बिहार विधानसभा चुनाव के बीच मोकामा में हुए दुलारचंद यादव हत्याकांड ने सियासी भूचाल ला दिया। जदयू उम्मीदवार और बाहुबली नेता अनंत सिंह को इस मामले में देर रात पुलिस ने गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के समय अनंत सिंह अपने समर्थकों के साथ बाढ़ के कारगिल मार्केट में मौजूद थे। पुलिस रात करीब 11:10 बजे वहां पहुंची और 11:45 बजे उन्हें हिरासत में लेकर पटना ले जाया गया।
घटना की जड़ें 30 अक्टूबर की रात से जुड़ी हैं, जब जन सुराज पार्टी के कार्यकर्ता दुलारचंद यादव की गोली लगने और गाड़ी चढ़ाने से मौत हो गई थी। उनके परिवार ने सीधा आरोप लगाया कि यह हमला अनंत सिंह के इशारे पर हुआ। दुलारचंद के पोते ने बयान दिया कि उनके दादा की हत्या योजनाबद्ध तरीके से की गई और अब उनकी खुद की जान को खतरा है।
पुलिस ने इस प्रकरण में तीन एफआईआर दर्ज कीं — एक मृतक पक्ष की शिकायत पर, दूसरी विपक्षी पक्ष की ओर से, और तीसरी पुलिस की ओर से। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि दुलारचंद की मौत गोली से नहीं, बल्कि पसलियों के टूटने और फेफड़ों के फटने से हुई। इसका मतलब यह था कि घटना के दौरान उन्हें गंभीर रूप से पीटा गया था या वाहन से कुचलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
अनंत सिंह, जो लंबे समय से मोकामा की राजनीति में “बाहुबली” छवि रखते हैं, पर इससे पहले भी कई आपराधिक मुकदमे चल चुके हैं — हत्या, रंगदारी, और अवैध हथियार रखने जैसे आरोपों के तहत। हालांकि उन्होंने हर बार खुद को राजनीतिक साजिश का शिकार बताया। इस बार भी गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों ने पुलिस कार्रवाई को “चुनावी षड्यंत्र” कहा।
पुलिस सूत्रों के अनुसार, जांच में यह भी पाया गया कि घटना स्थल पर आचार संहिता का उल्लंघन हुआ था। प्रचार के दौरान दो गुटों के बीच झड़प हुई, जो हिंसा में बदल गई। वीडियो और चश्मदीद गवाहों के बयानों के आधार पर अनंत सिंह को मुख्य संदिग्ध माना गया।
रात में गिरफ्तारी के बाद उन्हें सीधे पटना लाया गया, जहां उनसे घंटों पूछताछ चली। सुबह तक पूरे मोकामा और आसपास के इलाकों में पुलिस बल तैनात कर दिया गया ताकि कोई अप्रिय स्थिति न बने। प्रशासन ने जनता से शांति बनाए रखने की अपील की और कहा कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जाएगी।
यह मामला सिर्फ एक हत्या का नहीं, बल्कि बिहार की चुनावी राजनीति में शक्ति और अपराध के गहरे संबंधों को उजागर करता है। मोकामा, जो दशकों से बाहुबलियों की राजनीति का केंद्र रहा है, एक बार फिर चुनावी हिंसा का प्रतीक बन गया। अनंत सिंह की गिरफ्तारी ने न केवल जदयू के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं, बल्कि विपक्ष को भी चुनावी हथियार दे दिया है।
