21 मई को देशभर में आतंक विरोधी दिवस मनाया जाता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि आतंकवाद किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है और एकजुट समाज ही इसकी सबसे बड़ी ताकत होती है। इस मौके पर हम भारत-पाक सीमा पर स्थित एक ऐसे इलाके की बात कर रहे हैं, जो देश के लिए मिसाल है। यह इलाका है राजस्थान का बाड़मेर जिला, जो पाकिस्तान के सिंध प्रांत से सटा हुआ है। यहां हिन्दू और मुसलमानों के रिश्ते इतने मजबूत और गहरे हैं कि आतंकवाद यहां कभी जड़ें नहीं जमा पाया।
1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो सिंध प्रांत पाकिस्तान में चला गया। लेकिन इसकी सांस्कृतिक डोर बाड़मेर, जैसलमेर और गुजरात के कच्छ क्षेत्र से अब भी जुड़ी हुई है। भारत में बाड़मेर और पाकिस्तान में सिंध के लोग आज भी रिश्तेदार, साझी विरासत और परंपराओं में बंधे हैं। यहां की खास बात यह है कि दोनों ओर के हिन्दू और सिंधी मुसलमानों में अब भी रोटी-बेटी का संबंध है। बाड़मेर के कई गांवों में मुसलमान अपने घर की गाय को "अम्मा" कहते हैं। वे हिन्दू त्योहारों में शरीक होते हैं, और हिन्दू परिवार ईद पर उनके घर जाते हैं। यह आपसी प्रेम ही है जो धर्म से ऊपर इंसानियत को रखता है, और आतंक की जहरीली सोच को यहां पनपने नहीं देता है।
यहां के गांवों में हिन्दू और मुसलमान मिलकर होली, दीवाली, ईद और मोहर्रम मनाते हैं। जब किसी परिवार में शादी होती है तो पूरा गांव मेहमान बनता है, चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। गफूर अहमद, बुरहान का तला गांव के बुजुर्ग, बताते हैं, “हम गाय को अम्मा कहते हैं। हमारे गांव में किसी ने कभी सांप्रदायिक बात नहीं की। अगर कोई मुसाफिर रात में कहीं भी रुक जाए, तो हिन्दू और मुसलमान दोनों ही पहले उसे खाना और पानी देंगे।”
बाड़मेर और सिंध का अधिकतर इलाका रेगिस्तान है। यहां आबादी छितरी हुई है। ऊबड़-खाबड़ जमीन, तेज गर्मी और जल संसाधनों की कमी की वजह से यह क्षेत्र आतंकवादियों के लिए मुफीद नहीं है। सिंध प्रांत में पाकिस्तान के अन्य क्षेत्रों की तुलना में सबसे अधिक हिन्दू आबादी है। वहीं, बाड़मेर के मुसलमान राष्ट्रभक्त और जागरूक हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की बार-बार कोशिशों के बावजूद उन्हें यहां कोई समर्थन नहीं मिला। सिंध क्षेत्र में भारत समर्थक कई हिन्दू परिवार रहते हैं, जिनके रिश्तेदार भारत में हैं। किसी भी असामान्य गतिविधि की जानकारी भारत तक जल्द पहुंचती है।
1965 में पाकिस्तान ने भारत पर युद्ध थोपने की कोशिश की थी। लेकिन बाड़मेर से भारत ने मुंहतोड़ जवाब दिया था। भारत की सेना सुंदरा तक घुस गई थी और दुश्मन को पीछे धकेल दिया था। 1971 में जब बांग्लादेश की आजादी की लड़ाई के दौरान पाकिस्तान ने फिर भारत पर हमला किया था, तब भी भारतीय सेना ने बाखासर से कूच कर करीब 8000 वर्ग किलोमीटर सिंध की जमीन पर कब्जा कर लिया था। यह युद्ध भारत की निर्णायक जीत थी और इसमें बाड़मेर सीमा का विशेष योगदान रहा था। 1999 में जब कारगिल में पाकिस्तान ने गुपचुप घुसपैठ की, तब बाड़मेर सीमा पूरी तरह शांत रही। पाकिस्तान ने यहां बढ़ने की कोशिश तक नहीं की। यह भारत की सीमा सुरक्षा और स्थानीय आबादी की देशभक्ति का प्रमाण है।
पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने कई बार इस क्षेत्र में हेरोइन, हथियार और जासूसी नेटवर्क बनाने की कोशिश की। लेकिन हर बार भारत की एजेंसियों और स्थानीय लोगों ने मिलकर इन साजिशों को नाकाम कर दिया। सीमा पार से तस्करी का प्रयास करने वाले कई बार पकड़े गए हैं। बाड़मेर की BSF और स्थानीय पुलिस ने मिलकर कई ऑपरेशन चलाए, जिनमें तस्करों को जेल की हवा खानी पड़ी। यहां के सिंधी मुसलमान खुद पाकिस्तान की साजिशों के खिलाफ हैं। वे न सिर्फ इन गतिविधियों में शामिल नहीं होते, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों को अलर्ट भी करते हैं।
बाड़मेर और सिंध के लोगों की साझी भाषा सिंधी है। यह सांस्कृतिक जुड़ाव न सिर्फ बातचीत को सहज बनाता है, बल्कि दिलों को भी जोड़ता है। यहां के लोकगीतों में सरहदों के पार के रिश्तों की झलक मिलती है। विवाह, तीज-त्योहार और अन्य सामाजिक अवसरों पर लोकसंगीत से बंधा यह समाज अपने साझा अतीत को जीता है।
1971 के युद्ध में भारत द्वारा सिंध में प्रवेश और वहां के हिन्दुओं की रक्षा के लिए किए गए प्रयास आज भी वहां के लोगों के मन में बसे हैं। सिंध के कई लोग आज भी भारत को मित्र और रक्षक मानते हैं। जहां पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में भारत विरोधी सोच को बढ़ावा दिया गया है, वहीं सिंध में भारत के प्रति नरमी और प्रशंसा दिखती है। सिंधी समाज भारत के प्रति सांस्कृतिक लगाव महसूस करता है।
जब देश के अन्य सीमांत क्षेत्रों जैसे कश्मीर, पंजाब या पूर्वोत्तर में कभी-कभार अस्थिरता दिखती है, वहां बाड़मेर बॉर्डर पूर्णतः शांत और सद्भावना से भरा रहता है। यहां की सीमा सुरक्षा बल (BSF) और आम नागरिकों के बीच बेहद अच्छा तालमेल है। नागरिक ना केवल सुरक्षाबलों की सहायता करते हैं, बल्कि किसी भी संदिग्ध गतिविधि की तुरंत जानकारी भी देते हैं।
बाड़मेर को राष्ट्रीय सुरक्षा, सांप्रदायिक सौहार्द और आतंक विरोधी सहयोग के मामले में एक आदर्श मॉडल के रूप में देखा जाना चाहिए। यह भी महत्वपूर्ण है कि सरकार इस क्षेत्र के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य की योजनाओं को और गति दे ताकि यह सामाजिक सौहार्द भविष्य में भी बरकरार रहे।
बाड़मेर और सिंध की सरहदें सिर्फ देशों को नहीं बांटतीं, बल्कि यह दिखाती हैं कि सरहदों से ऊपर उठकर भी रिश्ते निभाए जा सकते हैं। इस इलाके के हिन्दू और मुसलमानों ने मिलकर यह साबित कर दिया है कि जब समाज में आपसी प्रेम, विश्वास और अपनापन हो, तो कोई भी आतंकवादी ताकत वहां पैर नहीं जमा सकती।
देश के लोगों को बाड़मेर जैसे इलाकों से सीखना चाहिए, जहां इंसानियत की मिट्टी इतनी उपजाऊ है कि नफरत की कोई घास वहां उग नहीं सकता।