टीएमसी विधायक हुमायूं कबीर ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के बेलडांगा इलाके में बाबरी मस्जिद जैसी मस्जिद बनाने की घोषणा कर दी, और इतना ही नहीं—उन्होंने यह भी कहा कि इसकी नींव 6 दिसंबर को रखी जाएगी, वही तारीख जिस दिन 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया गया था। जैसे ही यह बयान सामने आया, पूरे राज्य में राजनीतिक तापमान बढ़ गया। पोस्टर लग गए, भीड़ जुटने लगी, और माहौल अचानक गर्म हो गया। कबीर ने दावा किया कि यह स्थानीय लोगों की इच्छा है और धर्म के अधिकार के तहत किया जा रहा है। उनके मुताबिक मस्जिद के निर्माण में तीन साल लगेंगे। लेकिन बात इतनी सरल नहीं थी, क्योंकि इस घोषणा से राजनीतिक जमीन हिल गई। बीजेपी ने तुरंत इसे तुष्टिकरण की राजनीति बताया और कहा कि यह जानबूझकर धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश है। कई हिन्दू संगठनों ने क्षेत्र को संवेदनशील बताते हुए चेतावनी दी कि ऐसे कदम से सामाजिक तनाव बढ़ सकता है। उसी बीच कुछ संगठनों ने हाई कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर दी कि ऐसा बयान शांति-व्यवस्था बिगाड़ने की कोशिश है।
सबसे बड़ी बात यह कि हुमायूं कबीर की अपनी पार्टी टीएमसी ने उनसे दूरी बना ली। पार्टी नेतृत्व ने साफ कहा कि यह उनका व्यक्तिगत बयान है, न कि पार्टी का फैसला। ममता बनर्जी भी इस बयान से नाखुश बताई गईं और पार्टी ने स्पष्ट किया कि इस घोषणा को पार्टी का समर्थन नहीं है। उधर राज्यपाल सी. वी. आनंद बोस ने कानून-व्यवस्था को लेकर चिंता जताई और प्रशासन को जरूरी कदम उठाने के निर्देश दिए, जिसमें जरूरत पड़ने पर एहतियाती हिरासत तक शामिल है। मुर्शिदाबाद वैसे भी पहले से संवेदनशील जिला माना जाता है—कुछ महीने पहले वक्फ संशोधन कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन में यहाँ तनाव बढ़ चुका है। ऐसे में इस तरह की घोषणा ने प्रशासन को सतर्क कर दिया है। कुल मिलाकर, एक विधायक के बयान से बंगाल की राजनीति और कानून-व्यवस्था दोनों अचानक हिल गई हैं, और अब पूरे मामले पर नजरें टिक गई हैं कि 6 दिसंबर को वास्तव में क्या होता है।
