अभी कुछ ही समय पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया। उन्होंने कहा, “मैंने भारत और पाकिस्तान से कहा कि अगर आप युद्ध रोक देंगे, तो हम आपके साथ बहुत सारा व्यापार करेंगे, और अगर आप नहीं रुकते तो हम व्यापार नहीं करेंगे, और अचानक, उन्होंने युद्ध रोक दिया।" अब, यह बयान सच में एक बम की तरह था, लेकिन क्या यह सब इतना आसान था?
सच कहें तो, यह बयान ट्रंप की "मैं ही हूं" वाली मानसिकता को साफ दर्शाता है। यह मानवीय हद तक बेवकूफी भरा और अतिशयोक्तिपूर्ण भी लगता है, जैसे ट्रंप सोचते हैं कि दुनिया के सारे खेल उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमते हैं। दरअसल, उनका ये बयान इस बात का प्रतीक है कि वे खुद को किसी मुख्य पात्र से कम नहीं समझते।
"ब्रदर, ये क्या कह रहे हो?"
ट्रंप का यह बयान बिल्कुल उस समय की तरह है जब कोई व्यक्ति खुद को फिल्म का नायक समझता है और सोचता है कि उसकी एक बात से दुनिया बदल सकती है। वो सीन कुछ ऐसा होता है, "कोई और बात नहीं कर सकता, मैंने कहा है तो वही होगा!" बस, यही ट्रंप की "मुख्य पात्र मानसिकता" का परफेक्ट उदाहरण है।
दरअसल, यहां मामला युद्ध या व्यापार का नहीं है, बल्कि इस बयान में उस मानसिकता को देखा जा सकता है, जहां किसी और का योगदान मायने नहीं रखता, केवल वही एक अहम और अंतिम फैसला लेने वाला होता है। यह पूरी तरह से ट्रंप की खुद को सभी घटनाओं का केन्द्र मानने की प्रवृत्ति का हिस्सा है। जैसे कि, “अगर मैंने कह दिया तो सब कुछ ठहर जाएगा!”
भारत और पाकिस्तान के लिए कोई समझौता नहीं, बस एक ‘बॉय’ शो
भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों से युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। कई प्रयास हुए हैं, लेकिन कई तरह की राजनीतिक और कूटनीतिक परिस्थितियां इससे कहीं जटिल हैं। फिर, ट्रंप का यह कहना कि उन्होंने "बोला और सब ठंडा हो गया" थोड़ी बचकानी सी बात लगती है। जैसे फिल्म के हीरो का डायलॉग हो, “यह मेरा काम है, बाकी सब फ्लॉप है।”
यह बयानी तो ऐसा लगता है जैसे मुख्य पात्र (यहां ट्रंप) का कमाल हो और बाकि सभी के प्रयासों को नजरअंदाज किया जा रहा हो। भारत और पाकिस्तान का युद्ध रोकने का श्रेय केवल किसी एक व्यक्ति को देना, वो भी ऐसी घटना के लिए जो दशकों से चल रही हो, निश्चित रूप से 'मैं ही हूं' मानसिकता को ही दर्शाता है।
आखिरकार, नरेंद्र मोदी की 8 बजे की बातचीत
अब, जिस समय ट्रंप ने यह बम गिराया, नरेंद्र मोदी का 8 बजे राष्ट्र को संबोधन भी काफी महत्वपूर्ण था। जहां एक तरफ ट्रंप ने अपनी भूमिका को कुछ इस तरह परिभाषित किया कि “अगर मैंने कहा तो सब कुछ रुक जाएगा", वहीं मोदी के संबोधन में यह व्यक्त किया गया कि युद्ध सिर्फ राजनयिक वार्ता से नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और साहसिक निर्णयों से भी रोका जा सकता है। यहां एक अंतर साफ दिखता है — एक तरफ एक व्यक्ति खुद को सबसे अहम समझ रहा है, और दूसरी तरफ एक राष्ट्र की पूरी शक्ति और नेतृत्व की रणनीति को परिभाषित किया जा रहा है।
मुख्य पात्र की समस्या
ट्रंप का यह बयान इस बात का प्रतीक है कि वह अपनी भूमिका को अधिक बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना चाहते हैं। उनकी हर एक शब्द में यह उम्मीद छिपी रहती है कि उनका प्रभाव और निर्णय सब कुछ बदल सकते हैं। हालांकि, वास्तविकता यह है कि वैश्विक राजनीति इतनी सरल नहीं होती। भारत और पाकिस्तान के बीच शांति और समझौते का मामला सिर्फ किसी एक व्यक्ति के हाथ में नहीं होता, बल्कि यह पूरी दुनिया के संतुलन और संघर्षों का परिणाम होता है।
“ब्रदर, यह दुनिया सिर्फ एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द नहीं घूमती," शायद यही सिखाने की जरूरत है।