्यों ले रही है, जिनका उद्देश्य लोगों को बाँटना है।” उन्होंने सवाल उठाया कि जब संविधान बना था, तब इस तरह का कोई प्रावधान नहीं रखा गया — “अगर किसी को कुछ पसंद नहीं है, तो उसे जबरदस्ती करने पर क्यों मजबूर किया जा रहा है? मैं किसी बच्चे को लड्डू खिलाना चाहूँ, और वो कहे कि उसे केक चाहिए — तो क्या मैं ज़बरदस्ती उसके मुँह में लड्डू ठूस दूँ?”
उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि “सरकार लोगों के असली मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है। महंगाई चरम पर है, बेरोज़गारी बढ़ रही है, किसानों को खाद नहीं मिल रही, और सरकार राष्ट्रगीत को लेकर राजनीति कर रही है।”
उधर, योगी सरकार का कहना है कि यह फैसला किसी पर दबाव डालने के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रभक्ति की भावना को मज़बूत करने के लिए लिया गया है। योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि वंदे मातरम् हमारे गौरव और स्वतंत्रता संग्राम की पहचान है, और नई पीढ़ी को इसे आत्मसात करना चाहिए।
बीजेपी के नेताओं ने अखिलेश के बयान को “राष्ट्रगीत का अपमान” बताया। पार्टी प्रवक्ताओं का कहना है कि “जो लोग वंदे मातरम् पर सवाल उठाते हैं, वे उसी मिट्टी से दूरी बना रहे हैं, जिसने उन्हें जन्म दिया।” वहीं समाजवादी पार्टी ने पलटवार करते हुए कहा कि “राष्ट्रभक्ति की कसौटी बीजेपी तय नहीं कर सकती।”
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह मुद्दा सांस्कृतिक पहचान बनाम राजनीतिक रणनीति की बहस को फिर से हवा दे सकता है। चुनावी साल में ऐसे मुद्दों का इस्तेमाल दोनों पक्ष अपने-अपने तरीके से करेंगे — एक ओर बीजेपी इसे देशभक्ति के प्रतीक के रूप में पेश करेगी, तो दूसरी ओर विपक्ष इसे “धार्मिक ध्रुवीकरण” बताकर जनता के असली मुद्दों से ध्यान हटाने का आरोप लगाएगा।
वर्तमान में प्रशासनिक स्तर पर यह आदेश लागू हो गया है और सभी सरकारी व गैर-सरकारी शिक्षण संस्थानों को सुबह की प्रार्थना सभा में ‘वंदे मातरम्’ गाने का निर्देश दिया गया है। अब देखना यह होगा कि यह निर्णय जनता के बीच एकता की भावना जगाता है या फिर राजनीति की नई लकीर खींच देता है।
