अमेरिकी सरकार चीनी के छात्रों का वीजा रद्द करेगी

Jitendra Kumar Sinha
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हाल ही में अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक चौंकाने वाली घोषणा की है कि अमेरिका अब कुछ चीनी छात्रों का वीजा रद्द करने का प्रक्रिया शुरू करेगा। इस निर्णय के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात कहा जा रहा है। 

अमेरिकी प्रशासन ने जिन छात्रों का वीजा रद्द करने का तैयारी किया है, उनमें अधिकांश पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) से संबंध होने का आरोप है। इन छात्रों में से कई अमेरिका के उन विश्वविद्यालयों में पढ़ाई कर रहा हैं जहां संवेदनशील तकनीकी विषयों, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष विज्ञान और बायोटेक्नोलॉजी में शोध कार्य हो रहा है। अमेरिका को आशंका है कि यह छात्र संवेदनशील जानकारी चीन सरकार को पहुंचा सकता है।

विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर स्पष्ट किया है कि यह कदम "राष्ट्रीय सुरक्षा की मजबूरी" के तहत उठाया गया है। उनका मानना है कि अमेरिका में चीनी छात्रों की उपस्थिति, खासकर तकनीकी क्षेत्रों में, एक रणनीतिक खतरे के रूप में देखा जा रहा है। इस फैसले का मकसद अमेरिका की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करना है।

बीजिंग में इस निर्णय पर तीव्र प्रतिक्रिया देखने को मिल रहा है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने अमेरिका की इस कार्रवाई की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि यह अमेरिका की वैश्विक छवि और विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाएगा। उन्होंने कहा है कि “विचारधारा और राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर चीनी छात्रों को निशाना बनाना न केवल अनुचित है, बल्कि शैक्षणिक स्वतंत्रता पर भी हमला है।”

विदेशी छात्रों की बात करें तो भारत के बाद चीन, अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों की सूची में दूसरे नंबर पर आता है। हर वर्ष हजारों चीनी छात्र अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आता हैं। वीजा रद्द होने की स्थिति में इन छात्रों को अकादमिक, मानसिक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ेगा। साथ ही अमेरिका की विश्वविद्यालय प्रणाली भी इससे प्रभावित हो सकता है, जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर आर्थिक रूप से काफी निर्भर रहता है।

इस घोषणा से पहले अमेरिका ने चीनी छात्रों के नए वीजा साक्षात्कार पर भी रोक लगा दिया था। इससे स्पष्ट संकेत मिलता हैं कि अमेरिका की रणनीति अब केवल निगरानी तक सीमित नहीं है, बल्कि सक्रिय निष्कासन की ओर बढ़ रहा है।

इस घटनाक्रम से एक बड़ा प्रश्न उठता है कि क्या शिक्षा और छात्र अब वैश्विक राजनीति का नया मोर्चा बन चुका हैं? क्या यह कदम आतंकवाद या सुरक्षा चिंताओं से प्रेरित है, या यह दोनों देशों के बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव का हिस्सा है? इस निर्णय से न केवल अमेरिका और चीन के संबंधों में नई खटास आ सकता है, बल्कि हजारों छात्रों का भविष्य भी अधर में लटक सकता है। 



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