विभिन्न पंचांगों के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को सौराष्ट्र के हरिद्रा सरोवर के तट पर “माता बगलामुखी” का अवतरण हुआ था। सनातन धर्म में माता बगलामुखी का स्थान अत्यंत रहस्यमयी और प्रभावशाली माना गया है। माता बगलामुखी को पीतांबरा, स्तंभिनी शक्ति, ब्रह्मास्त्र रूपिणी, वश्यकरण देवी, और बगुला वाहनधारिणी जैसे कई नामों से जाना जाता है। दस महाविद्याओं में आठवीं महाविद्या “माता बगलामुखी” है। माता बगलामुखी महाविद्या भगवान विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी है। वैशाख शुक्ल अष्टमी को माता बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है, जिसे “बगलामुखी जयंती” कहा जाता है।
“माता बगलामुखी” का तीन नेत्र और चार हाथ, सिर पर सोने का मुकुट, स्वर्ण आभूषणों से सुसज्जित, शरीर पतला और सुंदर, रंग गोरा और स्वर्ण कांति, सुमुखी हैं। बगलामुखी का संबंध महाविद्या, देवी, निवास स्थान मरघट, अस्त्र तलवार, जीवन साथी बगलामुख, स्वरुप नवयौवना और पीले रंग की साडी धारण करने वाली मां बगलामुखी सोने के सिंहासन पर विराजती हैं। मां बगलामुखी का प्रिय सोना, पिला वस्त्र, पिले फूल, हल्दी, पिला चावल है।
माता बगलामुखी का स्वरूप अत्यंत उग्र और प्रभावशाली है। देवी के दाहिने हाथ में गदा है और बाएं हाथ से वे एक दानव की जीभ पकड़कर उसे निष्क्रिय करती हैं। यह मुद्रा ‘स्तंभन शक्ति’ का प्रतिनिधित्व करता है जो शत्रु की वाणी, शक्ति और गति को रोक देती है।
देवी भागवत पुराण एवं सनातन धर्म ग्रंथों में शाक्त सम्प्रदाय के विभिन्न ग्रंथों में माता बगलामुखी का महत्वपूर्ण उल्लेख किया गया है। ग्रंथों के अनुसार, माता बगलामुखी की पूजा करने पर माता शत्रुओं पर पूरा नियंत्रण, व्यक्ति को क्रोध, मन के आवेग, जीभ और खाने की आदतों पर नियंत्रण की भावना प्रदान करती हैं।
स्वतंत्र तंत्र एवं ग्रंथों के अनुसार, “माता बगलामुखी” के प्रादुर्भाव, सतयुग में जगत को नष्ट करने वाला, भयंकर तूफान आने पर, जिससे प्राणियों के जीवन पर संकट मंडराने, पृथ्वी का जल से विनाश होने, जीव-जंतु और सृष्टि का विनाश होने, इसे देख कर भगवान विष्णु चिंतित हो गये। ऐसी स्थिति में देवताओं ने भगवान शिव से मदद मांगी। भगवान शिव ने देवताओं को सुझाव दिया कि देवी शक्ति तूफान को शांत कर सकती हैं। इस सुझाव के बाद भगवान विष्णु ने पृथ्वी को बचाने के लिए सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप जाकर भगवती को प्रसन्न करने के लिये तप करने लगे। श्रीविद्या ने हरिद्रा सरोवर से बगलामुखी रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिया तथा विध्वंसकारी तूफान का तुरंत स्तम्भन कर दिया। इस प्रकार मंगलयुक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इसका प्रादुर्भाव हुआ था।
एक अन्य कथा में, एक राक्षस ने भगवान ब्रह्मा का सृष्टि ग्रंथ चुराकर पाताल लोक में छिपा दिया। देवताओं की याचना पर माता बगलामुखी ने बगुले का रूप धारण किया और उस राक्षस को वश में कर उसकी मृत्यु सुनिश्चित की। बाद में ग्रंथ को ब्रह्मा को लौटा दिया गया।
सुख समृद्धि पाने, कष्टों, विपत्तियों, बुराइयों से राहत पाने के लिए मां बगलामुखी की उपासना और पूजा की जाती है। सभी कार्यों में सफलता मिले एवं घर में सुख-समृद्धि एवं शत्रु नाश के लिए मां बगलामुखी की पूजा श्रेष्ठ मानी जाती है। जो माता बगलामुखी की पूजा करते हैं वे खुद को काले जादू और अन्य गैर-घटनाओं से बचा सकते हैं। कानूनी समस्या से मुक्त होने के लिए भी माता बगलामुखी की उपासना की जाती है।
बगलामुखी साधना की परंपरा वैदिक युग से जुड़ी हुई है। ब्रह्माजी ने सबसे पहले इस विद्या को सनकादि ऋषियों को प्रदान किया था। सनकादियों से प्रेरित होकर देवर्षि नारद, भगवान विष्णु, परशुराम और द्रोणाचार्य जैसे महापुरुषों ने भी इस साधना को प्राप्त किया। महाभारत काल में, जब कुरुक्षेत्र युद्ध का समय आया, तो भगवान कृष्ण ने पांडवों से माता बगलामुखी की साधना करवाई, ताकि वे शत्रु सेना पर विजय प्राप्त कर सकें।
माता बगलामुखी में सोलह दिव्य शक्तियाँ समाहित हैं जो, साधकों को अलग-अलग कार्यों में सफलता प्रदान करती हैं। यह शक्तियाँ हैं - मंगल – शुभता का प्रसार, वश्या – वशीकरण की क्षमता, अचलाय – स्थिरता प्रदान करना, मंडरा – आभामंडल का निर्माण, स्तंभिनी – शत्रु की गति रोकना, बलाय – बल एवं शक्ति देना, जृम्भिणि – चेतना का प्रसार, मोहिनी – सम्मोहन शक्ति, भाविका – भक्तिभाव जागृत करना, धात्री – पोषण की शक्ति, कलना – चित्त नियंत्रण, भ्रामिका – भ्रम उत्पन्न करना, कल्पमासा – कल्पवृक्ष के समान फलदायिनी, कालकर्षिणि – समय को नियंत्रित करना, भोगस्थ – भौतिक सुखों की सिद्धि और मंदगमना – धीमे-धीमे प्रभावकारी शक्ति।
माता बगलामुखी की साधना विशेष रूप से रात्रि में किया जाता है। पीले वस्त्र पहनना, पीले आसन पर बैठना, पीली वस्तुओं जैसे हल्दी, पीला पुष्प, चना आदि का उपयोग करना अनिवार्य माना गया है। साधना से पहले हरिद्रा गणपति (रात्रि गणपति) की पूजा की जाती है। साधना के दौरान
“ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा”
मंत्र का 108 बार जाप करने से अद्भुत सिद्धि की प्राप्ति होती है।
आज भी राजनीतिक नेता, वकील, अफसर और यहां तक कि आम जनता भी माता बगलामुखी की साधना करते है। विशेष परिस्थितियों में जब व्यक्ति को मानसिक शक्ति, साहस, और त्वरित निर्णय की आवश्यकता होती है, तो माँ की कृपा अवश्य फल देती है।
माता बगलामुखी न केवल स्तंभन की देवी हैं, बल्कि वह साधक को आत्मबल, संयम, और न्याय की रक्षा करने का संबल भी देती हैं। जो व्यक्ति माता बगलामुखी के साधना, श्रद्धा और नियम से करता है, वह जीवन की कठिनाइयों में न केवल विजय प्राप्त करता है, बल्कि आत्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर होता है।
मां बगलामुखी के प्रसिद्ध मंदिरों में मध्यप्रदेश के नलखेड़ा जिला के शाजापुर स्थित लखुंदर नदी के किनारे द्वापर युगीन राजा युधिष्ठिर द्वारा स्थापित माता बगलामुखी मूर्ति एवं मंदिर, दतिया जिले के दतिया, छत्तीसगढ़ के राज नांद गांव जिला स्थित वनखंडी, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला स्थित वनखंडी , बंगाल के कोलकाता, दुर्गापुर, बेलदंग, बिहार के गया, मुजफ्फरपुर, गोनपुरा, झारखंड के रांची, मेरहिया, उत्तरप्रदेश के मंडी एवं काशी शामिल है।