ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बलोचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा और संसाधनों से भरपूर प्रांत है, लेकिन दशकों से यहां अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। बलोच अलगाववादी पाकिस्तान सरकार पर शोषण, मानवाधिकार उल्लंघन और स्थानीय जनता को विकास से वंचित रखने के आरोप लगाते रहे हैं।
1948 में जब पाकिस्तान ने बलोचिस्तान को जबरन अपने नियंत्रण में लिया, तब से ही यहां आज़ादी की मांग उठती रही है। कई बार आंदोलन हिंसक रूप ले चुके हैं, और पाकिस्तानी सेना पर बलोच नागरिकों के "लापता" होने के गंभीर आरोप लगे हैं।
भारत और अंतरराष्ट्रीय समर्थन की अपील
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, अमेरिका और अन्य लोकतांत्रिक देशों से भी अपील की कि बलोचिस्तान के लोगों को आत्मनिर्णय का अधिकार दिलाने में मदद करें।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान सरकार की ओर से इस पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने बलोचिस्तान में इंटरनेट सेवाएं सीमित कर दी हैं और सैनिक गतिविधियों को तेज़ कर दिया गया है।
पाकिस्तान बार-बार बलोच आंदोलन को विदेशी साजिश करार देता आया है और भारत पर इस आंदोलन को समर्थन देने का आरोप लगाता रहा है।
भारत की स्थिति
भारत सरकार की ओर से भी इस पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन भारत पहले से ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलोचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार हनन की बात उठाता रहा है। 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से बलोचिस्तान का उल्लेख कर इस मुद्दे को वैश्विक स्तर पर उठाने की दिशा में पहला बड़ा कदम उठाया था।
आगे क्या?
बलोचिस्तान की आज़ादी की घोषणा पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता के लिए सीधा चुनौती है। यह देखना अब अहम होगा कि भारत और अन्य देश इस पर क्या रुख अपनाते हैं। वहीं, बलोच नेताओं की सुरक्षा, समर्थन और रणनीति आने वाले दिनों में इस आंदोलन की दिशा तय करेगी।
बलोचिस्तान की यह घोषणा एक ऐसे समय पर आई है जब पाकिस्तान पहले ही आंतरिक अस्थिरता, आर्थिक संकट और अंतरराष्ट्रीय दबाव से जूझ रहा है। यदि इस आंदोलन को वैश्विक समर्थन मिलता है, तो यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ा कूटनीतिक और राजनीतिक झटका हो सकता है।