भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने अपने राजनीतिक करियर की असली "पारी" की शुरुआत कर दी है। हैदराबाद राजभवन में हुए सादे और गरिमामय समारोह में अजहरुद्दीन ने मंत्री पद की शपथ ली। मंच पर न रोशनी की तेज चमक थी, न भीड़ का कोलाहल; लेकिन इतिहास अपनी शांत सांसों में इस पल को दर्ज कर रहा था। जैसे किसी टेस्ट मैच के पहले ओवर में धीरज भरी डिफेंसिव शॉट लगती है, वैसे ही यह शपथ भी संयमित और गहरी प्रतीत हुई।
इस समारोह में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी, राज्यपाल जिष्णु देव वर्मा और कांग्रेस के कई दिग्गज नेता मौजूद थे। जहां क्रिकेट में अजहर का बल्ला खामोशी से बोलता था, वहीं राजनीति में उनके कदम भी दबी चाल वाले मगर असरदार दिख रहे हैं। खेल के मैदान में जैसे वे स्लिप में खड़े होकर तेज़ गेंदबाजों की धारदार गेंदों को पकड़ते थे, अब जनता की उम्मीदों को संभालना उनके कंधों पर जिम्मेदारी बनकर आया है।
अजहरुद्दीन का जीवन हमेशा उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। कभी उन्होंने भारतीय टीम को सीमित साधनों से लेकर चमकदार दौर तक पहुंचाया। कभी विवादों का अंधेरा भी उन पर छाया। लेकिन पानी जैसा चरित्र ही असली होता है, जो चट्टानों से टकराकर भी रास्ता ढूंढ लेता है। राजनीति की इस नई धारा में भी उनका धैर्य और संकल्प दिखता है। उनकी आंखों में तेलंगाना के विकास के सपने, और कदमों में जिम्मेदारी का बोझ दोनों साफ झलकते हैं।
कांग्रेस नेतृत्व ने उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल कर एक संकेत दिया है कि अनुभवी चेहरों और सार्वजनिक लोकप्रियता वाले नेताओं को आगे बढ़ाया जाएगा। खास बात यह है कि तेलंगाना में कांग्रेस अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश में है, और अजहर जैसा चेहरा युवाओं, खेल प्रेमियों और अल्पसंख्यक समुदायों में भरोसे का पुल बन सकता है।
हालांकि मंत्री बनने के बाद यह सवाल भी उठेगा कि क्या एक महान खिलाड़ी उतना ही सफल प्रशासक बन सकता है? लेकिन इतिहास बताता है कि खेल और शासन में कई तंतुएं मिलती-जुलती हैं। रणनीति, टीम वर्क, अनुशासन और धैर्य दोनों जगह जरूरी हैं। अजहर इन गुणों के मालिक रहे हैं। क्रिकेट में जब वे मैदान पर उतरते थे, तो दर्शकों की धड़कनें तेज हो जाती थीं। अब देखना यह है कि मंत्री के रूप में उनके फैसले जनता की नब्ज़ पर कितनी सही चोट करते हैं।
राजभवन में हुआ शपथ ग्रहण भले ही सादगी में डूबा था, पर उसके पीछे उम्मीदों का आसमान फैला हुआ था। राजनीति का यह मैदान लंबा और कठिन है। यहां बाउंसर भी मिलेंगे और इनस्विंग यॉर्कर भी। मगर यदि अजहर उसी शांत मन और मजबूत नज़र से खेलेंगे, जो उन्होंने क्रिकेट में दिखाई थी, तो शायद यह पारी भी यादगार बन जाए।
तेलंगाना की जनता की निगाहें अब उनके हर कदम पर हैं। बल्ला अब कलम बन गया है, और रन की जगह योजनाएं बनानी हैं। शुरुआत हो चुकी है। नई पारी में पहला रन दर्ज हो गया है। आगे की कहानी वक्त बताएगा, पर आज इतना जरूर कहा जा सकता है: यह वो दिन है जब क्रिकेट के मैदान से उठी आवाज फिर शासन के गलियारे में गूंजी।
