भारत और पाकिस्तान के बीच - सीजफायर - शांति का सौदा या अस्थायी विराम?

Jitendra Kumar Sinha
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भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम (Ceasefire) को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है। 10 मई 2025 को दोनों देश भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम को लागू करने का फैसला लिया है, जिसे 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद कूटनीतिक प्रयासों की एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि क्या यह संघर्ष विराम स्थायी होगा? क्या पाकिस्तान पिछली गलतियों से कुछ सीखेगा? क्या भारत की सीमाएं वाकई अब सुरक्षित रहेगी?

संघर्ष विराम या 'सीजफायर' एक ऐसा समझौता होता है जिसमें दो युद्धरत पक्ष (भारत और पाकिस्तान) किसी विशेष सीमित अवधि या अनिश्चितकाल के लिए हथियारबंद संघर्ष को रोकने पर सहमत होते हैं। यह एक अंतरराष्ट्रीय कूटनीति है, जिसका उद्देश्य युद्ध को रोकना, मानवीय संकट टालना और शांति वार्ता के लिए मार्ग खोलना होता है।

सीजफायर केवल सैन्य दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि मानवीय और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। पाकिस्तान की ओर से जब भी गोलाबारी होता है, तो सबसे अधिक नुकसान सीमावर्ती भारतीय गांवों और नागरिकों को उठाना पड़ता है। स्कूल बंद हो जाते हैं, फसलें चौपट हो जाती हैं, और लोगों को बंकरों में रहना पड़ता है। सीमा पर घायल सैनिकों और नागरिकों तक बिना संघर्ष विराम के राहत पहुंचाना लगभग असंभव हो जाता है। यह समझौता ऐसे समय में जीवनदायिनी भूमिका निभाता है। संघर्ष विराम लागू होने के बाद दोनों देशों के बीच वार्ता की गुंजाइश बनती है। यह द्विपक्षीय संबंधों को बेहतर करने की दिशा में पहला कदम होता है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, चीन जैसे वैश्विक ताकतें अक्सर भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर चिंता जताती रही हैं। संघर्ष विराम इन शक्तियों की निगाह में कूटनीतिक जिम्मेदारी निभाने का संकेत देता है।

भारत और पाकिस्तान ने नवंबर 2003 में पहली बार नियंत्रण रेखा पर औपचारिक संघर्ष विराम समझौता किया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच यह सहमति बनी थी। शुरुआती वर्ष 2003–2006 की अवधि में संघर्ष विराम का व्यापक रूप से पालन हुआ। सीमावर्ती नागरिकों ने राहत की सांस ली। कश्मीर घाटी में पर्यटकों की संख्या बढ़ी, और नियंत्रण रेखा पर रिश्तेदारों की आवाजाही बढ़ी। लेकिन 2007 के बाद उल्लंघनों में वृद्धि हुई। पाकिस्तान की राजनीतिक अस्थिरता और आईएसआई एव पाकिस्तान सेना की मिलीभगत से संघर्ष विराम का उल्लंघन बढ़ने लगा। सूत्रों के अनुसार, वर्ष 2019 में 3,289 बार, 2020 में 5,133 बार और 2024 में 300 से अधिक बार सीजफायर तोड़ा गया। 25 फरवरी 2021 को भारत और पाकिस्तान ने एक बार फिर संघर्ष विराम समझौता किया, जिसके बाद 2021 में केवल 6 उल्लंघन दर्ज हुए। लेकिन 2024 में हालात फिर बिगड़े और अब 2025 की पहली तिमाही में 50 बार सीजफायर उल्लंघन हो चुका है।

भारत ने 2025 में 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की। यह ऑपरेशन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की आतंकवाद विरोधी नीति का उदाहरण बन गया। इसके बाद 10 मई 2025 को दोनों देशों ने संघर्ष विराम को फिर लागू करने पर सहमति जताई।

नई पहल में कुछ बिंदुओं पर विशेष जोर दिया गया है, जिसमें सीमा पर निगरानी तंत्र मजबूत करना, सैन्य संपर्क माध्यमों को पुनः सक्रिय करना, सिविलियन बस्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और रोजाना रिपोर्टिंग की व्यवस्था शामिल था।

पाकिस्तान एक ओर कूटनीतिक मंचों पर शांति की बात करता है, तो दूसरी ओर अपनी सेना और आईएसआई के जरिए आतंकवाद और गोलीबारी को बढ़ावा देता है। यह दोहरा रवैया संघर्ष विराम की सबसे बड़ी बाधा है।अक्सर पाकिस्तान संघर्ष विराम का उल्लंघन आतंकी घुसपैठ को कवर देने के लिए करता है। भारत की सतर्क सेना जब घुसपैठ को रोकती है, तो पाकिस्तान गोलीबारी करके ध्यान भटकाता है। कई बार पाकिस्तान की सेना अपने देश में चल रहे राजनीतिक असंतोष से जनता का ध्यान हटाने के लिए भी भारत से टकराव बढ़ाती है।

सीमा पर बसे गांवों जैसे पुंछ, राजौरी, तंगधार, उरी, केरन, सांबा, कठुआ के लोगों के लिए संघर्ष विराम जीवन और मृत्यु के बीच की दीवार है। इनके जीवन में यह कुछ अहम बदलाव लाता है। इसके तहत बच्चों की पढ़ाई बिना खौफ के होती है, खेतों में किसान दोबारा लौटते हैं, बाजार और मंदिर-मस्जिदों में चहल-पहल लौटती है, व्यापारिक गतिविधियाँ सामान्य होती हैं और पलायन की नौबत नहीं आती है।

भारतीय सेना संघर्ष विराम के पालन की निगरानी करती है। सेना के जनरल लेवल संपर्क और ब्रिगेड कमांडरों के बीच हॉटलाइन की सुविधा से मिसअंडरस्टैंडिंग को कम करने की कोशिश की जाती है। BSF अंतरराष्ट्रीय सीमा पर निगरानी करती है और नागरिक सुरक्षा में अग्रणी भूमिका निभाती है। भारत हमेशा संघर्ष को द्विपक्षीय मानता है, फिर भी संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षण समूह (UNMOGIP) सीमित भूमिका निभाता है।

पाकिस्तान कई बार संघर्ष विराम की बात करता तो है लेकिन ग्राउंड पर कुछ और करता है। इस वजह से भरोसे का संकट हमेशा बना रहता है। सोशल मीडिया पर फर्जी वीडियो के माध्यम से उकसाने की कोशिशें सीजफायर को खतरे में डालती हैं।

भारत के लिए संघर्ष विराम तभी सफल हो सकता है जब पाकिस्तान आतंकवाद को सरकारी नीति से अलग कर दे। आईएसआई पर नियंत्रण रखे। भारत की सैन्य क्षमताओं को जवाबी रूप में प्रकट किया जाए, तकनीकी निगरानी (ड्रोन, सेंसर, सैटेलाइट) का विस्तार हो और नागरिक समाजों के बीच संवाद को बढ़ावा दिया जाए।

भारत-पाकिस्तान संघर्ष विराम को लेकर अब एक बार फिर उम्मीद जगी है। लेकिन यह उम्मीद तभी टिक पाएगी जब पाकिस्तान अपने पूर्ववर्ती इतिहास से कुछ सीखेगा। संघर्ष विराम कोई अंत नहीं, बल्कि शांति की दिशा में पहला कदम होता है। यदि इस पर भरोसा और सख्ती से अमल हो, तो कश्मीर घाटी से लेकर राजस्थान की रेगिस्तानी सीमा तक, जीवन फिर से मुस्कुरा सकता है।

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