भारत के न्यायिक इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में नियुक्त किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी है, और वे 14 मई 2025 को पदभार ग्रहण करेंगे। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
जस्टिस गवई की नियुक्ति कई मायनों में ऐतिहासिक है। वे भारत के दूसरे दलित मुख्य न्यायाधीश होंगे, इससे पहले यह सम्मान के.जी. बालाकृष्णन को मिला था। उनका जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। उनके पिता, आर.एस. गवई, एक प्रमुख अंबेडकरवादी नेता थे और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के अध्यक्ष रह चुके हैं। जस्टिस गवई का परिवार बौद्ध धर्म का पालन करता है और बाबा साहेब अंबेडकर की विचारधारा से प्रेरित है।
जस्टिस गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत की शुरुआत की। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ में संवैधानिक और प्रशासनिक कानूनों में विशेषज्ञता हासिल की। वे नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील रहे। 14 नवंबर 2003 को उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया, और 12 नवंबर 2005 को स्थायी न्यायाधीश बने। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए।
उनका कार्यकाल लगभग छह महीने का होगा, क्योंकि वे 23 दिसंबर 2025 को 65 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्त होंगे। हालांकि यह अवधि छोटी है, लेकिन उनकी नियुक्ति न्यायपालिका में विविधता और समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
जस्टिस गवई को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक मूल्यों के पक्षधर के रूप में जाना जाता है। उनकी नियुक्ति से न्यायपालिका में सामाजिक न्याय और समावेशिता के नए मानदंड स्थापित होने की उम्मीद है।
उनकी नियुक्ति पर देशभर से शुभकामनाएं मिल रही हैं, और यह उम्मीद की जा रही है कि वे अपने कार्यकाल में न्यायपालिका को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।