पटना हाईकोर्ट के जाने-माने अधिवक्ता इंद्रदेव प्रसाद एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार उनकी वकालत पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा लगाई गई है अंतरिम रोक। यह फैसला महाधिवक्ता कार्यालय के अवर सचिव जटाशंकर झा की शिकायत पर अनुशासन समिति द्वारा लिया गया है। शिकायत की सुनवाई के बाद समिति ने इंद्रदेव प्रसाद को नोटिस जारी कर उनके वकालत करने पर रोक लगा दी है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासन समिति ने साफ तौर पर कहा है कि 29 जून को अगली सुनवाई तक इंद्रदेव प्रसाद किसी भी अदालत में पेश नहीं हो सकेंगे। इस अवधि में उनका वकालत लाइसेंस भी निलंबित रहेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि वे किसी भी मुवक्किल का पक्ष कोर्ट में नहीं रख सकते हैं, चाहे वह मामला सिविल हो या क्रिमिनल।
शिकायतकर्ता जटाशंकर झा ने इंद्रदेव प्रसाद के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए हैं। हालांकि बार काउंसिल द्वारा विस्तृत रूप से शिकायत की सामग्री सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन यह संकेत मिल रहा है कि शिकायत में आचरण से जुड़ी गंभीर अनियमितताओं की बात कही गई है। ऐसी स्थितियों में अनुशासन समिति द्वारा अंतरिम रोक लगाना असामान्य नहीं है।
ध्यातव्य है कि 28 मई 2024 को बिहार सरकार के विधि विभाग ने इंद्रदेव प्रसाद को स्टैंडिंग काउंसिल 27 के पद से हटा दिया था। यह पद एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद माना जाता है, जिसमें सरकार की ओर से विभिन्न मामलों में अदालत में पक्ष रखा जाता है। हटाए जाने के कारणों का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया था, लेकिन अब बार काउंसिल की कार्रवाई के बाद यह मामला और भी गंभीर लगता है।
बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासन समिति अब इस मामले की अगली सुनवाई 29 जून 2025 को करेगी। अगर इस सुनवाई में आरोप प्रमाणित हो जाता हैं तो इंद्रदेव प्रसाद का लाइसेंस स्थायी रूप से रद्द भी किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में यह उनके पेशेवर जीवन के लिए एक बड़ा झटका होगा।
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला केवल एक व्यक्ति विशेष का नहीं है, बल्कि इससे पूरे वकालत पेशे की साख और नैतिकता का सवाल जुड़ा हुआ है। यदि कोई अधिवक्ता अपने आचरण में दोषी पाया जाता है, तो बार काउंसिल को कड़ा कदम उठाना ही चाहिए ताकि न्यायपालिका की गरिमा बनी रहे।