कर्नाटक के ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में गुलिगा को एक शक्तिशाली देवता के रूप में पूजा जाता है। यहाँ गुलिगा केवल एक राक्षस या दैत्य नहीं, बल्कि एक सुरक्षात्मक और न्यायप्रिय देवी-देवता की तरह सम्मानित होता है। इसकी पूजा लोककथाओं, लोकनाट्यों और पारंपरिक कर्मों के माध्यम से की जाती है।
गुलिगा पूजा का महत्व
गुलिगा पूजा खासकर तुळु, कन्नड़ और कुछ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में व्यापक है। इसे ‘गुलिगा देवता’ के नाम से जाना जाता है, जो क्षेत्रीय जनता की रक्षा करता है। मान्यता है कि गुलिगा बुरे आत्माओं और शत्रुओं से रक्षा करता है और अपने भक्तों को सुरक्षा, समृद्धि और न्याय प्रदान करता है।
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रक्षा और सुरक्षा का प्रतीक: ग्रामीण इलाकों में जहां प्राकृतिक आपदाएं, जानवरों का हमला और अन्य खतरे अधिक होते हैं, वहां गुलिगा की पूजा को एक सुरक्षा कवच माना जाता है।
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न्याय और सच्चाई का संरक्षक: कई कहानियों में गुलिगा को न्याय दिलाने वाला देवता बताया गया है, जो अन्याय करने वालों को दंडित करता है।
गुलिगा पूजा के अनुष्ठान
गुलिगा पूजा में लोकनाट्य ‘भूत और दैत्य नाटक’ (यथा ‘येलु मणगल्लू’ या ‘येलु देवता’) बहुत प्रसिद्ध हैं। इन नाटकों में कलाकार गुलिगा की भूमिका निभाते हैं और देवी-देवताओं तथा दैत्य-राक्षसों के बीच युद्ध दर्शाते हैं। ये नाटक केवल मनोरंजन के लिए नहीं होते, बल्कि धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक शिक्षा का माध्यम होते हैं।
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मुख्य अनुष्ठान: पूजा में गुलिगा की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाए जाते हैं, विभिन्न भजन और मंत्र पढ़े जाते हैं।
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सांस्कृतिक उत्सव: ये पूजा और नाटक खासकर बरसात के मौसम में किए जाते हैं, जो खेती और समृद्धि के लिए शुभ माने जाते हैं।
लोकविश्वास और कहानियाँ
गुलिगा से जुड़ी कई लोककथाएँ हैं, जिनमें बताया जाता है कि कैसे उसने अपने भक्तों की रक्षा की और बुराई पर विजय पाई। कई बार उसे धरती का संरक्षक, बाढ़ और प्राकृतिक आपदाओं का नियंत्रण करने वाला माना जाता है।
आधुनिक युग में गुलिगा की पूजा
हालांकि शहरीकरण और आधुनिकता ने कई पारंपरिक प्रथाओं को प्रभावित किया है, फिर भी कर्नाटक के कई क्षेत्रों में गुलिगा पूजा जीवित है। वहां के लोग इसे अपनी सांस्कृतिक पहचान और आत्मिक शांति का स्रोत मानते हैं।
कर्नाटक में गुलिगा केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में सुरक्षा, न्याय और समृद्धि का प्रतीक है। उसकी पूजा और उससे जुड़ी लोककथाएँ हमें हमारी सांस्कृतिक विरासत से जोड़ती हैं और पारंपरिक विश्वासों की ताकत दिखाती हैं। गुलिगा के माध्यम से लोकजन आज भी अपने जीवन की अनिश्चितताओं और भय से लड़ने की प्रेरणा लेते हैं।