नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लागू किए गए वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर देशभर में चर्चा तेज हो गई है। इस बीच, महाराष्ट्र, असम, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की सरकारों ने इस कानून का समर्थन करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एकजुट होकर कहा है कि यह नया कानून पारदर्शी, निष्पक्ष और संतुलित है।
इन राज्य सरकारों ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर यह भी स्पष्ट किया कि यह अधिनियम वक्फ संपत्तियों से जुड़े मामलों में लंबे समय से चली आ रही अनियमितताओं और विवादों को सुलझाने के लिए जरूरी कदम है। उनका मानना है कि इससे न केवल वक्फ संपत्तियों का सही प्रबंधन और संरक्षण हो पाएगा, बल्कि इससे धार्मिक समुदायों का विश्वास भी कायम रहेगा।
क्या है वक्फ संशोधन अधिनियम?
वक्फ बोर्डों के अधीन आने वाली संपत्तियों की निगरानी और प्रबंधन को लेकर केंद्र सरकार ने इस अधिनियम में कई अहम बदलाव किए हैं। संशोधन का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के रख-रखाव, उपयोग और रिकॉर्ड-रखाव को डिजिटल और पारदर्शी प्रक्रिया के तहत लाना है।
यह अधिनियम उन मामलों पर भी ध्यान केंद्रित करता है जहां वक्फ संपत्तियों पर अवैध कब्जे, दुरुपयोग या गलत तरीके से लीज देने जैसे गंभीर आरोप सामने आए हैं।
विपक्ष और मुस्लिम संगठनों की चिंता
हालांकि कई राज्य सरकारें इस कानून का समर्थन कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ मुस्लिम संगठन और विपक्षी दलों ने इस अधिनियम को धार्मिक हस्तक्षेप करार दिया है। उनका कहना है कि इससे वक्फ संपत्तियों की स्वायत्तता और धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर आंच आ सकती है।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
इस अधिनियम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई जारी है। महाराष्ट्र, असम, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने संयुक्त रूप से कोर्ट में यह पक्ष रखा है कि नया कानून किसी के धार्मिक अधिकारों का हनन नहीं करता, बल्कि यह संपत्तियों की सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर देश में मिलेजुले प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। एक ओर जहां इसे सुधारात्मक और पारदर्शिता बढ़ाने वाला कदम बताया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे धार्मिक मामलों में दखल के तौर पर देख रहे हैं। अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि यह कानून संविधान सम्मत है या नहीं।