भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा को लेकर भावनाएं गहराई से जुड़ी होती हैं। हर राज्य, हर क्षेत्र अपनी भाषा को अपनी अस्मिता का हिस्सा मानता है। ऐसे में जब किसी सार्वजनिक शख्सियत द्वारा भाषा पर कोई टिप्पणी होता है, तो वह तुरंत राजनीतिक बहस का हिस्सा बन जाता है। ऐसा ही हुआ है हाल ही में दिया गया अभिनेता और राजनीतिज्ञ कमल हासन के बयान के बाद।
कमल हासन ने कन्नड़ और तमिल भाषाओं को लेकर एक टिप्पणी की थी, जिसे कुछ लोगों ने विवादास्पद मान लिया। सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों तक इस पर प्रतिक्रियाएं आने लगी। विरोधियों ने इसे "भाषाई अहंकार" करार दिया है, तो समर्थकों ने इसे "संवेदनशीलता" और "भाईचारे" का संकेत बताया है।
तिरुवनंतपुरम में पत्रकारों से बात करते हुए कमल हासन ने इस मुद्दे पर अपना पक्ष साफ किया है। उन्होंने कहा है कि "मुझे लगता है कि मैंने जो कहा, वह बहुत प्रेम से कहा था। प्रेम कभी माफी नहीं मांगता।" कमल हासन का यह बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि उनकी मंशा किसी भी भाषा या समुदाय को ठेस पहुंचाने की नहीं थी, बल्कि यह भाषाओं के बीच एकता को दर्शाने की कोशिश थी।
इस बयान ने नई बहस को जन्म दे दिया है। कमल हासन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि "राजनेता, जिनमें मैं भी शामिल हूं, भाषाओं के बारे में बात करने के योग्य नहीं हैं क्योंकि उनके पास इसके लिए पर्याप्त ज्ञान नहीं होता है।" उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि भाषा, उसका इतिहास और उसका विकास एक गहन अध्ययन का विषय है, जिसे इतिहासकारों, पुरातत्वविदों और भाषाविदों के हवाले छोड़ देना चाहिए।
कमल हासन का यह दृष्टिकोण ध्यान देने योग्य है कि उन्होंने भाषाओं को "परिवार" का हिस्सा बताया। उनके अनुसार, "हम एक परिवार हैं और भाषाएं भी एक परिवार हैं।" यह विचार भारतीय संविधान की भावना के भी अनुरूप है, जो "एकता में अनेकता" को आधार बनाता है। कन्नड़, तमिल, हिन्दी, तेलुगु, बंगाली या मराठी, सभी भाषाएं भारत के विशाल सांस्कृतिक ताने-बाने को समृद्ध बनाता हैं।
हासन ने उत्तर-दक्षिण भाषाई बहस पर भी अपना विचार देते हुए कहा है कि "यदि आप इसे उत्तरी दृष्टिकोण से देखेंगे, तो उनके अनुसार यह सही है, यदि आप इसे थेनकुमारी (दक्षिण) से देखेंगे, तो मैं जो कहता हूं वह सही है।" यह कथन इस बात की ओर इशारा करता है कि किसी भी विषय को देखने के अलग-अलग सामाजिक- सांस्कृतिक दृष्टिकोण हो सकता हैं, और कोई भी दृष्टिकोण पूर्ण सत्य नहीं होता है।
कमल हासन का यह प्रकरण एक अहम सवाल छोड़ जाता है कि क्या भाषाएं राजनीति का उपकरण होनी चाहिए, या संवाद और प्रेम की भाषा बननी चाहिए? क्योंकि भाषा हमारी पहचान का हिस्सा है, लेकिन जब यह राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग होता है, तो विवाद और विभाजन की स्थिति बनता है।