“उमा शक्तिपीठ” देवी सती का गुच्छ और चूड़ामणि गिरा था

Jitendra Kumar Sinha
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आभा सिन्हा, पटना 


भारत की धरती देवी-देवताओं की कथाओं, तीर्थों और आध्यात्मिक स्थलों से अनुपम रूप से सुसज्जित है। यहाँ प्रत्येक कण में आस्था बसती है, प्रत्येक नदी में पवित्रता बहती है, और प्रत्येक पर्वत में दिव्यता निवास करती है। इसी पावन धरती पर स्थित है “उमा शक्तिपीठ”, जो उत्तरप्रदेश के मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर अवस्थित है।

यह वह पवित्र स्थल है जहाँ माँ सती के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। यहाँ माँ उमा के रूप में पूजित हैं और उनके भैरव रूप में भूतेश की उपासना होती है। यह स्थान न केवल धार्मिक दृष्टि से पवित्र है, बल्कि अध्यात्म, प्रेम और शक्ति की अनुभूति कराने वाला दिव्य स्थल है।

देवी सती का चरित्र भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का सबसे उज्ज्वल अध्याय है। उनका जन्म दक्ष प्रजापति के घर हुआ, और उन्होंने भगवान शिव को अपने आराध्य, अपने प्राणेश के रूप में स्वीकार किया। जब दक्षयज्ञ में भगवान शिव का अपमान हुआ, तो सती ने अपने पतिव्रता धर्म की रक्षा और अपमान के विरोध में स्वयं अग्नि में प्रवेश कर अपना देह त्याग दिया।

जब भगवान शिव को इस बात का ज्ञात हुआ, तो वे शोक और क्रोध से विकल हो उठे। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को अपने कंधे पर उठाया और सृष्टि भर में तांडव करने लगे। संसार का संतुलन बिगड़ गया। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के अंग काटे, जो पृथ्वी के विभिन्न स्थलों पर गिरा। इन स्थलों को ही “शक्तिपीठ” कहा गया। जहाँ जहाँ अंग गिरा, वहाँ देवी के विभिन्न रूपों की पूजा होने लगी।

इन्हीं स्थलों में से एक है “उमा शक्तिपीठ”, जहाँ माता सती के गुच्छ (केश) और चूड़ामणि गिरा था। इस स्थान की शक्ति माँ उमा हैं और भैरव भूतेश के रूप में विराजमान हैं।

मथुरा और वृंदावन वैसे ही अपनी कृष्णभक्ति के लिए विश्वविख्यात हैं। यहाँ की गलियों में प्रेम और भक्ति की गूंज सुनाई देती है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यही भूमि एक शक्तिपीठ की भी धरा है भूतेश्वर स्थान। यहाँ का वातावरण रहस्यमयी शांति से भरा हुआ है। वृंदावन की गोपियों की भक्ति और माँ उमा की शक्ति का संगम यहाँ एक अद्भुत ऊर्जा उत्पन्न करता है।

भूतेश्वर महादेव का मंदिर, जो यहाँ के भैरव स्वरूप “भूतेश” के नाम से प्रसिद्ध है, वृंदावन के प्रमुख स्थलों में गिना जाता है। माँ उमा और भूतेश की संयुक्त उपासना यहाँ भक्तों को यह स्मरण कराती है कि प्रेम और शक्ति, दोनों एक ही दिव्य ऊर्जा के दो रूप हैं।

माँ उमा को शक्ति, सौंदर्य और करुणा की देवी कहा जाता है। “उमा” शब्द का अर्थ ही है “जो मोह और अज्ञान से मुक्त करे।” यह वही उमा हैं जिन्हें हम पार्वती के नाम से जानते हैं, जिन्होंने कैलाशपति शिव को पाने के लिए घोर तपस्या की थी।

यह शक्तिपीठ सिखाता है कि सच्ची भक्ति में प्रेम, और सच्चे प्रेम में भक्ति होती है। माँ उमा के दर्शन करने मात्र से साधक के भीतर एक अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति यहाँ श्रद्धा से नमन करता है, उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और जीवन से अंधकार दूर हो जाता है।

प्रत्येक शक्तिपीठ में देवी के साथ एक भैरव का निवास अनिवार्य होता है, जो उस शक्ति की रक्षा करते हैं। उमा शक्तिपीठ के भैरव भूतेश को भूतेश्वर महादेव कहा जाता है। “भूत” शब्द का अर्थ यहाँ समय के पार, आत्माओं के स्वामी के रूप में लिया जाता है। भूतेश्वर महादेव को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि वे सभी लोकों के अधिपति माने जाते हैं। कहा जाता है कि यहाँ जो भी साधक या भक्त भय, दुःख या शंका लेकर आता है, वह भूतेश के आशीर्वाद से निर्भय हो जाता है। भूतेश्वर की आराधना से भूत-प्रेत, ग्रहदोष और कालदोष जैसे नकारात्मक प्रभाव भी दूर होते हैं। यही कारण है कि इस मंदिर में नित्य श्रद्धालु अपने जीवन के संकटों से मुक्ति पाने हेतु पूजा-अर्चना करते हैं।

उमा शक्तिपीठ का दर्शन मात्र ही एक त्रिविध साधना के समान है शक्ति की उपासना, भक्ति का अनुभव, आत्मिक शुद्धि। यहाँ भक्त सबसे पहले भूतेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं, फिर माँ उमा के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं। यह प्रक्रिया प्रतीक है  “पहले अहं का त्याग करो, फिर शक्ति का अनुभव करो।” माँ उमा की प्रतिमा अत्यंत सौम्य और तेजस्वी है। उनके माथे पर तेज की ज्योति, आँखों में करुणा और होंठों पर हल्की मुस्कान भक्तों को मातृस्नेह का अहसास कराती है। यहाँ दीपक की लौ में जैसे शिव-शक्ति का मिलन झिलमिलाता प्रतीत होता है।

कहते हैं, जब भगवान विष्णु ने सती के शरीर के अंग विच्छेद किए, तब मथुरा-वृंदावन की इस पावन भूमि पर उनके केशों का गुच्छ और चूड़ामणि गिरा, उसी स्थान पर देवी उमा की मूर्ति स्वयंभू रूप में प्रकट हुई। स्थानीय कथाओं में कहा गया है कि भूतेश्वर महादेव ने स्वयं इस स्थान की रक्षा का व्रत लिया था, और तब से वे यहीं अधिष्ठित हैं।

एक अन्य कथा यह भी है कि वृंदा देवी, जो भगवान विष्णु की परम भक्त थीं, ने भी यहाँ माँ उमा की उपासना की थी। उनके तप से प्रसन्न होकर माँ उमा ने वरदान दिया था कि “यह भूमि सदा प्रेम और भक्ति से परिपूर्ण रहेगी।” शायद यही कारण है कि वृंदावन की भक्ति और उमा की शक्ति एक-दूसरे की पूरक हैं।

उमा शक्तिपीठ में नवरात्र का पर्व अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र में माँ के नौ रूपों की पूजा होती है। चैत्र नवरात्र में विशेष रूप से उमा महाष्टमी का आयोजन होता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैं। इसके अतिरिक्त महाशिवरात्रि, वट सावित्री व्रत, श्रावण मास और पूर्णिमा के दिन यहाँ विशेष पूजा होता है। स्थानीय श्रद्धालु यह मानते हैं कि उमा और भूतेश की संयुक्त आराधना से जीवन में वैवाहिक सुख और मानसिक शांति प्राप्त होती है।

माँ उमा के मंदिर का वास्तुशिल्प उत्तर भारतीय नागर शैली में निर्मित है। मंदिर का शिखर आकाश को छूता प्रतीत होता है, मानो माँ की शक्ति स्वयं ऊपर उठ रही हो। गर्भगृह में शिवलिंग और देवी की प्रतिमा साथ-साथ स्थापित हैं, जो “अर्धनारीश्वर” की अनंत अवधारणा का मूर्त रूप है। दीवारों पर देवी के विभिन्न रूपों  कात्यायनी, भद्रकाली, त्रिपुरसुंदरी, दुर्गा और पार्वती  की सुंदर नक्काशी है। मंदिर के बाहर यज्ञकुण्ड, तुलसीवृक्ष और घंटियों की मधुर ध्वनि वातावरण को अलौकिक बना देती है।

कई श्रद्धालु बताते हैं कि जब वे माँ उमा के सम्मुख दीपक जलाते हैं, तो मन में अद्भुत शांति का संचार होता है। कुछ लोगों का कहना है कि संकट के समय यहाँ की मिट्टी का तिलक लगाने मात्र से उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आया। संत और साधक यहाँ ध्यान करते हैं, और कहते हैं कि यह स्थान ध्यान और साधना के लिए सर्वोत्तम है, क्योंकि यहाँ की ऊर्जा शुद्ध और शक्तिमय है।

यदि इस स्थान को आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो “उमा” केवल एक देवी नहीं है, बल्कि चेतना का प्रतीक हैं। उनके गिराए गए केश और चूड़ामणि इस बात के संकेत हैं कि देवी ने अपनी सज्जा नहीं, अपनी शक्ति को पृथ्वी पर प्रसारित किया। यहाँ “केश” का अर्थ है विचारों की पवित्रता, और “चूड़ामणि” का अर्थ है ज्ञान का प्रकाश। इस प्रकार, उमा शक्तिपीठ सिखाता है कि सच्चा सौंदर्य आंतरिक ज्ञान और भक्ति में निहित है।

माँ उमा का संदेश सरल लेकिन अत्यंत गहरा है  “भक्ति बिना शक्ति अधूरी है, और शक्ति बिना भक्ति अंधकार है।” वे सिखाती हैं कि जीवन में संतुलन आवश्यक है। भक्ति विनम्रता देती है, शक्ति साहस देती है, और दोनों मिलकर पूर्णता की ओर ले जाती है। उमा शक्तिपीठ केवल पूजा का स्थान नहीं है, बल्कि आत्मोन्नति का मार्ग है।

वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर स्थित उमा शक्तिपीठ आज भी भक्तों को माँ के स्नेह की अनुभूति कराता है। यहाँ आने वाला हर व्यक्ति अपने भीतर शक्ति, शांति और प्रेम का संचार महसूस करता है। माँ उमा की कोमल दृष्टि और भूतेश भैरव की कठोर रक्षा मिलकर भक्त को संपूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं।



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