सावरकर-गोडसे रिश्ते पर - राहुल गांधी की याचिका - इतिहास, राजनीति और कानूनी पेंच

Jitendra Kumar Sinha
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पुणे की विशेष एमपी-एमएलए अदालत में एक नई याचिका दायर कर देश की राजनीति में हलचल मचा दिया है। इस याचिका में उन्होंने नाथूराम गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर के बीच न केवल वैचारिक संबंधों की बात कही है, बल्कि रक्त संबंध तक होने का दावा किया है। यह मामला एक आपराधिक मानहानि शिकायत के जवाब में उठाया गया है, जिसमें राहुल गांधी ने ऐतिहासिक तथ्यों और पारिवारिक संबंधों का हवाला दिया है।

राहुल गांधी ने याचिका में स्पष्ट रूप से आरोप लगाया है कि हिंदुत्व के दो प्रमुख चेहरे, सावरकर और गोडसे,  सिर्फ वैचारिक रूप से ही नहीं, बल्कि रक्त संबंध से भी जुड़े थे। याचिका के अनुसार, मानहानि की शिकायतकर्ता सत्यकी सावरकर, विनायक सावरकर के भतीजे अशोक सावरकर के पुत्र हैं, जबकि उनकी मां हिमानी गोडसे परिवार से संबंधित हैं। खास तौर पर यह कहा गया है कि हिमानी, नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे की बेटी हैं। इतिहास में दर्ज है कि नाथूराम और गोपाल गोडसे, दोनों को महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में दोषी ठहराया गया था।

राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि सावरकर और गोडसे, दोनों ही हिंदू राष्ट्र की विचारधारा के कट्टर समर्थक थे। उन्होंने मुसलमानों और ईसाइयों को भारत के लिए अयोग्य मानते हुए, महात्मा गांधी की सांप्रदायिक सद्भाव की नीतियों से असहमति जताई थी। राहुल गांधी का दावा है कि इसी असहमति के कारण ही महात्मा गांधी की हत्या की साजिश रची गई थी।

सत्यकी सावरकर ने राहुल गांधी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था, जिसमें उन्होंने यह नहीं बताया कि उनकी मां गोडसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं। राहुल का आरोप है कि यह एक प्रासंगिक तथ्य था, जिसे छिपाया गया। राहुल ने अदालत से अपील की है कि वह इस तथ्य को याचिका में दर्ज करते हुए, उसे मानहानि मामले की सुनवाई में महत्वपूर्ण साक्ष्य माना जाए।

इस याचिका ने जहां एक ओर इतिहास और वैचारिक राजनीति को फिर से चर्चा में ला दिया है, वहीं दूसरी ओर कोर्ट की कार्यवाही को भी जटिल बना दिया है। कांग्रेस और भाजपा के बीच पहले से ही सावरकर और गोडसे को लेकर तीखी बहस होती रही है, लेकिन अब जब रक्त संबंधों की बात अदालत में उठी है, तो यह मामला एक नया मोड़ ले सकता है।

राहुल गांधी की यह याचिका केवल एक कानूनी कदम नहीं है, बल्कि यह राजनीति, इतिहास और वैचारिक संघर्ष का संगम भी है। अब देखना होगा कि अदालत इस याचिका पर क्या रुख अपनाती है और यह मामला भविष्य में भारतीय राजनीति को किस दिशा में मोड़ता है। यह मामला अब सिर्फ सावरकर या गोडसे तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह भारत की समकालीन राजनीति की नब्ज को भी छूने लगा है।



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