अपनी भाषा से ही हासिल होती है सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता

Jitendra Kumar Sinha
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दुनियां की सबसे सरल और सहज भाषाओं में से एक है ‘‘हिन्दी’’। जबकि हिन्दी का मूल भाषा भारत की प्राचीन भाषा संस्कृत है और संस्कृत दुनियां की सबसे प्राचीन भाषा है। संस्कृत को देव भाषा भी कहा जाता है। 

विश्व में हिन्दी भाषा बोलने और हिन्दी भाषा को समझने वालों की संख्या लगभग 80 करोड़ से अधिक है। हिन्दी शोध संस्थान देहरादून की शोध अध्ययन-2021 के अनुसार विश्व की सबसे बड़ी भाषा बन चुकी है हिन्दी। हिन्दी भाषा की लिपि है देवनागरी, जो अन्य कई देशों की भाषाओं में भी सहायक है। इसी कारण से हिन्दी राष्टीय एकता, अखण्डता और अस्मिता की प्रतीक है। आदर्शों, संस्कृतियों और परम्पराओं की एक महान संवाहिका है। भारतीय संविधान में हिन्दी को संघ की भाषा का दर्जा हासिल है और वर्तमान समय में यह वैश्विक मंच पर एक वैज्ञानिक भाषा के रूप में तेजी से अपनी पहचान स्थापित कर रही है। 


वैश्विक स्तर पर हिन्दी की निरंतर बढ़ती लोकप्रियता और महत्व से रोजगार सृजन की भी असीम संभावनाएं बढ़ी है। हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र संघ में अरबी, चीनी, अंग्रेजी, रूस, स्पेनिस, फ्रेंच और हिन्दी को एक नई प्रबलता प्रदान की है। 


हिन्दी को संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता नही देने के पीछे दो मुख्य कारण थे। पहली, कार्यविधि की नियमावली 51 में संशोधन और दो तिहाई देशों का समर्थन की चुनौती। वहीं दूसरी वजह अधिकारिक दर्जा मिलने के बाद हिन्दी में होने वाले कामकाज के खर्च उठाना।

 

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत ने कई तरह के आर्थिक संकटों का सामना किया है और इन्ही वजहों से भारत के किसी भी सरकार के लिए इस खर्च का उठाना संभव नहीं था। वहीं दूसरी तरफ मॉरिशस, सुरीनाम, त्रिनिडाड एवं टोबैगो, नेपाल और फिजी जैसे देशों में हिन्दी बोली और समझी जाती है, लेकिन वे आर्थिक और राजनीतिक रूप से भारत की मदद करने में सक्षम नहीं थे। 


वर्ष 2014 में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बनते ही, भारत में आर्थिक विकास के साथ ही, सामाजिक और सांस्कृतिक सुरक्षा को लेकर एक नए विमर्श ने जन्म ले लिया। जबकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास आरम्भ कर दिया था। इन प्रयासों के कारण ही वर्ष 2018 में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी यूएन परियोजना की शुरूआत हुई, जिसका उद्देश्य संघ की तमाम सूचनाओं का दुनियाभर में फैले हिन्दी भाषी लोगों तक पहुंचाना और उनमें वैश्विक समस्याओं से जुड़े विमर्श को बढ़ावा देना था। भारत सरकार ने 8 लाख अमेरिकी डॉलर का सहयोग भी संयुक्त राष्ट्र को किया है और अब हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ की सातवीं अधिकारिक भाषा बन चुकी है। 


विश्व में 6500 से भी अधिक भाषाएं बोली जाती है, जिसमें हिन्दी का एक विशाल दायरा है। यह भारत के लिए गर्व और स्वाभिमान का विषय है। इसलिए भारत में तेजी से बढ़ रहे अंग्रेजी भाषा के विद्यालयों की संख्या पर अंकुश लगाने की पहल होनी चाहिए और हिन्दी भाषा और अन्य भारतीय भाषाओं के उत्थान-विकास के लिए आंदोलन होना चाहिए। सांस्कृतिक आत्मनिर्भरता अपनी भाषाओं से ही हासिल हो सकती है। 


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