आधुनिक युद्ध के बदलते स्वरूप में जब दुश्मन का वार अक्सर आँखों से ओझल होता है और खतरनाक मिसाइलें पल भर में कहर ढा सकती हैं, तब एक राष्ट्र के लिए यह अनिवार्य हो जाता है कि उसकी वायु रक्षा प्रणाली अभेद्य हो, सशक्त हो और सबसे महत्वपूर्ण – स्वदेशी हो। भारत की ऐसी ही एक तकनीकी विजयगाथा है — आकाश रक्षा प्रणाली।
‘आकाश’ नाम से ही इसकी व्यापकता का आभास होता है। यह केवल एक मिसाइल नहीं, बल्कि भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित एक मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइल प्रणाली है। इसका उद्देश्य अत्याधुनिक शत्रु विमानों, हेलीकॉप्टरों, ड्रोन, क्रूज मिसाइलों और अन्य हवाई खतरों को मार गिराना है। यह भारतीय सेना और वायुसेना को एक मजबूत आकाश कवच प्रदान करती है।
इस प्रणाली की विशेष बात यह है कि यह पूरी तरह से भारत में डिजाइन और विकसित की गई है, और इसकी तुलना विश्व की बेहतरीन वायु रक्षा प्रणालियों से की जा सकती है। आकाश प्रणाली ने भारत को उन देशों की कतार में ला खड़ा किया है, जो खुद अपनी वायु रक्षा प्रणाली विकसित करने में सक्षम हैं।
आकाश मिसाइल की शुरुआत 1980 के दशक में हुई। उस समय भारत ने इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IGMDP) की शुरुआत की थी। यह कार्यक्रम भारत की मिसाइल शक्ति को बढ़ाने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसके अंतर्गत ‘प्रिथ्वी’, ‘त्रिशूल’, ‘अग्नि’, ‘नाग’ और ‘आकाश’ जैसी मिसाइलों का विकास किया गया। आकाश मिसाइल प्रणाली को विशेष रूप से वायुसेना और थलसेना की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया।
इसका विकास DRDO के डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेटरी (DRDL), रिसर्च सेंटर इमरत (RCI) और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) की साझेदारी में किया गया। इसके अलावा भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) इस मिसाइल का उत्पादन करती है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आकाश प्रणाली भारतीय रक्षा उत्पादन के सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
आकाश मिसाइल प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता इसकी नेटवर्क सेंट्रिक क्षमता और मोबिलिटी है। यह प्रणाली मोबाइल लॉन्चर, रडार, कंट्रोल सेंटर और मिसाइलों के समन्वय से एक युद्ध के मैदान में त्वरित प्रतिक्रिया दे सकती है। इसका रडार — Rajendra 3D Passive Array Radar — एक साथ 64 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और 12 पर एक साथ निशाना साध सकता है। यह क्षमता भारत को किसी भी एयरस्ट्राइक या दुश्मन के तेज हवाई हमले के सामने मजबूती से खड़े रहने का आत्मविश्वास देती है।
आकाश मिसाइल की मारक क्षमता लगभग 30 किलोमीटर तक है और यह 18,000 मीटर की ऊँचाई तक उड़ते लक्ष्य को नष्ट करने में सक्षम है। यह मिसाइल माच 2.5 की गति से उड़ती है — जो कि ध्वनि की गति से ढाई गुना अधिक है। इसका मल्टीटारगेट एंगेजमेंट और 3D रडार गाइडेंस इसे आधुनिक युद्धों के लिए एक उपयुक्त हथियार बनाते हैं।
इस प्रणाली को दो संस्करणों में विकसित किया गया — आकाश वायुसेना संस्करण और आकाश थलसेना संस्करण। वायुसेना संस्करण को विशेष रूप से एयरबेस और सामरिक स्थलों की रक्षा के लिए डिज़ाइन किया गया है, वहीं थलसेना संस्करण को मोबाइल प्लेटफॉर्म्स पर तैनात किया गया है जिससे सेना के साथ-साथ आगे के मोर्चों पर भी वायु रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
2015 में भारतीय वायुसेना ने पहली बार आकाश मिसाइल प्रणाली को अपनी सेवा में शामिल किया। इसके बाद 2017 में भारतीय सेना ने भी इसका उपयोग शुरू किया। वायुसेना के लिए बनाए गए स्क्वाड्रनों को विभिन्न सामरिक ठिकानों पर तैनात किया गया, और सेना के लिए इसके मोबाइल प्लेटफॉर्म्स को सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय रूप से तैनात किया गया।
इस प्रणाली की तैनाती केवल एक सैन्य आवश्यकता नहीं, बल्कि एक रणनीतिक सन्देश भी है। यह दर्शाता है कि भारत अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए अब पूरी तरह आत्मनिर्भर हो रहा है। विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रु देशों से घिरे होने के कारण, भारत के लिए एक मजबूत वायु रक्षा कवच अनिवार्य हो गया है। आकाश प्रणाली इस आवश्यकता की पूर्ति सफलतापूर्वक कर रही है।
वर्तमान में भारत ने आकाश रक्षा प्रणाली के कई उन्नत संस्करणों का भी विकास शुरू कर दिया है। आकाश-NG (New Generation) इसका ताजा उदाहरण है। इसमें सक्रिय रडार होमिंग तकनीक का उपयोग किया गया है, जिससे मिसाइल दुश्मन के इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से भी अप्रभावित रह सके। साथ ही इसकी रेंज भी बढ़ाकर 50 किलोमीटर तक कर दी गई है और इसकी प्रतिक्रिया क्षमता (reaction time) को और तेज किया गया है।
आकाश-NG प्रणाली को खास तौर पर आने वाले वर्षों के लिए तैयार किया गया है, जहाँ ड्रोन और हाई-स्पीड क्रूज मिसाइल जैसे खतरों का सामना करना होगा। इसमें डुअल पल्स रॉकेट मोटर, बेहतर एयरोडायनामिक्स, और आधुनिक गाइडेंस सिस्टम जैसे कई अत्याधुनिक तत्व शामिल किए गए हैं। इसके विकास में निजी कंपनियों जैसे टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स और लार्सन एंड टुब्रो जैसी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ रही है, जो भारत के रक्षा उत्पादन क्षेत्र में निजी निवेश और नवाचार की नई लहर को दर्शाता है।
भारत सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ पहल के अंतर्गत आकाश मिसाइल प्रणाली को एक स्टार उत्पाद के रूप में चिन्हित किया है। 2021 में भारत सरकार ने इसे रक्षा निर्यात सूची में भी शामिल किया, जिससे यह भारत के लिए न केवल एक सामरिक बल्कि आर्थिक दृष्टिकोण से भी एक रणनीतिक संपत्ति बन गया।
वर्तमान में वियतनाम, फिलीपींस और कई अन्य दक्षिण एशियाई देशों ने इस प्रणाली में रुचि दिखाई है। इन देशों के लिए यह एक किफायती, विश्वसनीय और परखा हुआ विकल्प है, खासतौर पर तब जब उनके पास पश्चिमी या रूसी सिस्टम की खरीद की सीमित क्षमता है। अगर यह निर्यात होता है, तो भारत रक्षा निर्यात के क्षेत्र में बड़ी छलांग लेगा और उसका सामरिक प्रभाव क्षेत्रीय स्तर पर और व्यापक हो जाएगा।
तकनीकी विश्लेषण में आकाश प्रणाली की कुछ और विशेषताओं की बात करें तो इसकी command-guided तकनीक इसे बेहद भरोसेमंद बनाती है। इसका लॉन्चर एक साथ तीन मिसाइलें दाग सकता है, और इसे तैनात करने में महज़ कुछ ही मिनट लगते हैं। यह एक canisterised system नहीं है, लेकिन अब आकाश-NG में यह सुविधा भी दी जा रही है, जिससे इसका shelf-life बढ़ेगा और ट्रांसपोर्टेशन में सुविधा होगी।
इस प्रणाली के सभी घटक – मिसाइल, रडार, कंट्रोल सिस्टम और वाहन – भारत में ही बनाए जाते हैं। इससे देश के भीतर रक्षा क्षेत्र में रोजगार, तकनीकी विकास और आत्मनिर्भरता को जबरदस्त बढ़ावा मिला है। भारत डायनामिक्स लिमिटेड, जो इसका मुख्य निर्माण करता है, हर वर्ष सैकड़ों मिसाइलों का उत्पादन करता है। BEL रडार और इलेक्ट्रॉनिक घटकों की आपूर्ति करता है, जबकि L&T और टाटा मोटर्स मोबाइल प्लेटफॉर्म्स का निर्माण करते हैं।
आकाश प्रणाली का मुकाबला अगर विश्व की अन्य प्रणालियों से किया जाए तो यह रशियन TOR-M1, अमेरिकन NASAMS, और इजरायली SPYDER प्रणाली की तुलना में कहीं अधिक किफायती और समान क्षमता युक्त है। यह भारत के लिए एक cost-effective high performance solution है, जो देश की रक्षा के साथ-साथ रक्षा निर्यात को भी नई ऊँचाइयाँ देगा।
इसके व्यावसायिक और सामरिक महत्व के अलावा, आकाश प्रणाली भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह उन वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की मेहनत का परिणाम है, जिन्होंने दशकों तक लगातार कार्य कर इस प्रणाली को पूर्ण रूप से स्वदेशी बनाया। एक समय था जब भारत को छोटी मिसाइलों के लिए भी विदेशी सहयोग की आवश्यकता होती थी, और आज वह स्वयं रक्षा प्रणालियों का निर्यात करने की स्थिति में है।
आकाश प्रणाली ने भारतीय सेना को न केवल एक मजबूती दी है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक बढ़त भी दी है। जब किसी देश को यह विश्वास होता है कि उसका वायु कवच मजबूत है, तब वह अन्य सामरिक कदम अधिक आत्मविश्वास के साथ उठाता है। यह प्रणाली भारत को भविष्य की हाइब्रिड वारफेयर चुनौतियों के लिए तैयार करती है, जहाँ लड़ाइयाँ केवल सीमा पर नहीं, बल्कि साइबर स्पेस, आकाश और समुद्र में भी लड़ी जाती हैं।
समाप्ति में यह कहना उचित होगा कि आकाश मिसाइल प्रणाली केवल एक रक्षा उपकरण नहीं, बल्कि भारत की रणनीतिक आत्मनिर्भरता, तकनीकी प्रगति और वैश्विक प्रतिष्ठा का प्रतीक है। यह प्रणाली दिखाती है कि अगर इच्छाशक्ति हो, तो तकनीकी निर्भरता को चुनौती देकर कोई भी राष्ट्र अपनी रक्षा जरूरतों को स्वयं पूरा कर सकता है। आकाश प्रणाली, वास्तव में, भारत की रक्षा आकाश में एक तेजस्वी सितारा बनकर चमक रही है।