रूद्राक्ष धारण करने वालों को अपने नित्य जीवन में, अपने आचरण और अपने कर्मों की ओर भी ध्यान देना चाहिए। उन्हें सदाचरण, सत्कर्म अपनाना चाहिए, भगवान शिव के पूजन में श्रद्धापूर्वक मन लगाना चाहिए, दुष्कर्मों को यत्नपूर्वक जीवन से निकाने का प्रयत्न करना चाहिए, तब ही रूद्राक्ष धारण करने का लाभ मिलेगा।
सात मुखी रुद्राक्ष को सप्तावरण अर्थात् उन सात आवरणों का स्वरूप माना गया है, जिनसे मानव शरीर निर्मित हुआ है यथा- पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, महत्तत्व और अहंकार। सात मुखी रुद्राक्ष को सप्त मातृका के ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इन्द्राणी और चामुण्डा के प्रतीक के रूप में भी स्वीकार किया गया है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह सात मुखी रुद्राक्ष सप्त ऋषियों को अत्यंत प्रिय रहा है। इसे धारण करने वाला मनुष्य सात आवरणों से मुक्त हो जाता है और शिव सायुज्य मुक्ति को प्राप्त करता है।
सप्तमुखी रुद्राक्ष धन-सम्पत्ति, कीर्ति और विजय प्रदान करने वाला होता है। इसको धारण करने से धनागम निरंतर बना रहता है साथ ही कार्य व्यापार में भी बढ़ोत्तरी होती है।
सप्तमुखी रुद्राक्ष को कामदेव का रूप भी माना गया है। ऐसी में मान्यता है कि इसे धारण करने वाला स्त्रियों के आकर्षण का केन्द्र बना रहता है और स्त्री सुख भरपूर मिलता है।