तमिलनाडु की एम.के. स्टालिन सरकार ने बजट में रुपये के आधिकारिक प्रतीक '₹' की जगह तमिल प्रतीक 'ரூ' (रूपई) का इस्तेमाल किया है। हालांकि, यह कदम क्षेत्रीय पहचान को मजबूत करने के नाम पर लिया गया है, लेकिन यह भाषा के आधार पर देश को बांटने की राजनीति की ओर इशारा करता है।
राष्ट्रीय प्रतीक को बदलना सही है?
रुपये का प्रतीक '₹' पूरे देश का आधिकारिक प्रतीक है, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अपनाया गया था। यह प्रतीक भारत की विविधता और एकता का प्रतिनिधित्व करता है। तमिलनाडु सरकार द्वारा इसे हटाकर क्षेत्रीय प्रतीक का उपयोग करना न केवल संविधान का उल्लंघन है, बल्कि यह राष्ट्र की अखंडता को भी चोट पहुंचाता है।
हिंदी थोपने का मुद्दा कितना सही?
तमिलनाडु सरकार का यह तर्क कि हिंदी थोपने के विरोध में यह कदम उठाया गया है, पूरी तरह से तर्कहीन है। रुपये का प्रतीक '₹' हिंदी का नहीं, बल्कि पूरे भारत का प्रतीक है, जिसे भारतीय संस्कृति और इतिहास को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया था। इसे हटाकर तमिल प्रतीक 'ரூ' को अपनाना, क्षेत्रीय राजनीति को हवा देना है।
देश की एकता पर असर
यदि हर राज्य अपनी भाषा के हिसाब से राष्ट्रीय प्रतीकों को बदलना शुरू कर दे, तो यह देश की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा बन जाएगा। इससे अन्य राज्यों में भी अलगाववाद की भावना को बढ़ावा मिलेगा, जो राष्ट्रीय विकास और सौहार्द के लिए हानिकारक है।
जनता की असली समस्याओं से ध्यान भटकाना
यह फैसला ऐसे समय में लिया गया है, जब राज्य को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और बुनियादी ढांचे जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है। भाषा के नाम पर विवाद खड़ा कर सरकार जनता का ध्यान असली समस्याओं से भटका रही है।
तमिलनाडु सरकार का यह कदम राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान के साथ-साथ देश की एकता को कमजोर करने वाला है। क्षेत्रीय पहचान को बढ़ावा देना जरूरी है, लेकिन इसे राष्ट्रीय हितों की कीमत पर नहीं किया जाना चाहिए।