पटना सचिवालय के सिंचाई भवन स्थित कोषागार ने परंपरागत सरकारी तंत्र की जटिलताओं को तकनीक के सहारे न केवल सरल बनाया है, बल्कि पेंशनधारियों के जीवन में राहत और विश्वास का नया अध्याय भी जोड़ा है। जहां पहले पेंशन भुगतान के लिए घंटों लाइन में लगना पड़ता था, फाइलों के चक्कर काटना आम बात बनी हुई थी, वहीं अब यह सारी प्रक्रिया कंप्यूटर स्क्रीन पर कुछ क्लिक में ही पूरा हो जा रहा है। बुधवार को पटना जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने इस कोषागार का निरीक्षण किया, तो उन्होंने इस डिजिटल परिवर्तन की प्रशंसा करते हुए कहा है कि इसी तरह की व्यवस्था अन्य कोषागारों में भी लागू की जाएगी। इससे साफ है कि पटना मॉडल अब पूरे बिहार के लिए आदर्श बनने जा रहा है।
सिंचाई भवन स्थित कोषागार में जिस तरह से कामकाज पूरी तरह से कंप्यूटरीकृत किया गया है, वह सरकारी दफ्तरों में पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक अहम कदम है। यहां C.F.M.S. (Comprehensive Financial Management System) सॉफ्टवेयर को 01 अप्रैल 2019 से ही लागू किया गया है, जिसके माध्यम से लगभग 4,148 पेंशनभोगियों का PPO (Pension Payment Order) कोषागार से लिंक हो चुका है। वहीं करीब 250 सरकारी कार्यालय और 400 निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी (DDOs) इस प्रणाली से जुड़े हुए हैं। पेंशन का भुगतान भी ऑनलाइन के माध्यम से सीधे खाता में किया जा रहा है। इससे कोषागार का प्रशासनिक बोझ तो घटा ही है, साथ ही फिजिकल दस्तावेजों पर निर्भरता भी कम हुआ है।
सरकारी पेंशनभोगियों के लिए, वृद्धावस्था में एक स्थिर आय का स्रोत, जीवनरेखा की तरह होता है। यदि उसमें देरी या जटिलता होती है, तो वह परेशानी का कारण बन जाता है। लेकिन, अब कोषागार द्वारा अपनाया गया ऑनलाइन भुगतान प्रणाली के तहत प्रत्येक महीने तय तारीख को पेंशन सीधे खाता में ट्रांसफर हो जाता है। अब कोई भी पेंशनभोगी, लंबी कतारों में या कार्यालयों के चक्कर लगाने के लिए मजबूर नहीं होता है। निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी (DDOs) कार्यालय के संदेशवाहकों को अब कोषागार जाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसने न केवल वृद्धजनों की सुविधा को बेहतर किया गया है, बल्कि कर्मचारियों की कार्यक्षमता भी बढ़ाया गया है।
पटना जिलाधिकारी ने निरीक्षण के दौरान C.F.M.S., स्थापना शाखा, पेंशन प्रभाग, अंकेक्षण, सेवा पुस्तिका संधारण, लेखा विभाग, रोकड़ बही और खातों के डिजिटलीकरण का भी अवलोकन किया। इससे स्पष्ट होता है कि अब कोषागार न केवल पेंशन के भुगतान तक सीमित रह गया है, बल्कि एक पूर्ण वित्तीय प्रबंधन प्रणाली में परिवर्तित हो गया है। सेवा पुस्तिका का डिजिटलीकरण किया गया है। कर्मचारियों के सेवा रिकॉर्ड अब सॉफ्टवेयर में दर्ज हैं, जिससे भविष्य में पीपीओ बनाते समय जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जायेगा। रोकड़ बही का इलेक्ट्रॉनिक रखरखाव होने लगा है। अब नकद प्रवाह और व्यय को ट्रैक करने में आसानी होता है। लेखा विभाग की मॉनिटरिंग भी हर भुगतान और व्यय का ब्योरा एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाता है।
C.F.M.S. बिहार सरकार का एक महत्त्वाकांक्षी डिजिटल प्लेटफॉर्म है जिसका उद्देश्य सरकारी वित्तीय प्रक्रियाओं में दक्षता, पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। पटना सचिवालय का कोषागार इसका आदर्श उदाहरण बन चुका है। इसके माध्यम से सभी प्रकार की वित्तीय मंजूरी, व्यय स्वीकृति, और भुगतान प्रक्रिया ऑनलाइन शुरू हो गया है। एकीकृत डाटा संग्रहण से फर्जी भुगतान की संभावना लगभग शून्य हो है। रिपोर्टिंग एवं अंकेक्षण कार्य अब तेजी से और बिना त्रुटियों के पूरे किए जा रहे हैं।
कोषागार में संचालित नई व्यवस्था से पेंशनभोगियों को जो लाभ मिल रहा है, उसे उनकी प्रतिक्रिया से बेहतर कोई नहीं बता सकता है। पेंशनभोगियों में सेवानिवृत्त शिक्षक का कहना है कि "पहले हर महीने कोषागार के चक्कर काटने पड़ते थे। अब पेंशन सीधा बैंक में आ जाता है। यह व्यवस्था से जीवन आसान हुआ है।" वहीं, सेवानिवृत्त स्वास्थ्यकर्मी का कहना है कि "मेरे जैसे बुजुर्गों के लिए डिजिटल कोषागार वरदान है। अब किसी पर निर्भर नहीं होना पड़ता है।" इन अनुभवों से यह साफ हो जाता है कि डिजिटल कोषागार ने पेंशनभोगियों की गुणवत्ता युक्त जीवन की दिशा में बड़ा योगदान दिया है।
पटना जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर सिंह ने स्पष्ट किया है कि सचिवालय कोषागार की तर्ज पर बिहार के अन्य जिलों में भी इसी प्रकार की व्यवस्था लागू की जाएगी। इसके लिए विभागीय प्रशिक्षण, संसाधन वृद्धि और तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाएगा। संभावित सुधार क्षेत्रों में शामिल हैं सभी कोषागारों का कंप्यूटरीकरण, सीएफएमएस को रियल-टाइम अपडेट सुविधा से जोड़ना, पेंशन ट्रैकिंग मोबाइल ऐप का विकास, बुजुर्गों के लिए हेल्पलाइन सुविधा और सर्विस बुक स्कैनिंग की 100% कवरेज। ऐसा करने से राज्य भर में एकरूपता आएगी और वित्तीय प्रबंधन अधिक सक्षम होगा।
हालाँकि यह व्यवस्था बहुत ही प्रभावशाली है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ अब भी हैं, जैसे- दूरदराज के जिलों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, तकनीकी शिक्षा का अभाव, वृद्ध पेंशनभोगियों की तकनीकी जानकारी, डेटा सुरक्षा और गोपनीयता। यदि इन समस्याओं का समाधान समय रहते हो जाता है, तो यह व्यवस्था आदर्श मॉडल बन सकता है।
पटना सचिवालय कोषागार का यह मॉडल इस बात का प्रमाण है कि सरकार यदि इच्छाशक्ति के साथ तकनीक को अपनाए, तो न केवल प्रशासनिक कार्यों की गति और पारदर्शिता में वृद्धि होगी, बल्कि आमजन का जीवन भी सरल हो जायेगा। पेंशनभोगियों के जीवन में यह एक स्थायी राहत होगा, जो उन्हें आर्थिक सुरक्षा, समय की बचत और आत्मसम्मान प्रदान करेगा। अब समय आ गया है कि इस सफल मॉडल को पूरे राज्य में, विशेषकर ग्रामीण जिलों में लागू किया जाए।