शिवपुराण में बताया गया है कि भगवान शिव को रूद्राक्ष सर्वाधिक प्रिय है और रूद्राक्ष दर्शन, स्पर्श और जाप से पापों का नाश होता है। रूद्राक्ष की महत्ता को देखते हुए आजकल भारतीय अध्यात्म का अनुशरण करने वाले अनेक देशों में रूद्राक्ष की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
नव- मुखी रुद्राक्ष को नवशक्ति से सम्पन्न माना जाता है। यह धारक को नई-नई शक्तियाँ प्रदान करने वाला होता है। नौ-मुखी रुद्राक्ष को नौ तीर्थों यथा- पशुपतिनाथ, मुक्तिनाथ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, विश्वनाथ, जगन्नाथ, पारसनाथ, वैद्यनाथ तथा नाथ सम्प्रदाय के नौ नाथों- नागार्जुन नाथ, जड़भरतनाथ, हरिश्चन्द्र नाथ, सत्यनाथ, भीमनाथ, गोरखनाथ, चर्पटनाथ, जालंधरनाथ तथा मलयार्जुननाथ आदि के स्वरूप का प्रतीक माना गया है। इसी प्रकार शास्त्रों में नव- मुखी रुद्राक्ष को नवार्ण मंत्र (ओ३म् ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे) के ज्ञान स्वरूप शक्ति से युक्त माना गया है। इस महिमाशाली रुद्राक्ष को नवग्रहों तथा नवदुर्गाओं के स्वरूप का प्रतीक भी माना गया है। नव- मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला साक्षात् नवनाथ स्वरूप हो जाता है और उसे नवरात्र व्रत से भी अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है।
नव- मुखी रुद्राक्ष को कुछ विद्वानों ने भैरव का स्वरूप भी माना है। इसे बायीं भुजा पर बाँधने से मनुष्य शिवत्व भावना रखता है तथा योग और मोक्ष को प्राप्त करता है। नव- मुखी रुद्राक्ष धारण करने वाला व्यक्ति सदा सबका हितचिंतक होता है। वह तन, मन से सदा पवित्र रहता है।
नव- मुखी रुद्राक्ष भैरव और यम का प्रतीक है। इसको बाएँ हाथ में पहनने से बल प्राप्ति होती है तथा भ्रूणहत्या का दोष नहीं लगता।
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