दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार 20 फरवरी, 2025 को बन गई। राज्य अब पहले से ज्यादा मजबूत हो गया। क्योंकि केन्द्र सरकार और राज्य सरकार एक ही पार्टी की हो गई है। दिल्ली विधानसभा की सरकार बनते ही चंद्रबाबू नायडू ने इसे नई युग की शुरुआत कहा है।
दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनते ही पूरे देश में 21 राज्यों में एनडीए की सरकार हो गई है। दिल्ली के बारे में आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल छाती ठोक कर कहते थे कि इस जन्म में तो भाजपा उन्हें नहीं हरा सकती। वहीं दिल्ली में भाजपा अरविंद केजरीवाल को हराकर सरकार बनाई है।
अब अरविंद केजरीवाल की नजर पंजाब की तरफ है यह कोई अफवाह नहीं है। मुझे लगता है कि जैसे बह दिल्ली में गलतफहमी में थे, वैसे ही पंजाब को लेकर भी गलतफहमी में हैं। क्योंकि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान को अस्थिर करने के इरादे से उन्होंने विश्व कुमार और विजय नायर को पहले ही पंजाब भेज दिया था। उन दोनों की महत्वपूर्ण पदों पर मौजूदगी पंजाव में चर्चा का विषय बनी हुई है। जबकि दोनों का पंजाब से कोई संबंध नहीं है, लेकिन सरकार की सभी फाइलें उन दोनों के माध्यम से ही मुख्यमंत्री तक पहुंचती है, जिसे ब्यूरोक्रेसी भी पसंद नहीं कर रही है।
अरविंद केजरीवाल ने अब राघव चड्डा और मनीष सिसोदिया को राजनीतिक ऑपरेशन पर लगाया है। राजनीतिक हलकों में चर्चा चल रही है कि राघव चड्डा से इस्तीफा करवा कर अरविंद केजरीवाल पंजाब से राज्यसभा में आना चाहते हैं।
राघव चड्डा को पंजाब के प्रभारी, लेकिन मनीष सिसोदिया किस हैसियत से पंजाब भेजे गए हैं? यह प्रश्न चिह्न है। दिल्ली में चुनाव हारने के बाद अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया को पंजाब भेजा, जिससे वहां राजनीतिक भूचाल खड़ा हो गया है। मनीष सिसोदिया को केजरीवाल शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीय मसीहा के रूप में प्रचारित करते रहे हैं। इसी बहाने उन्हें पंजाब भेजा गया, जहां उन्होंने कुछ स्कूलों का निरीक्षण किया। जिसका अध्यापकों और शिक्षक एसोसिएशन ने कड़ा विरोध किया है। वैसे तो किसी राज्य के शिक्षा मंत्री को भी दूसरे राज्य के स्कूलों में जाकर निरीक्षण करने का अधिकार नहीं है। जबकि मनीष सिसोदिया दूसरे राज्य के शिक्षा मंत्री भी नहीं हैं, और तो और किसी राज्य में किसी सरकारी पद पर भी नहीं हैं और कहीं से चुने हुए विधायक भी नहीं है। ऐसी स्थिति में इन्हें किसी राज्य में जाकर स्कूलों का निरीक्षण करना न्यायोचित कदापि नहीं है। इसलिए शिक्षक एसोसिएशन का विरोध करना और स्कूलों में उनके निरीक्षण पर सवाल उठाना वाजिब है।
बच्चों के अभिभावकों में भी यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि शराब घोटालेबाज कहे जाने वाले मनीष सिसोदिया को पंजाब के स्कूलों में दौरा करवा कर मुख्यमंत्री भगवंत मान बच्चों को क्या संदेश देना चाहते है। यहां तक कि आम आदमी पार्टी के विधायकों ने भी केजरीवाल के सामने यह सवाल उठाया है, इसलिए इसे बगावत का शुरुआत माना जाना चाहिए।
अरविंद केजरीवाल को पंजाब में दखलंदाजी बंद कर देना चाहिए, यदि केजरीवाल पंजाब में दख़लंदाजी बंद नहीं किया तो लगता है कि पंजाब मध्यावधि चुनाव की ओर आगे बढ़ रहा है।
दिल्ली से आम आदमी पार्टी की हार का शुरुआत हुई है, वह पंजाब की तरफ बढ़ता देख रहा है। अब देखा जाए तो दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जो हार हुई है उसका सबसे बड़ा कारण केन्द्र सरकार से टकराव की राजनीति और जनता से झूठे वायदे करना मुख्य कारण दिखता है। चुनावों से पहले ही आम आदमी पार्टी और उनके मुखिया अरविंद केजरीवाल के चेहरे और उनकी बोल पर हवा उड़ते दिखने लगा था। अरविंद केजरीवाल ने जनता का मूड भांप लिया था। ऐसे भी आम आदमी पार्टी के पास न जनता के मुद्दे थे, न ही किए गए वादों का जवाब था।
आम आदमी पार्टी ने यमुना सफाई का वादा पूरा नहीं किया था और कूड़े की अंबार पर चुप्पी साधे थी, इसी का फायदा उठा कर भारतीय जनता पार्टी ने यमुना नदी की सफाई और कूड़े की अंबार की सफाई को मुद्दा बनाया।भारतीय जनता पार्टी दिल्ली में सरकार बनाते ही पहली कैबिनेट के बाद सबसे पहले यमुना की आरती कर दिल्ली की जनता का दिल जीत लिया।
देश के किसी भी चुनाव में कोई नेता इतना एक्सपोज नहीं हुआ, जितना अरविंद केजरीवाल हुए है। यह जानते हुए भी कि उनके पहले के बयानों के वीडियो रिकॉर्ड मौजूद है, इसके बावजूद उन्होंने हर कदम पर झूठ बोला। पहले के बयानों और बाद के बयानों वाले ऐसे कई ऑडियो सोशल मीडिया दिख रहे हैं। फिर भी चुनाव में झूठ पर झूठ बोलते रहे हैं। उन्होंने 2015 में यमुना की सफाई का वादा किया था। जब यमुना की सफाई के लिए उपराज्यपाल की अध्यक्षता में कमेटी बनी, तो वे सुप्रीमकोर्ट चले गए कि उपराज्यपाल को अध्यक्ष क्यों बनाया गया। इससे ऐसा लगता है कि उन्हें घमंड हो गया था कि वह दिल्ली के मालिक है। अरविंद केजरीवाल को काम में विश्वास होता, तो इस तरह की ओछी राजनीतित नहीं करते। ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में बदलाव की राजनीति करने आए थे और अहम की लड़ाई करने लगे।
आम आदमी पार्टी ने शिक्षा और स्वास्थ्य के दो एजेंडे को लेकर दुनिया भर में अपना चेहरा चमकाने में लग गए थे। लगता है कि अरविंद केजरीवाल समझते थे कि दिल्ली की जनता को वह सारी उम्र मुर्ख बनाते रहेंगे और दिल्ली में शासन करते रहेंगे। लेकिन, चुनाव परिणाम से लगता है कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली की जनता नकार दिया है क्योंकि उनकी पार्टी को 70 सीट वाली विधानसभा में छह मुस्लिम बहुल सीटें, आठ अनुसूचित जाति की आरक्षित सीटें एवं अन्य आठ सीटों पर ही जीत मिली हैं।
आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल यदि पंजाब की सरकार में हस्तक्षेप नही करती है तो पंजाब की सरकार सही सलामत चलती रहेगी अन्यथा पंजाब सरकार पर भी इनके हस्तक्षेप के कारण मध्यावधि चुनाव के बादल मंडराने लगेंगे।