भारत में अचानक मौसम परिवर्तन

Jitendra Kumar Sinha
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अचानक मौसम में बदलाव: हालिया उदाहरण

उत्तर भारत जैसे दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अप्रैल के महीने में भारी ओलावृष्टि और तेज़ हवाओं ने फसलों को बर्बाद कर दिया। मध्य भारत में गर्मी के सीज़न में अचानक तेज़ बारिश और आंधी ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर दिया।

दक्षिण भारत जैसे तमिलनाडु और केरल में सामान्य से अधिक गर्मी के बाद अचानक बादल छा जाना और गरज के साथ बारिश होना चिंता का कारण बना। पूर्वोत्तर भारत में असामान्य बाढ़ और भूस्खलन जैसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं।




इसके पीछे के मुख्य कारण

जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, जिससे मौसम का संतुलन बिगड़ रहा है। वायुमंडल में अधिक नमी और असामान्य तापमान बदलाव मौसम को अप्रत्याशित बना देते हैं।

वनों की कटाई और शहरीकरण
पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और कंक्रीट के जंगलों की बेतहाशा वृद्धि ने वातावरण में गर्मी और प्रदूषण बढ़ा दिया है, जिससे स्थानीय मौसम प्रणाली प्रभावित हो रही है।

औद्योगिक प्रदूषण
वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाला कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें वातावरण में असंतुलन पैदा कर रही हैं।

पानी के स्रोतों का ह्रास
नदियों और झीलों का सूखना और भूजल स्तर का गिरना मौसम को और अधिक अनियमित बना देता है।




किसानों और आम लोगों पर प्रभाव

फसलों की बर्बादी से किसानों को भारी नुकसान हो रहा है। खासकर गेहूं और सब्जियों की खेती पर असर पड़ा है। बिजली, पानी और यातायात सेवाओं पर भी असर पड़ रहा है। स्वास्थ्य समस्याएं जैसे वायरल बुखार, सर्दी-खांसी और एलर्जी भी बढ़ रही हैं। यात्रियों और पर्यटकों के लिए यात्रा योजना बनाना मुश्किल हो गया है।




सरकार और आम जनता को क्या करना चाहिए?

सरकार को:
मौसम पूर्वानुमान प्रणाली को और अधिक उन्नत बनाना चाहिए। किसानों को फसल बीमा और क्षतिपूर्ति देना अनिवार्य है। शहरी नियोजन में पर्यावरणीय संतुलन को प्राथमिकता दी जाए।

आम जनता को:
अधिक से अधिक पेड़ लगाएं। प्लास्टिक और प्रदूषण फैलाने वाली वस्तुओं से परहेज़ करें। वर्षा जल संचयन और ऊर्जा की बचत को अपनाएं।




भारत में अचानक मौसम परिवर्तन सिर्फ मौसम की अजीब हरकत नहीं है, यह हमारे पर्यावरणीय असंतुलन और मानवीय गतिविधियों का परिणाम है। यदि हम आज नहीं जागे, तो कल का मौसम सिर्फ अप्रत्याशित ही नहीं, बल्कि विनाशकारी भी हो सकता है। समय आ गया है कि हम अपनी धरती से संवाद करें, न कि केवल उसका उपयोग।


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