सैम मानेकशॉ: भारतीय सेना के अद्वितीय नायक और उनकी उपेक्षा

Jitendra Kumar Sinha
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सैम मानेकशॉ भारतीय सेना के एक महान जनरल थे, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना की अभूतपूर्व सफलता में अहम भूमिका निभाई। उनका करियर न केवल सैन्य दृष्टिकोण से प्रेरणादायक था, बल्कि उनके नेतृत्व, रणनीति और साहस ने भारतीय सेना को एक नई पहचान दी। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भारत को 1971 में ऐतिहासिक जीत मिली, तो सैम मानेकशॉ को उतना सम्मान और मान्यता क्यों नहीं मिली, जितना कि वे इसके हकदार थे? कांग्रेस सरकार और भारतीय राजनीति ने उनके योगदान को किस प्रकार नजरअंदाज किया? आइए जानते हैं।


सैम मानेकशॉ का सैन्य करियर

सैम मानेकशॉ का सैन्य करियर काफी प्रेरणादायक था। उनका जीवन भारतीय सेना में उच्चतम शिखरों तक पहुंचने की कहानी है। उन्होंने भारतीय सेना में कई प्रमुख पदों पर कार्य किया और अपनी कड़ी मेहनत, उत्कृष्ट नेतृत्व और युद्धक रणनीति के लिए प्रसिद्ध हुए। 1971 के युद्ध में भारतीय सेना की अभूतपूर्व सफलता में उनकी भूमिका अविस्मरणीय रही। उनका विश्वास था कि एक सशक्त और तैयार सेना देश की सुरक्षा का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है।


मानेकशॉ की सैन्य रणनीतियाँ न केवल उनके नेतृत्व का प्रतीक थीं, बल्कि उन्होंने भारतीय सेना को एक नई दिशा दी। उन्होंने भारतीय सेना की तैयारियों को उच्चतम स्तर पर रखा और पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक युद्ध के लिए उन्हें सक्षम किया।


कांग्रेस सरकार और सैम मानेकशॉ की उपेक्षा

जब 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को हराया, तो यह भारतीय सैन्य इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय बन गया। हालांकि, जब बात सैम मानेकशॉ के योगदान की आई, तो कांग्रेस सरकार ने उन्हें उतना सम्मान नहीं दिया जितना वह हकदार थे। भारतीय राजनीति और कांग्रेस सरकार ने सैम मानेकशॉ के योगदान को सीमित किया और उनके नेतृत्व को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया।


यह दुर्भाग्यपूर्ण था कि जब भारतीय सेना ने सैम मानेकशॉ की नेतृत्व में शानदार जीत हासिल की, तब कांग्रेस ने इस महान सैन्य नेता के योगदान को सही तरीके से सार्वजनिक रूप से स्वीकार नहीं किया। उनकी सैन्य रणनीतियों, उनके नेतृत्व और पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक जीत को आम जनता तक नहीं पहुँचाया गया, और सैम मानेकशॉ का नाम अक्सर अन्य सैन्य नेताओं के साथ छिपा रहा।


कांग्रेस सरकार और राजनीति का खेल

सैम मानेकशॉ का राजनीति से कोई संबंध नहीं था, और वे एक सैन्य व्यक्ति थे। उनकी यह निष्ठा और समर्पण राजनीति से परे था, जो शायद कांग्रेस सरकार को कभी रास नहीं आया। वे सशस्त्र बलों के उच्चतम पद पर रहते हुए भी हमेशा भारतीय राजनीति से दूर रहे। यह हो सकता है कि कांग्रेस सरकार ने सैम मानेकशॉ के सैन्य करियर को बढ़ावा नहीं दिया, क्योंकि उनकी यह स्पष्टता और निष्ठा सत्ता के इर्द-गिर्द बनी राजनीति से मेल नहीं खाती थी।


इसके अलावा, गांधीजी और नेहरू के बाद कांग्रेस के नेतृत्व ने खुद को स्वतंत्रता संग्राम का बड़ा नायक घोषित किया था, और जो भी नेता उनके विचारों से अलग था, उसे कम महत्वपूर्ण माना गया। सैम मानेकशॉ का सैन्य दृष्टिकोण और युद्धक रणनीति इस धारा से अलग थी, जो शायद कांग्रेस के लिए सुविधाजनक नहीं था।


समर्पण और योगदान की उपेक्षा

सैम मानेकशॉ का योगदान न केवल भारतीय सेना के लिए, बल्कि भारतीय राजनीति और समाज के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण था। उन्होंने भारतीय सेना को एक नई दिशा दी और अपने अद्वितीय नेतृत्व से भारतीय सैनिकों के मनोबल को ऊँचा किया। इसके बावजूद, उनका नाम और योगदान सही तरीके से सम्मानित नहीं किया गया।


उनकी उपेक्षा का असर न केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर पड़ा, बल्कि भारतीय सैन्य इतिहास को भी उचित स्थान नहीं मिला। भारतीय राजनीति और कांग्रेस सरकार ने समर्पण और नेतृत्व के मामले में उनके योगदान को नजरअंदाज कर दिया, और उनकी वीरता को सही तरीके से प्रस्तुत नहीं किया।


सैम मानेकशॉ का योगदान भारतीय सेना और देश के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था, और उनकी सैन्य रणनीतियाँ आज भी एक आदर्श हैं। हालांकि, कांग्रेस सरकार और भारतीय राजनीति ने उन्हें उतना सम्मान नहीं दिया, जितना कि वे हकदार थे। उनका जीवन एक प्रेरणा है और हमें यह समझने की आवश्यकता है कि सैम मानेकशॉ जैसे सैन्य नायक का सम्मान करना हमारे देश की सैन्य धरोहर का सम्मान करना है। हमें उनके योगदान को सही तरीके से पहचानने और भविष्य में इसे बढ़ावा देने की जरूरत है।

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