होली बुराई पर अच्छाई की, दुष्प्रवृत्ति एवं अमंगल विचारों का नाश की, अनिष्ट शक्तियों को नष्ट कर ईश्वरीय चैतन्य प्राप्त करने का और सदप्रवृत्ति मार्ग दिखाने वाला उत्सव के रूप में मनाया जाता है। होली के काफी दिन पहले से ही मथुरा, वृंदावन बरसाना, नंदगांव, गोकुल में होली अलग- अलग रूपों में मनाई जाती है, जो इसे विशेष बनाती है। बरसाना की लठमार होली, नंदगांव की होली और मथुरा की होली दुनियाभर में काफी मशहूर है। कई स्थानों पर होली उत्सव महीने भर पहले से ही आरंभ हो जाती है।
होली के दिन से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन होता है, होलिका दहन के लिए बच्चे घर-घर जाकर लकडियां इकट्ठी करते हैं और पूर्व उन लड़कियों की विशिष्ट पद्धति से सजाया जाता है। तत्पश्चात उसकी पूजा की जाती है । पूजा करने के उपरांत उसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है, जिसे होलिका दहन कहा जाता है।
होलिका दहन यदि 12 बजे रात के पहले होता है तो होली ठीक उसके दूसरे दिन यानि सुबह में होता है और यदि होलिका दहन 12 बजे के बाद होता है तो होली एक दिन गैप कर तीसरे दिन होता है। इसका कारण होता है भद्रा रहने का समय। क्योंकि भद्रा रहने पर होलिका दहन नहीं होता है।
होलिका दहन इस बार 13 मार्च को प्रदोष काल में किया जाएगा। पंचांग गणना के अनुसार, यह पर्व फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी के बाद पूर्णिमा तिथि पर पड़ेगा। इस दिन पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र, धृति योग के बाद शूल योग, वणिज करण के बाद बव करण और सिंह राशि के चंद्रमा की साक्षी में होलिका दहन संपन्न होगा। खास बात यह है कि इस बार 30 साल बाद होलिका दहन के दिन सूर्य, बुध और शनि की कुंभ राशि में युति बन रही है। साथ ही शूल योग और गुरुवार रात्रि 11.26 के बाव होलिका का दिन पर्व को और भी विशिष्ट बना रहे है। आखिरी बार ऐसा संयोग 1995 में बना था।
धर्मशास्त्रों के अनुसार होलिका दहन भद्रा समाप्त होने के बाद ही किया जाना चाहिए। अतः रात्रि 11. 26 के बाद दहन शुभ रहेगा। होलिका दहन के दिन 13 मार्च को सुबह 10.35 बजे से रात 11.26 बजे तक भद्रा का प्रभाव रहेगा। धर्मशास्त्रों के अनुसार प्रदोष काल में पूजन बहुत फलदायी होता है। पंचांग के मुताबिक, इस बार सिंह राशि का चंद्रमा भद्रा का वास पृथ्वी पर बता रहा है, लेकिन बड़े पर्वों के दौरान भद्रा की पूंछ का विचार किया जाता है।