पटना के एक धार्मिक परिवार में 08 मई, 1896 को काजी अब्दुल वदूद का जन्म हुआ था। वे मुस्लिम परिवार में पैदा होकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में विदेशी हुकूमत की जड़ को हिलाने में एक आन्दोलनकारी सिपाही के रूप में जाने जाते हैं।
काजी अब्दुल वदूद अपनी 13 वर्ष की उम्र में कुर्रआन शरीफ को जबानी याद कर लिया था। उनकी पहली शादी लगभग 18-19 वर्ष की उम्र में हुई थी, लेकिन पत्नी की मृत्यु शीघ्र हो जाने पर कुछ वर्षों के बाद उनकी दूसरी शादी बिहार प्रदेश में पटना के भंवर पोखर मुहल्ले में रहने वाले वकील शाह रसीदुल्ला की पुत्री से हुई थी। उन्हें एक पुत्र था जिसका नाम काजी मो0 मसूद था।
काजी अब्दुल वदूद की प्रारम्भिक शिक्षा धार्मिक ढ़ंग से हुई थी। उन्होंने विद्यालय की शिक्षा अलीगढ़ से की और वहां से आगे की शिक्षा लंदन के बिलग्रामी टिटोरियल स्कूल से ली। वर्ष 1923 में उन्होंने इंग्लैंड गए जहां अर्थशास्त्र, इतिहास एवं राजनीतिशास्त्र में ट्राईपी किया। उन्होंने इंग्लैंड में 7 वर्ष तक रहे और वकालत की उपाधि प्राप्त की।
काजी अब्दुल वदूद का उर्दू शोध कार्य में योगदान स्मरणीय रहा है। उन्होंने किसी भी बात को बड़े-बड़े लेखक/कबियों के समक्ष नीडरता पूर्वक रखने से पूर्व, पूरी तरह परखते थे और कम से कम शब्दों में अपनी बात रखते थे।
भारत सरकार ने सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर शोध कार्य के लिए तथा बिहार एवं उत्तर प्रदेश के उर्दू अकादमी अवार्ड उन्हें पेश किया गया। गालिब इंस्टीच्यूट नई दिल्ली में उन्हें गालिब आबार्ड से सम्मानित किया गया। काजी अब्दुल वदूद किसी भी मान सम्मान से बहुत उपर थे।
काजी अब्दुल वदूद की मुलाकात लंदन में पंडित जवाहर लाल नेहरू से पहलीबार हुआ था। देश के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद के अलावे राष्ट्रपति डॉ0 जाकिर हुसैन एवं फखरूउद्दीन अली अहमद से उनकी मित्रता अंतिम क्षण तक बखुभी रही थी।
काजी अब्दुल वदूद सेवा के प्रति समर्पित, समाज सुधारक, मानवता प्रेमी, निस्वार्थ, निर्भिक, निडर और जुझारू, दृढ़ संकल्प, दूरदर्शिता, संवेदनशील, ईमानदार एवं स्वाभिमानी गुण के व्यक्ति थे।
काजी अब्दुल वदूद महाविद्यालय की शिक्षा के दौरान ही दिल्ली में चल रहे इंडिया नेशनल कांग्रेस के जलसे में सम्मिलित हुए और सक्रिय योगदान दिया। इस जलसे की अध्यक्षता पंडित मदन मोहन मालवीय कर रहे थे। अपनी धरती, अपने धर्म, अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए समर्पित रहने के कारण बी0ए0 पास करने के बाद वे कलकता में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में कांग्रेस की एक विशेष जलसे में शामिल हुए, जिसमें असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ था। इस असहयोग आंदोलन में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया और बाद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटि के सदस्य बनकर कार्य किया। उन्होंने बाद में प्रदेश कांग्रेस समिति की कार्यकारिणी समिति के सदस्य बने।
काजी अब्दुल वदूद ने अपना पूरा जीवन उर्दू एवं फारसी भाषा और साहित्य की सेवा में अर्पित करते हुए दिनांक 25 जनवरी, 1984 को अल्ला के प्यारे हो गए।