शशि थरूर को मोदी सरकार ने सौंपी बड़ी जिम्मेदारी, बोले – "मेरी पार्टी को इसमें कोई आपत्ति नहीं"

Jitendra Kumar Sinha
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और सांसद डॉ. शशि थरूर एक बार फिर चर्चा में हैं, लेकिन इस बार कारण राजनीति की अपेक्षा सौहार्द और सहयोग की मिसाल बनकर उभरा है। नरेंद्र मोदी सरकार ने उन्हें एक महत्वपूर्ण संसदीय समिति की जिम्मेदारी सौंपी है, जिसे लेकर खुद थरूर ने भी स्पष्ट किया है कि उनकी पार्टी कांग्रेस को इस पर कोई आपत्ति नहीं है।


कौन-सी है यह जिम्मेदारी?

मोदी सरकार ने शशि थरूर को 'नेशनल एकेडमिक काउंसिल ऑन रिसर्च एंड इनोवेशन' (राष्ट्रीय अनुसंधान एवं नवाचार परिषद) के सदस्य के रूप में नामित किया है। यह परिषद देश में शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार से जुड़ी नीतियों को दिशा देने का कार्य करती है और इसके सदस्य विशेषज्ञता, अनुभव और सार्वजनिक सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान देने वालों में से चुने जाते हैं।

थरूर जैसे अनुभवी सांसद और संयुक्त राष्ट्र में वर्षों की सेवा देने वाले व्यक्ति को इस परिषद में शामिल किया जाना एक बड़ा कदम माना जा रहा है।


थरूर की प्रतिक्रिया

थरूर ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा:

"यह एक सम्मान की बात है कि मुझे सरकार द्वारा इस समिति में सेवा देने के लिए नामित किया गया है। मेरी पार्टी के नेतृत्व को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि यह राजनीतिक नहीं बल्कि नीति और नवाचार से जुड़ा विषय है।"

यह बयान एक सकारात्मक संकेत है कि जब देशहित की बात हो, तो राजनीति से ऊपर उठकर काम करना चाहिए — और थरूर का यह रुख निश्चित रूप से इस भावना को प्रोत्साहित करता है।


कांग्रेस पार्टी की चुप्पी या सहमति?

जहां कई बार विपक्ष के नेताओं को सरकार की समितियों में शामिल किए जाने पर सवाल खड़े होते हैं, वहीं कांग्रेस पार्टी की ओर से थरूर की नियुक्ति को लेकर कोई विरोध या बयान सामने नहीं आया है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने इसे एक "गैर-राजनीतिक" और "विवेकपूर्ण" कदम मानते हुए सहमति दी है।


राजनीतिक संदेश क्या है?

मोदी सरकार का यह कदम कहीं न कहीं यह भी दर्शाता है कि वह योग्य लोगों को राजनीति से ऊपर उठकर जिम्मेदारियां देने में विश्वास रखती है। दूसरी ओर, थरूर जैसे नेता का स्वीकार करना कि पार्टी को आपत्ति नहीं है, भारतीय राजनीति में एक संतुलित सोच और सौहार्द की मिसाल पेश करता है।

यह घटना उन आवाज़ों को भी शांत करती है जो हमेशा यह कहते हैं कि भारतीय राजनीति अब पूरी तरह ध्रुवीकृत हो चुकी है। यह दर्शाता है कि अभी भी संवाद और सहयोग की गुंजाइश बाकी है।


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