बिहार की सियासत में नवंबर का महीना हमेशा से ही गर्माहट लेकर आता है। लोकतंत्र के इस महापर्व — बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण में अब मुकाबला अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुका है। दूसरे चरण का मतदान 11 नवंबर को होना है और प्रचार के लिए 9 नवंबर की शाम तक का समय निर्धारित है। यानि अब सिर्फ दो दिन बचे हैं जब नेता जनता के दरवाजों पर जाकर आखिरी कोशिश करेंगे अपने पक्ष में माहौल बनाने की।
दूसरे चरण में कुल 20 जिलों की 122 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा, जिसमें 1302 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला जनता के हाथों में होगा। इन उम्मीदवारों में 1165 पुरुष, 136 महिला और एक थर्ड जेंडर प्रत्याशी मैदान में हैं। यह चरण न केवल संख्यात्मक रूप से बड़ा है बल्कि राजनीतिक रूप से भी निर्णायक है, क्योंकि इसमें मिथिलांचल, सीमांचल, मगध और अंग क्षेत्र के कई अहम जिला शामिल हैं।
इस चरण का विस्तार राज्य के उत्तर से दक्षिण और पश्चिम से पूर्व तक फैला हुआ है। जिन जिलों में मतदान होना है, उनमें शामिल हैं पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका, जमुई, नवादा, गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, कैमूर और रोहतास।
यह जिला न केवल भौगोलिक रूप से बल्कि जातीय, सामाजिक और राजनीतिक दृष्टि से भी अपनी-अपनी विशिष्ट पहचान रखता है। सीमांचल क्षेत्र (अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार) में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अधिक है, जिससे यहां का चुनावी समीकरण खास दिलचस्प हो जाता है।
मगध क्षेत्र (गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल) में जातीय राजनीति का परंपरागत प्रभाव अब भी गहराई से मौजूद है। मिथिलांचल (सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल) में विकास के साथ-साथ स्थानीय मुद्दे और उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि बड़ी भूमिका निभाते हैं। वहीं अंग क्षेत्र (भागलपुर, बांका, जमुई) में बेरोजगारी, उद्योगों की कमी और पलायन जैसे मुद्दे केंद्र में हैं।
चुनाव आयोग ने इस चरण के लिए 45,399 मतदान केंद्र बनाए हैं। इनमें से 45,388 सामान्य मतदान केंद्र और 11 सहायक मतदान केंद्र हैं। 5326 बूथ शहरी क्षेत्रों में हैं, जबकि 40,073 बूथ ग्रामीण इलाकों में बनाए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि इस चरण का केंद्र बिंदु ग्रामीण बिहार ही रहेगा, जहां मतदाता परंपरा, जातीय समीकरण और स्थानीय विकास के आधार पर मतदान का फैसला करते हैं।
सुरक्षा के लिहाज से केंद्रीय बलों की पर्याप्त तैनाती की जा रही है। नक्सल प्रभावित इलाकों जैसे गया, औरंगाबाद, कैमूर और रोहतास जिलों में विशेष सतर्कता बरती जाएगी। ड्रोन से निगरानी, वेबकास्टिंग, लाइव मॉनिटरिंग और संवेदनशील बूथों पर अतिरिक्त बल की तैनाती की व्यवस्था की गई है।
इस चरण में 3,70,13,556 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें पुरुष, महिला और तीसरे लिंग के मतदाता शामिल हैं। इस विशाल मतदाता संख्या के कारण यह चरण पूरे राज्य के राजनीतिक समीकरण को नई दिशा दे सकता है। बिहार में महिलाओं की मतदान में भागीदारी पिछले कई चुनावों में पुरुषों से अधिक रही है। इस बार भी महिला मतदाता निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शराबबंदी जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
भले ही इस चरण में 1302 उम्मीदवार मैदान में हैं, परंतु वास्तविक मुकाबला प्रमुख दलों के दिग्गज नेताओं और गठबंधनों के बीच है। एनडीए (भाजपा + जदयू + HAM + VIP) एक बार फिर सत्ता बरकरार रखने की कोशिश में है। महागठबंधन (राजद + कांग्रेस + वाम दल) बदलाव की हवा का दावा कर रहा है। वहीं एलजेपी (रामविलास), आजाद उम्मीदवारों और छोटे क्षेत्रीय दलों की मौजूदगी कुछ सीटों पर समीकरण बिगाड़ सकती है।
बिहार की राजनीति का चेहरा पिछले कुछ दशकों में काफी बदला है। अब मतदाता सिर्फ जाति या धर्म के आधार पर नहीं बल्कि विकास और रोजगार की कसौटी पर भी वोट देने लगे हैं।
दूसरे चरण के मतदान क्षेत्रों में बेरोजगारी और पलायन, विशेषकर सीमांचल और अंग क्षेत्रों में युवा वर्ग के बीच सबसे बड़ा मुद्दा है। सड़क, बिजली और स्वास्थ्य, ग्रामीण इलाकों में अभी भी आधारभूत सुविधाओं की कमी को लेकर नाराजगी है। शिक्षा और महिला सुरक्षा, कॉलेजों में अव्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े सवाल भी मतदाताओं के मन में हैं। किसानों की स्थिति, पश्चिम चंपारण और सुपौल जैसे जिलों में बाढ़ और फसल नुकसान का मुआवजा बड़ा चुनावी विषय है। जातीय समीकरण, यादव, कुशवाहा, पासवान, राजपूत, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता वर्ग अब भी निर्णायक भूमिका में हैं।
अब जबकि प्रचार का समय 9 नवंबर की शाम तक सीमित है, तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंक दी है। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की रैलियों से लेकर विपक्ष के बड़े नेताओं के रोड शो तक हर जिला में जनसभा, पदयात्रा और नुक्कड़ भाषणों का दौर जारी है।
भाजपा और जदयू “विकास, सुशासन और स्थिरता” के नारे पर आगे बढ़ रही है, जबकि राजद और कांग्रेस “बदलाव, रोजगार और महंगाई” के मुद्दे को भुनाने में जुटी हैं। प्रचार के अंतिम दिनों में हवा किस ओर मुड़ती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
सीमांचल के जिला अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार, हमेशा से बिहार की राजनीति का अलग केंद्र रहा है। यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 50% से अधिक है। कांग्रेस और राजद इस क्षेत्र में परंपरागत रूप से मजबूत रहे हैं। भाजपा ने पिछले कुछ वर्षों में यहां धीरे-धीरे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, खासकर युवाओं के बीच। हालांकि, इस क्षेत्र में बेरोजगारी, बाढ़ और बुनियादी ढांचे की कमी जैसे मुद्दे अब जातीय समीकरण से कहीं अधिक प्रभाव डाल रहा है।
गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल, कैमूर, रोहतास जिला नक्सल प्रभावित माना जाता है। यहां विकास की रफ्तार धीमी रही है, लेकिन अब सड़कों और बिजली की पहुंच बढ़ी है। फिर भी, युवाओं में रोजगार और सरकारी अवसरों की कमी को लेकर असंतोष है। इस क्षेत्र में कई सीटों पर राजद-जदयू के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि भाजपा कुछ सीटों पर समीकरण बदलने की कोशिश कर रही है।
मिथिलांचल यानि मधुबनी, सीतामढ़ी, शिवहर, सुपौल जिला सांस्कृतिक और बौद्धिक दृष्टि से बिहार की पहचान हैं। यहां के मतदाता अपेक्षाकृत शिक्षित हैं और मुद्दों को समझकर मतदान करते हैं। हाल के वर्षों में बाढ़, कृषि और बेरोजगारी प्रमुख समस्याएं रही हैं। यहां एनडीए को जदयू की मजबूत जड़ों का फायदा मिल सकता है, वहीं महागठबंधन ने युवाओं और महिलाओं पर फोकस किया है।
भागलपुर, बांका, जमु जिला ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से समृद्ध हैं, लेकिन औद्योगिक दृष्टि से पिछड़ा हुआ है।nभागलपुर का सिल्क उद्योग कभी बिहार की पहचान था, जो अब संघर्ष कर रहा है। बेरोजगारी और पलायन यहां के युवाओं की सबसे बड़ी चिंता है। यहां मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है, एनडीए, महागठबंधन और एलजेपी के बीच।
बिहार में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बीते एक दशक में बढ़ी है। शराबबंदी का लाभ नीतीश सरकार को महिलाओं के बीच मिला है, लेकिन महंगाई और रसोई गैस के दामों को लेकर असंतोष भी है। इस चरण में महिलाओं की निर्णायक भूमिका लगभग हर जिला में देखी जा रही है।
चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि प्रत्येक जिला में सीएपीएफ (केंद्रीय अर्धसैनिक बल) की पर्याप्त टुकड़ियां तैनात की जाएंगी। संवेदनशील और अति-संवेदनशील बूथों की पहचान की जा चुकी है। हर मतदान केंद्र पर वीडियोग्राफी और लाइव मॉनिटरिंग होगी। नक्सल प्रभावित इलाकों में ड्रोन निगरानी और एरिया डोमिनेशन के लिए विशेष बलों की तैनाती की जाएगी।
इस चुनाव में लगभग 40% मतदाता 18 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के हैं। युवा अब “विकास, नौकरी और अवसर” के आधार पर सोचने लगे हैं। सोशल मीडिया का प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंच चुका है, जिससे प्रचार के नए आयाम खुल गए हैं। युवाओं के रुझान से ही तय होगा कि 2025 में बिहार किस दिशा में जाएगा।
जनता अब केवल वादे नहीं, बल्कि काम चाहती है। गांव-गांव तक बिजली और सड़क तो पहुंची है, पर रोजगार का अभाव आज भी गहराता जा रहा है। पलायन की मजबूरी अब भी बिहार के सामाजिक ढांचे को तोड़ रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की उम्मीद मतदाता हर चुनाव में करते हैं, लेकिन नतीजा अब भी सीमित हैं। इसलिए इस बार का चुनाव केवल दलों की परीक्षा नहीं है, बल्कि जनविश्वास का इम्तिहान भी है।
11 नवंबर को जब सुबह 7 बजे मतदान शुरू होगा, तो बिहार के इन 20 जिलों में लोकतंत्र का असली उत्सव दिखाई देगा। गांवों में बूथों की कतारें, महिलाओं का उत्साह, युवाओं की चर्चा और बुजुर्गों की उम्मीद, सब मिलकर तय करेगा कि आने वाले पांच साल राज्य की बागडोर किसके हाथों में होगी।
दूसरे चरण का यह मतदान केवल 122 सीटों का नहीं है, बल्कि पूरे बिहार के राजनीतिक भविष्य का संकेतक साबित होगा। क्योंकि यही वह चरण है, जो तय करेगा कि “क्या बिहार विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा, या राजनीति के पुराने समीकरण फिर लौट आएंगे?”
