बिहार की बंद चीनी मिलों में फिर से मिठास की उम्मीद

Jitendra Kumar Sinha
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बिहार सरकार ने राज्य की दो प्रमुख बंद चीनी मिलों—सकरी (मधुबनी) और रैयाम (दरभंगा)—को पुनर्जीवित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। गन्ना उद्योग विभाग ने इन मिलों की संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन कराने का निर्णय लिया है, जिसके लिए एसबीआई कैप्स, कोलकाता को नियुक्त किया गया है।


इतिहास की झलक

सकरी चीनी मिल की स्थापना 1933 में महाराजा कामेश्वर सिंह ने की थी, जबकि रैयाम मिल भी राज्य की पुरानी और प्रतिष्ठित मिलों में से एक रही है। हालांकि, 1990 के दशक में इन मिलों का संचालन बंद हो गया, जिससे हजारों किसानों और कर्मचारियों की आजीविका प्रभावित हुई।


पुनर्मूल्यांकन और भविष्य की योजना

गन्ना उद्योग विभाग ने इन मिलों की संपत्तियों का पुनर्मूल्यांकन कराने का निर्णय लिया है, जिसके लिए एसबीआई कैप्स, कोलकाता को नियुक्त किया गया है। इस पहल का उद्देश्य इन परिसरों में गन्ना आधारित उद्योगों की स्थापना करना है, जिसमें चीनी मिलों के साथ-साथ इथेनॉल प्लांट्स की स्थापना की संभावना भी शामिल है। इससे क्षेत्र के हजारों किसानों को लाभ मिलने की उम्मीद है।


पूर्व प्रयास और वर्तमान स्थिति

2006 में भी एसबीआई कैप्स ने राज्य की 15 बंद चीनी मिलों का मूल्यांकन किया था, जिसमें से आठ मिलों की जमीन बिहार औद्योगिक क्षेत्र विकास प्राधिकरण (BIADA) को हस्तांतरित की गई थी। शेष सात मिलों में से कुछ को निजी कंपनियों को लीज पर दिया गया था, लेकिन लीज की शर्तों के उल्लंघन के कारण रैयाम और सकरी मिलों के अनुबंध 2021 में समाप्त कर दिए गए।​ 


किसानों के लिए आशा की किरण

इन मिलों के पुनः संचालन से न केवल स्थानीय किसानों को अपनी उपज का बेहतर मूल्य मिलेगा, बल्कि क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे। इसके अलावा, इथेनॉल उत्पादन से राज्य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में भी मदद मिलेगी।


राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

बिहार में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया से पहले इन मिलों के पुनर्जीवन की योजना को अंतिम रूप दिया जा सकता है। यह कदम सरकार की ग्रामीण विकास और औद्योगिकीकरण की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।


बिहार की चीनी मिलों का पुनर्जीवन न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राज्य के औद्योगिक इतिहास को पुनः जीवंत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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