भारतीय राजनीति में बयानबाज़ी कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह बयान देश की सेना से जुड़ा हो, तब मामला बेहद संवेदनशील बन जाता है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के एक पुराने बयान को लेकर लखनऊ हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में चल रहे मामले ने एक बार फिर यही संदेश दिया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में जरा सी भी लापरवाही माफ नहीं किया जाएगा।
राहुल गांधी पर आरोप है कि उन्होंने ‘न्याय यात्रा’ के दौरान सेना पर कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी की थी। उनके अनुसार, “चीनी सैनिक हमारे जवानों की पिटाई कर रहे हैं।” यह बयान राजनीतिक मंच पर दिया गया था, लेकिन इसका असर सीधे सेना की प्रतिष्ठा पर पड़ा। इसी टिप्पणी को आधार बनाकर लखनऊ की जिला अदालत में एक परिवाद (शिकायत) दायर की गई थी, जिसमें उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की मांग किया गया था।
राहुल गांधी ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से मामले को रद्द करने या उन्हें राहत देने की अपील किया था। लेकिन कोर्ट ने इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया है। कोर्ट का मानना था कि मामला प्रथम दृष्टया विचारणीय है और इस पर आगे सुनवाई जरूरी है। यह फैसला यह दर्शाता है कि भले ही आरोपी कोई बड़ा नेता क्यों न हो, लेकिन जब मामला राष्ट्र की गरिमा से जुड़ा हो, तब कानून सबके लिए समान होता है।
जहाँ कांग्रेस पार्टी इस पूरे मामले को ‘राजनीतिक बदले’ की संज्ञा दे रही है, वहीं भाजपा और अन्य दल इसे राष्ट्रीय गौरव से जुड़ा मामला बता रहा हैं। भाजपा नेताओं का कहना है कि इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना बयानबाजी से जवानों के मनोबल पर असर पड़ सकता है। वहीं कांग्रेस का तर्क है कि राहुल गांधी ने केवल एक यथार्थ बयान दिया था जिसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है।
भारतीय सेना देश की संप्रभुता और सम्मान का प्रतीक है। ऐसे में किसी भी जनप्रतिनिधि द्वारा सेना के बारे में कोई भी टिप्पणी करने से पहले सावधानी बरतना अनिवार्य है। चाहे वह आलोचना हो या सुझाव, उसे तथ्यों और गरिमा के साथ रखना चाहिए। सेना के बारे में कही गई एक भी नकारात्मक बात लाखों देशवासियों की भावनाओं को आहत कर सकता है।