भारत-पाक सीमा पर तैनात रहने वाले हमारे जवान न सिर्फ दुश्मन से देश की रक्षा करते हैं, बल्कि अगर कभी दुर्भाग्यवश सीमा पार चले जाएं, तो वहां कैसी यातना झेलते हैं, इसकी मिसाल हाल ही में सामने आई एक BSF जवान की दर्दनाक कहानी है। यह जवान पाकिस्तान से वापस तो लौटा, लेकिन अब भी अपने घर नहीं पहुंच सका — और उसके साथ जो हुआ, वह सुनकर किसी का भी खून खौल उठे।
सीमा पार कैसे पहुंचा जवान?
BSF जवान कृष्ण कुमार, जो राजस्थान के बीकानेर सेक्टर में तैनात थे, गलती से पाकिस्तान की सीमा में चले गए थे। आमतौर पर ऐसे मामलों में एक निर्धारित प्रक्रिया के तहत जवानों को वापस सौंपा जाता है, लेकिन इस बार मामला अलग था। कृष्ण कुमार को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने पकड़ लिया और फिर जो हुआ, वह मानवाधिकारों की खुली धज्जियां उड़ाने वाला था।
जुल्मों की कहानी: न खाना, न पानी, बस अत्याचार
कृष्ण कुमार ने बताया कि उन्हें पाकिस्तानी एजेंसियों ने कई दिनों तक बंधक बनाकर रखा। उन्हें पीटा गया, मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, और एक बार भी यह नहीं बताया गया कि उन्हें रिहा कब किया जाएगा। उन्हें खाना ठीक से नहीं दिया गया, पानी तक नसीब नहीं होता था। हर रोज़ एक ही सवाल – “भारत की फौज क्या प्लान बना रही है?” लेकिन हमारे जवान ने अपनी वफादारी में एक लकीर तक पार नहीं की।
वापसी हुई, लेकिन सम्मान नहीं
काफी दबाव और भारत सरकार की कोशिशों के बाद पाकिस्तान ने अंततः कृष्ण कुमार को लौटाया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि भारत लौटने के बाद भी उन्हें तुरंत अपने घर नहीं जाने दिया गया। सुरक्षा और जांच के नाम पर उन्हें अलग स्थान पर रखा गया, जहां उनसे पूछताछ जारी है। ऐसे में सवाल उठता है — क्या देश के लिए जान जोखिम में डालने वाले जवान को यह सुलूक मिलना चाहिए?
परिवार की पीड़ा और इंतज़ार
कृष्ण कुमार के परिवार वाले पिछले कई दिनों से बेसब्री से उनके लौटने का इंतजार कर रहे थे। मां की आंखें बेटे की राह तकते-तकते सूख गईं, लेकिन आज जब वो लौटा भी है, तब भी उसे गले लगाने का मौका नहीं मिला। पिता की एक ही मांग है — "हमें हमारा बेटा बिना किसी देरी के घर चाहिए।"
यह घटना हमें एक गहरा सबक देती है — हमारे जवान सिर्फ सीमा पर नहीं, कूटनीतिक और मानसिक मोर्चों पर भी लड़ रहे हैं। पाकिस्तान में हुए अत्याचारों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ध्यान देना चाहिए। और सबसे जरूरी बात, अपने घर लौटे वीर सपूत को सम्मान, सुरक्षा और आराम मिलना चाहिए — न कि पूछताछों की लंबी कतार।