क्या बाइडन नहीं चाहते थे भारत में मोदी सरकार?

Jitendra Kumar Sinha
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 अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत में वोटिंग बढ़ाने के लिए सहायता राशि देने पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन बाइडन सरकार गलत कदम उठा रही थी और उसकी मंशा कुछ और लग रही थी। ट्रंप ने दावा किया कि जो बाइडन द्वारा भारत को वोटिंग बढ़ाने के लिए 21 मिलियन डॉलर (लगभग 182 करोड़ रुपये) देना कई गंभीर सवाल खड़े करता है।


'किसी और को चुनाव जिताने की थी कोशिश' - ट्रंप

गुरुवार को मियामी में एक शिखर सम्मेलन में बोलते हुए ट्रंप ने कहा, "हमें भारत में वोटिंग बढ़ाने पर 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की क्या जरूरत थी? मुझे लगता है कि वे किसी और को निर्वाचित कराने की कोशिश कर रहे थे।" उन्होंने यह भी कहा कि इस विषय पर भारत सरकार को सच्चाई से अवगत कराना होगा।

ट्रंप की यह टिप्पणी तब आई जब अरबपति एलन मस्क के नेतृत्व वाले अमेरिकी सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) ने खुलासा किया कि यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में वोटिंग को बढ़ावा देने के लिए 21 मिलियन डॉलर की राशि दी थी।


DOGE का बड़ा खुलासा

बता दें कि डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव जीतने के बाद 'कार्य दक्षता' एजेंसी DOGE बनाई थी। DOGE ने 16 फरवरी को उन सरकारी खर्चों की सूची जारी की जिनमें अमेरिकी करदाताओं के पैसे खर्च किए गए थे। इसमें भारत में मतदान बढ़ाने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर देने का खुलासा किया गया।

DOGE ने यह भी कहा कि "बांग्लादेश में राजनीतिक परिदृश्य को मजबूत करने" के लिए 29 मिलियन डॉलर की अतिरिक्त राशि निर्धारित की गई थी। यह बयान ऐसे समय में आया जब बांग्लादेश में हाल ही में राजनीतिक अस्थिरता देखी गई थी और अमेरिका की ‘डीप स्टेट’ पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को हटाने के आरोप लगे थे।


USAID को लेकर भाजपा का पलटवार

DOGE द्वारा USAID के इस फंडिंग का खुलासा किए जाने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इसे भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी हस्तक्षेप बताया। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने कहा, "यह विदेशी संस्थाओं द्वारा भारतीय संस्थानों में व्यवस्थित घुसपैठ है।"

मालवीय ने दावा किया कि इस गतिविधि के पीछे जॉर्ज सोरोस का हाथ हो सकता है, जो कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के सहयोगी माने जाते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्पष्ट रूप से भारत की चुनावी संप्रभुता पर प्रहार करने जैसा है।


भारत-अमेरिका संबंधों पर असर?

यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब भारत और अमेरिका के संबंधों को और मजबूत करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि, ट्रंप द्वारा इस मुद्दे को उठाने से यह साफ है कि अगर वे फिर से सत्ता में आते हैं तो इस विषय पर कड़े सवाल उठाए जा सकते हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि इस पूरे मामले पर भारत सरकार और विपक्षी दलों की क्या प्रतिक्रिया आती है। साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि क्या अमेरिका द्वारा इस प्रकार की फंडिंग वास्तव में भारतीय चुनाव प्रक्रिया को प्रभावित करने की कोशिश थी या फिर इसका कोई और उद्देश्य था?

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