बक्सर का बवंडर: दिल्ली की गद्दी, लंदन के हाथ

Jitendra Kumar Sinha
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भारत का इतिहास संघर्षों, विजयों और सांस्कृतिक बदलावों से भरा हुआ है। 16वीं से 18वीं सदी के बीच भारत पर मुगलों का शासन था, जिनकी सत्ता ने भारत को एक सशक्त और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बनाया। लेकिन 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में एक विदेशी व्यापारिक कंपनी, ईस्ट इंडिया कंपनी, ने न केवल व्यापार के बहाने भारत में प्रवेश किया बल्कि धीरे-धीरे मुगल साम्राज्य को कमजोर करते हुए सत्ता को अपने हाथों में ले लिया। यह लेख विस्तार से वर्णन करेगा कि कैसे ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में मुगलों को पीछे छोड़ा और ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी।


मुगलों की शक्ति और भारत में उनका शासन

मुगल वंश की स्थापना 1526 में बाबर द्वारा पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराकर की गई थी। इसके बाद अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगज़ेब जैसे सम्राटों ने इस साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। मुगलों ने एक मजबूत प्रशासनिक ढांचा, न्याय व्यवस्था, कला और स्थापत्य की मिसालें पेश कीं। लेकिन औरंगज़ेब की मृत्यु (1707) के बाद मुगल साम्राज्य में विघटन शुरू हुआ। उत्तराधिकार के संघर्ष, क्षेत्रीय नवाबों की बढ़ती स्वतंत्रता और प्रशासनिक भ्रष्टाचार ने मुगलों की नींव को हिला दिया।


ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 में इंग्लैंड में एक व्यापारिक कंपनी के रूप में हुई थी। भारत में उसका पहला पड़ाव 1608 में सूरत के बंदरगाह पर था। शुरू में कंपनी ने केवल व्यापार की अनुमति ली – मसालों, रेशम, सूती कपड़ों और चाय का व्यापार। लेकिन धीरे-धीरे कंपनी ने भारत की राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू किया। व्यापारिक लाभ को सुरक्षित रखने के लिए कंपनी ने अपनी निजी सेना गठित की, जो आगे चलकर ब्रिटिश साम्राज्य की शक्ति का आधार बनी।


राजनीतिक अस्थिरता और कंपनी का अवसर

18वीं सदी की शुरुआत में भारत में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही थी। मुगल सम्राट नाम मात्र के शासक रह गए थे और असली शक्ति क्षेत्रीय शासकों – जैसे कि बंगाल, अवध, हैदराबाद और मराठों – के हाथों में आ गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस अस्थिरता का लाभ उठाया।


प्लासी की लड़ाई (1757): सत्ता की पहली सीढ़ी

ईस्ट इंडिया कंपनी और मुगलों के पतन की कहानी में एक निर्णायक मोड़ 1757 की प्लासी की लड़ाई थी। नवाब सिराजुद्दौला और कंपनी के बीच यह युद्ध हुआ। रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में कंपनी ने षड्यंत्रपूर्वक नवाब के सेनापति मीर जाफर को अपने पक्ष में कर लिया। सिराजुद्दौला की हार हुई और मीर जाफर को बंगाल का नवाब बना दिया गया। इससे कंपनी को बंगाल की प्रशासनिक और आर्थिक शक्ति मिल गई।


बक्सर की लड़ाई (1764): निर्णायक वर्चस्व

1764 में बक्सर की लड़ाई ने कंपनी के भारत में वर्चस्व को और मजबूत किया। यह युद्ध मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के नवाब मीर कासिम के गठबंधन और कंपनी के बीच लड़ा गया। इस लड़ाई में कंपनी की जीत हुई और इसके बाद 1765 में शाह आलम द्वितीय ने कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व संग्रह) का अधिकार दे दिया। यह वह क्षण था जब कंपनी केवल व्यापारी नहीं, बल्कि शासक बन गई।


मुगलों की गिरती हुई स्थिति

1765 के बाद से मुगल सम्राट केवल नाम के राजा रह गए थे। उनकी सत्ता दिल्ली के लाल किले तक सिमट गई थी। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फ़र केवल प्रतीकात्मक शासक थे।


ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियाँ और प्रभाव

कंपनी ने एक के बाद एक भारतीय राज्यों पर कब्ज़ा करना शुरू किया।

  • राजनीतिक हड़प नीति (Doctrine of Lapse): लॉर्ड डलहौजी की इस नीति के अनुसार जिन राज्यों में उत्तराधिकारी नहीं होते थे, उन्हें ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जाता था। झांसी, सतारा और नागपुर जैसे राज्य इसके शिकार बने।

  • स्थायी बंदोबस्त नीति: बंगाल में जमींदारी प्रथा को बढ़ावा देकर कंपनी ने राजस्व संग्रह आसान किया लेकिन किसानों की स्थिति खराब होती चली गई।

  • फूट डालो और राज करो: भारतीय समाज में जाति, धर्म और भाषा के नाम पर भेदभाव कर कंपनी ने लोगों को बाँटने का काम किया।


भारत में विद्रोह और असंतोष

कंपनी की नीतियों और दमन ने जन असंतोष को जन्म दिया। 1857 का विद्रोह – जिसे भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है – ईस्ट इंडिया कंपनी के अत्याचारों के विरुद्ध था। यह विद्रोह व्यापक था और इसमें भारतीय सैनिकों, किसानों, ज़मींदारों और आम जनता ने भाग लिया। भले ही यह विद्रोह असफल रहा, लेकिन इसने ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन को हिला कर रख दिया।


1858: कंपनी से ताज की सत्ता तक

1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भंग कर दिया और भारत को सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर लिया। 1858 में "गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट" पारित हुआ और कंपनी के स्थान पर वायसराय प्रणाली लागू हुई। इसी के साथ भारत में ब्रिटिश राज की शुरुआत हुई और मुगल शासन का पूर्ण अंत हो गया।


मुगल साम्राज्य की कमजोरी, उत्तराधिकार की लड़ाई और प्रशासनिक शिथिलता ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में जड़ें जमाने का अवसर दिया। कंपनी ने व्यापार के बहाने प्रवेश किया लेकिन चतुराई, सैन्य बल और विभाजन की नीति के ज़रिये भारत को अपने अधीन कर लिया। यह एक ऐतिहासिक चेतावनी है कि आंतरिक कमजोरी और बाहरी चतुराई कैसे मिलकर किसी भी सम्राट को गद्दी से हटा सकती हैं।


भारत की यह ऐतिहासिक यात्रा हमें यह सिखाती है कि शक्ति, एकता और सजगता किसी भी राष्ट्र के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती है।

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