"पंजीकरण विधेयक, 2025" लाने की तैयारी - 25 जून तक लोग दे सकते हैं अपना सुझाव

Jitendra Kumar Sinha
0



भारत में संपत्ति खरीद-बिक्री हमेशा से एक जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया रही है। रजिस्ट्रार ऑफिस की लंबी कतारें, भ्रष्टाचार की आशंका, अपूर्ण दस्तावेज और धोखाधड़ी की घटनाएं, इन सभी ने इस प्रक्रिया को आम जनता के लिए एक भारी सिरदर्द बना दिया था। लेकिन अब यह स्थिति बदलने वाली है। केन्द्र सरकार ने 117 साल पुरानी "पंजीकरण अधिनियम, 1908" को बदलने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है और इसके स्थान पर "पंजीकरण विधेयक, 2025" लाने की तैयारी कर ली है। यह कानून सिर्फ एक विधेयक नहीं, बल्कि भारत की न्यायिक, प्रशासनिक और तकनीकी प्रणाली के डिजिटलीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।

1908 में बना पंजीकरण अधिनियम उस युग की उपज था, जब भारत में न तो डिजिटल तकनीक थी और न ही व्यापक शहरीकरण। उस समय की जरूरतें अलग तरह की थी। लेकिन आज, डिजिटल इंडिया के युग में संपत्ति पंजीकरण की मैनुअल प्रणाली न केवल अप्रभावी हो गई है, बल्कि भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के लिए रास्ता भी खोलता रहा है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि इस कानून को नए भारत के अनुरूप बदला जाए। यही कारण है कि सरकार ने नया "पंजीकरण विधेयक, 2025" तैयार किया है, जो पारदर्शिता, सरलता और सुरक्षा के तीन मजबूत स्तंभों पर आधारित होगा।

यह विधेयक ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा तैयार किया गया है। केन्द्र सरकार का उद्देश्य इस विधेयक के माध्यम से संपत्ति लेन-देन को डिजिटल और पारदर्शी बनाना है ताकि धोखाधड़ी की घटनाएं कम हो, न्यायिक विवादों में कमी आए, आम नागरिकों को आसानी हो और प्रशासनिक बोझ घटे।
इस विधेयक का मसौदा वेबसाइट पर सार्वजनिक किया गया है और 25 जून 2025 तक आम नागरिक, वकील, रियल एस्टेट एजेंसियां और अन्य हितधारक इस संबंध में अपना सुझाव दे सकते हैं।

अब तक ज्यादातर राज्यों में संपत्ति रजिस्ट्रेशन के लिए फिजिकल उपस्थिति जरूरी होती थी। लेकिन नए कानून में दस्तावेजों की ऑनलाइन प्रस्तुति, स्वीकृति और डिजिटल प्रमाणपत्र की सुविधा दी जाएगी। यह प्रक्रिया न सिर्फ समय की बचत करेगी, बल्कि भ्रष्टाचार और दलालों की भूमिका को भी खत्म करेगी। अब तक सिर्फ "सेल डीड" ही अनिवार्य रजिस्ट्रेशन दस्तावेज होता था, लेकिन अब नए विधेयक में एग्रीमेंट टू सेल (Agreement to Sell), पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney), प्रमोटर और बिल्डर समझौता, इक्विटेबल मॉर्गेज और न्यायिक आदेश, डिक्री और ट्रिब्यूनल के निर्णय दस्तावेज भी अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड होंगे। 

नागरिकों की पहचान के लिए आधार कार्ड का उपयोग किया जाएगा, लेकिन यह अनिवार्य नहीं होगा। जो लोग आधार कार्ड नहीं देना चाहेंगे, उनके लिए वैकल्पिक प्रमाणीकरण प्रणाली भी लागू किया जाएगा, जिससे उनकी निजता का सम्मान बना रहेगा।

सभी दस्तावेज़ अब डिजिटल रूप में सुरक्षित रखा जाएगा। यह डेटा भूमि रिकॉर्ड विभाग, नगर निगम, वित्तीय संस्थानों और अन्य सरकारी एजेंसियों से इंटीग्रेट होगा। इससे एक मजबूत और फुल-प्रूफ प्रणाली विकसित होगी, जहां एक रिकॉर्ड से दूसरे रिकॉर्ड का मिलान स्वतः संभव हो पाएगा।

रजिस्ट्रार और सब-रजिस्ट्रार की भूमिकाओं को अधिक उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने की बात भी कही गई है। राज्य सरकारों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार नियम बनाने का भी अधिकार दिया जाएगा।

ऑनलाइन प्रक्रिया से बिचौलिए और दलालों की भूमिका समाप्त होगी। इससे रजिस्ट्रेशन की लागत भी घटेगी और प्रक्रिया भी पारदर्शी होगी। अब लोगों को रजिस्ट्रार ऑफिस जाने की आवश्यकता नहीं होगी। मोबाइल या लैपटॉप से घर बैठे रजिस्ट्रेशन संभव होगा। क्योंकि प्रक्रिया डिजिटल होगी, इसलिए कोई नकद लेन-देन या फिजिकल दस्तावेजों की हेराफेरी संभव नहीं हो पायेगा। डिजिटल रजिस्ट्रेशन से भूमि विवादों में भी कमी आएगी, क्योंकि सभी दस्तावेज प्रमाणित और संग्रहीत होंगे। जहां बिचौलियों का बोलबाला होता है, वहां यह डिजिटलीकरण एक सामाजिक क्रांति लाएगा।

भारतीय न्याय प्रणाली में 60% से अधिक सिविल केस भूमि विवादों से जुड़े होते हैं। इन विवादों की जड़ में अधूरी, अस्पष्ट या बिना रजिस्ट्रेशन के संपत्ति समझौते होते हैं। नए विधेयक से यह समस्याएं काफी हद तक समाप्त हो जाएंगी क्योंकि सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज अब अनिवार्य रूप से रजिस्टर्ड होंगे, प्रमाणीकरण आधार या अन्य पहचान माध्यम से होगा, और रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड डिजिटल होगा, जिससे कोई भी पक्ष फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सकेगा। इससे कोर्ट का समय भी बचेगा, मामलों की सुनवाई तेज होगी और जनता को न्याय जल्दी मिलेगा।

किसी भी डिजिटल प्रणाली में डेटा सुरक्षा एक बड़ी चुनौती होती है। इस विधेयक में डेटा सुरक्षा के लिए एन्क्रिप्टेड स्टोरेज सिस्टम, मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन, ब्लॉकचेन आधारित सत्यापन प्रणाली (संभावित रूप में)
और समय-समय पर ऑडिट और डेटा बैकअप के उपाय किए जाएंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी नागरिक की निजी जानकारी सुरक्षित रहे और डेटा लीक की आशंका न हो।

भारत अकेला देश ऐसा करने वाला नहीं होगा। कई देशों में पहले से ही संपत्ति का डिजिटल रजिस्ट्रेशन लागू है, जैसे- एस्टोनिया दुनिया की सबसे डिजिटल सरकार माना जाता है, जहाँ हर सरकारी सेवा ऑनलाइन है। ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भूमि और संपत्ति पंजीकरण पूरी तरह ऑनलाइन है। सिंगापुर में भी पूरी संपत्ति खरीद प्रक्रिया एक क्लिक पर होती है। अब भारत भी उसी दिशा में कदम बढ़ा रहा है, और यह न केवल आर्थिक रूप से, बल्कि सामाजिक रूप से भी एक ऐतिहासिक पहल है।

इस विधेयक से रियल एस्टेट सेक्टर को भी बड़ी राहत मिलेगी। बिल्डरों और खरीदारों के बीच विवादों में कमी आएगी, प्रत्येक सौदे की प्रामाणिकता बनी रहेगी, निवेशकों का भरोसा बढ़ेगा, पारदर्शिता से छोटे निवेशक भी इसमें शामिल होंगे और अचल संपत्ति (real estate) में FDI बढ़ सकती है

"पंजीकरण विधेयक, 2025" केवल एक विधेयक नहीं है, बल्कि उस सोच का प्रतिनिधित्व करता है जो भारत को भ्रष्टाचार से मुक्त, डिजिटल रूप से सशक्त और न्यायिक रूप से सरल बनाना चाहती है। यह कदम भारत के करोड़ों नागरिकों को न सिर्फ संपत्ति खरीदने-बेचने में सहूलियत देगा, बल्कि उनके अधिकारों की रक्षा भी करेगा।



एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Ok, Go it!
To Top