भारतीय इतिहास वीरता, स्वाभिमान और मातृभूमि-प्रेम की अनगिनत गाथाओं से भरा हुआ है, लेकिन जब बात राजपूत शौर्य की होती है, तो सबसे पहला नाम आता है महाराणा प्रताप का। राजस्थान के इस अद्वितीय योद्धा ने मुगलों के सामने झुकने से बेहतर जंगलों में रहना पसंद किया था और यह उनका स्वाभिमान था।
शौर्य यात्रा अभियान चावंड से प्रारंभ हुआ, जहाँ महाराणा प्रताप का समाधि स्थल स्थित है। चावंड के केजड़ तालाब के मध्य एक लाख वर्गफीट भूमि पर 12 फीट ऊंची अष्टधातु की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। यह केवल एक प्रतिमा नहीं, बल्कि महाराणा प्रताप के जीवन मूल्यो, स्वराज, आत्मसम्मान और राष्ट्रभक्ति का प्रतीक है।
वीर गाथा यात्रा अभियान को दो चरणों में विभाजित किया गया है। पहला चरण यात्रा राजस्थान में 3,000 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी है, जिसमें कई गांव, कस्बे और ऐतिहासिक स्थल शामिल है। दूसरा चरण यात्रा 12,000 किलोमीटर लंबी यात्रा कुंभलगढ़ से शुरू होकर चावंड में समाप्त होगी। इस चरण में देश के 12 ज्योतिर्लिंग और अन्य तीर्थस्थल जुड़ेगे। इस यात्रा को "वीर गाथा यात्रा" नाम दिया गया है, जो सिर्फ सड़क यात्रा नहीं बल्कि भारतीय गौरव के पुनः जागरण का प्रयास है।
इस अभियान के तहत पूरे देश में 500 से अधिक स्थानों पर, महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं लगाई जाएंगी। इनमें शामिल हैं, देश के 12 ज्योतिर्लिंग- उज्जैन (महाकालेश्वर), सोमनाथ, काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, ओंकारेश्वर आदि। प्रमुख तीर्थस्थल है बरसाना, खाटूश्यामजी, सांवलिया सेठ, मेहंदीपुर बालाजी, सालासर बालाजी और ऐतिहासिक नगर एवं कस्बा जहां महाराणा प्रताप से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं घटित हुईं थी।
महाराणा प्रताप की जन्मस्थली कुंभलगढ़ में 151 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा और एक संग्रहालय की स्थापना प्रस्तावित है। यह प्रतिमा महाराणा प्रताप के जीवन, संघर्ष और विचारों को शाश्वत रूप में संरक्षित करेगी। यहाँ आगंतुक उनके जीवन पर आधारित ऑडियो-विजुअल शो और ऐतिहासिक दस्तावेजों से रूबरू हो सकेंगे।
महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं विशेष तकनीक से निर्मित किया जा रहा हैं, जिसकी प्रमुख विशेषताएं हैं, ऊंचाई- 12 फीट, वजन- 3100 किलोग्राम, सामग्री- मेटल स्ट्रक्चर (अष्टधातु), आयु- 100 वर्ष से अधिक। वहीं, स्थापना स्थल का आकार- 12 फीट चौड़ा, 18 फीट लंबा और 4 फीट ऊंचा प्लेटफॉर्म पर स्थापित किया जाएगा। इन प्रतिमाओं को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह एक सदी से अधिक समय तक बिना क्षति के टिका रहेगा।
केवल महाराणा प्रताप ही नहीं, बल्कि उनके जीवन से जुड़े अन्य महान योद्धाओं और परिजनों को भी इस अभियान में स्मरण किया जाएगा, जैसे- जयवंता बाई (माता) जो महाराणा प्रताप की माँ थी, जिन्होंने उन्हें संस्कारों और स्वाभिमान का पाठ पढ़ाया। राणा पुंजा सोलंकी (सेनापति) जो भील सेना के प्रमुख थे और जिन्होंने हल्दीघाटी युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हाड़ा रानी जो शौर्य और बलिदान का प्रतीक थी और राणा सांगा जो महाराणा प्रताप के पूर्वज थे, जिन्होंने बाबर से लोहा लिया था। इन सभी विभूतियों की भी प्रतिमाएं स्थापित करने की योजना है।
इस अभियान के तहत अब तक देशभर में 28 प्रतिमाएं स्थापित किया जा चुका हैं। इनमें से 21वीं प्रतिमा गुजरात के भरूच जिले के वालिया में स्थापित हुआ है, जिसकी ऊंचाई 12 फीट है। 22वीं प्रतिमा का लोकार्पण 29 मई को महाराणा प्रताप जयंती पर राजस्थान के देवगढ़ में किया गया है। यह अवसर न केवल ऐतिहासिक ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक भी बना।
इन प्रतिमाओं के निर्माण में देशभर के कुशल मूर्तिकारों, धातुशिल्पियों और वास्तुकारों की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के शिल्पकार इस कार्य में योगदान दे रहे हैं। एक-एक प्रतिमा को महीनों की मेहनत और बारीकी से गढ़ा जाता है ताकि महाराणा प्रताप का तेज, पराक्रम और आत्मविश्वास उसमें झलक सके।
यह अभियान केवल एक सांस्कृतिक पहल नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण की दिशा में एक मजबूत कदम है। इससे युवाओं में आत्मगौरव और देशभक्ति की भावना जागृत होगी। स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में इन प्रतिमाओं के माध्यम से विद्यार्थियों को भारतीय इतिहास के महान योद्धाओं की प्रेरक कहानियाँ सिखाई जाएंगी।
इस अभियान को गति देने वाले दो प्रमुख नाम हैं, वह है राष्ट्रीय संरक्षक- डॉ. लक्ष्यराजसिंह मेवाड़ जो उदयपुर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले हैं और सामाजिक कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले हैं, और दूसरा राष्ट्रीय अध्यक्ष- चंद्रवीर सिंह नमाणा जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनकी अगुवाई में यह पूरा कार्यक्रम दिशा और उद्देश्य प्राप्त कर रहा है। इन दोनों की नेतृत्व क्षमता और दूरदृष्टि के कारण यह अभियान मात्र प्रतिमा स्थापना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक चेतना का रूप ले चुका है। जहाँ तक भारत में 500 प्रतिमाओं को स्थापित करने की योजना है, सूत्रों का माने तो वहीं अगले चरण में यह अभियान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय प्रवासी समुदाय के सहयोग से विदेशों में महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं लगाने की दिशा में कार्य कर रहा है। अमेरिका, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और खाड़ी देशों में बसे भारतीय समुदाय से बातचीत चल रही है।
इस अभियान को सफल बनाने में जनसहयोग की अहम भूमिका है। देशभर से लोग आर्थिक, भौतिक और नैतिक रूप से इसमें भाग ले रहे हैं। समाज के विभिन्न वर्गों यथा- छात्र, व्यापारी, सेवानिवृत्त अधिकारी, महिलाएं, कलाकार, सभी किसी न किसी रूप में इस अभियान से जुड़े हुए हैं।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन से जो संदेश दिए हैं, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं। स्वाभिमान- परिस्थितियाँ कैसी भी हों, आत्मगौरव नहीं छोड़ना चाहिए। स्वदेशी और आत्मनिर्भरता- उन्होंने जंगलों में रहकर भी विदेशी सत्ता के आगे घुटने नहीं टेके। सामाजिक समरसता- भील समुदाय को संगठित कर उन्होंने जातिवाद की बेड़ियों को तोड़ा। आज के भारत को इन्हीं मूल्यों की सबसे अधिक आवश्यकता है।
"महाराणा प्रताप स्मारक अभियान" न केवल भारत के गौरवशाली इतिहास को पुनर्जीवित करने का प्रयास है, बल्कि यह आज के युवाओं को यह संदेश भी देता है कि संघर्ष से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए। महाराणा प्रताप की प्रतिमाएं हमें हर दिन यह याद दिलाती रहेंगी कि स्वाभिमान की रक्षा के लिए कुछ भी बलिदान किया जा सकता है।