बिहार की राजनीति में जातीय जनगणना को लेकर चल रही बहस ने एक नया मोड़ ले लिया है। पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय एमएसएमई मंत्री जीतन राम मांझी ने हाल ही में राजद नेता तेजस्वी यादव पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने तेजस्वी से सवाल किया कि "तीस साल पहले बिहार और केंद्र में किसकी सरकार थी?" मांझी का यह बयान राजद द्वारा जातीय जनगणना का श्रेय लेने के प्रयासों के खिलाफ आया है।
तेजस्वी यादव ने दावा किया था कि उनकी पार्टी पिछले तीस वर्षों से जातीय जनगणना की मांग कर रही है और यह उनकी सरकार के दबाव का परिणाम है कि केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया। इसके जवाब में मांझी ने कहा कि यदि राजद वास्तव में इस मुद्दे पर गंभीर होती, तो अपने शासनकाल के दौरान ही जातीय जनगणना करवा सकती थी। उन्होंने आरोप लगाया कि राजद केवल "चिल्लाने" में विश्वास रखती है, जबकि वास्तविक कार्रवाई से दूर रहती है।
मांझी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने जातीय जनगणना का निर्णय लेकर एक साहसिक कदम उठाया है, जिससे देश के पिछड़े वर्गों का कल्याण होगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सर्वदलीय बैठक के बाद राज्य सरकार ने जातीय सर्वेक्षण कराया, जो अब राष्ट्रीय स्तर पर जातीय जनगणना के निर्णय का आधार बना।
यह बयानबाजी बिहार की राजनीति में जातीय जनगणना के मुद्दे पर बढ़ती प्रतिस्पर्धा को दर्शाती है। जहां एक ओर राजद इसे अपनी जीत के रूप में प्रस्तुत कर रही है, वहीं मांझी जैसे नेता इसे केंद्र सरकार की पहल मानते हैं और विपक्ष पर केवल श्रेय लेने का आरोप लगाते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह बहस किस दिशा में जाती है और इसका बिहार की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है।