पालतू श्वान ने काटा - श्वान मालिक पहुंचा जेल

Jitendra Kumar Sinha
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मुंबई के एक अपार्टमेंट में घटित घटना ने पालतू जानवरों को लेकर जागरूकता और जिम्मेदारी के सवाल को फिर से उठा दिया है। पालतू श्वान (कुत्ते) द्वारा लिफ्ट में एक पड़ोसी को काटने के मामले में अदालत ने श्वान के मालिक ऋषभ पटेल (40) को चार महीने की कठोर कारावास की सजा सुनाई है। इसके अतिरिक्त ₹4000 का जुर्माना भी लगाया है।

अदालत ने अपने फैसले में स्पष्ट कहा है कि आरोपी ने लिफ्ट में जबरदस्ती श्वान को घसीटा, जिससे यह सिद्ध होता है कि न तो उसे श्वान की चिंता थी और न ही अपार्टमेंट में रहने वाले अन्य लोगों की सुरक्षा की परवाह। यह गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार न केवल पालतू जानवर के लिए खतरनाक था, बल्कि अन्य लोगों की जान के लिए भी जोखिमभरा साबित हुआ। कोर्ट ने इसे आपराधिक लापरवाही मानते हुए सजा सुनाई।

पालतू जानवर पालना एक व्यक्तिगत पसंद हो सकता है, लेकिन इसके साथ कई सामाजिक और कानूनी जिम्मेदारियां भी जुड़ी होती है। प्रशिक्षण देना- श्वानों को उचित प्रशिक्षण देना बेहद जरूरी होता है ताकि वह सार्वजनिक स्थानों पर हिंसक व्यवहार न कर सके। सुरक्षा उपाय- उन्हें हमेशा पट्टे में बांध कर रखना चाहिए और भीड़भाड़ वाले स्थानों या लिफ्ट जैसी जगहों पर अतिरिक्त सतर्कता बरतनी चाहिए। स्वास्थ्य जांच- पालतू श्वानों को समय-समय पर वैक्सीन लगवाना भी जरूरी होता है ताकि श्वान के काटने से कोई बीमारी न फैले।

इस मामले ने पालतू पशुओं से जुड़े अधिकारों और जिम्मेदारियों को लेकर समाज में नई बहस छेड़ दी है। कई अपार्टमेंट सोसायटियों में अब पालतू जानवरों को लेकर सख्त गाइडलाइंस बनाया जा रहा हैं। लोगों में यह भावना भी बढ़ रही है कि अगर किसी की लापरवाही से उन्हें या उनके बच्चों को खतरा होता है, तो वे कानूनी रास्ता अपनाने से पीछे नहीं हटेंगे।

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 289 के तहत, यदि कोई व्यक्ति खतरनाक जानवर को लापरवाही से रखता है और उससे किसी को नुकसान पहुंचता है, तो उसे जेल और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। यह मामला एक नजीर बन सकता है जिससे अन्य पालतू जानवरों के मालिक सतर्कता बरतनी चाहिए।

पालतू जानवर केवल प्रेम और शौक का विषय नहीं हैं, वह जिम्मेदारी की मांग करता हैं। अगर इस जिम्मेदारी को गंभीरता से न लिया जाए, तो यह दूसरों की जान-माल को खतरे में डाल सकता है और खुद मालिक को भी जेल की हवा खाना पड़ सकता है। मुंबई अदालत का यह फैसला समाज को यही संदेश देता है कि प्यार के साथ अनुशासन और जिम्मेदारी भी जरूरी है।

 


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