भारतीय वायुसेना के शौर्य और साहस की मिसाल ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में एक और अध्याय जुड़ गया—आस्था और संस्कृति का। एयर मार्शल ए.के. भारती ने जब रामचरितमानस की चौपाई उद्धृत की:
'बिनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत
बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीत.
तो वह केवल एक धार्मिक उद्धरण नहीं था, वह था इस राष्ट्र के हर वीर सैनिक की आत्मा की प्रतिध्वनि।
लेकिन अफसोस, आजकल देश की मूल भावनाओं—धर्म, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति—को कुछ तथाकथित प्रगतिशील वर्गों द्वारा लगातार हिकारत से देखा जाता है। उन्हें शायद यह समझ नहीं आता कि भारत की सैन्य शक्ति सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि उस नैतिक संबल से भी संचालित होती है जो हजारों वर्षों पुरानी हमारी संस्कृति से आता है।
ऑपरेशन सिंदूर, जहां भारतीय वायुसेना ने दुर्गम परिस्थितियों में जान की बाजी लगाकर 71 महिलाओं को बचाया, कोई साधारण रेस्क्यू मिशन नहीं था। यह भारत की 'नारी तू नारायणी' की भावना का सजीव उदाहरण था। यह था उस राष्ट्र की परिभाषा, जहां वीरता का अर्थ सिर्फ गोली नहीं, बल्कि गरिमा भी है।
एयर मार्शल भारती का रामचरितमानस से उद्धरण कोई संयोग नहीं, यह एक स्पष्ट संदेश था—भारतीय सेना केवल शरीर से नहीं, आत्मा से भी लड़ती है। यह वही सेना है जो धर्म, सत्य और वचन की मर्यादा के लिए प्राण तक दे सकती है। यह वही भावना है जिसने भगत सिंह, रानी लक्ष्मीबाई, और अब ऑपरेशन सिंदूर के वीरों को इतिहास में अमर कर दिया।
जो लोग इस तरह के उद्धरणों पर "सेक्युलरिज्म" की आड़ में सवाल उठाते हैं, उन्हें पहले यह समझना चाहिए कि भारत की असली ताकत उसकी विविधता नहीं, उसकी जड़ों से जुड़ी एकता है। हमारी संस्कृति, हमारे शास्त्र और हमारे ग्रंथ इस देश की आत्मा हैं। जब कोई योद्धा इन्हें याद करता है, तो वह सिर्फ आस्था नहीं, संकल्प की बात करता है।
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य मिशन नहीं था—यह था भारत के मूल्यों, नारी सम्मान, और आध्यात्मिक शक्ति का संगम। एयर मार्शल भारती ने यह साबित कर दिया कि भारतीय वायुसेना न सिर्फ दुश्मनों का विनाश कर सकती है, बल्कि संस्कृति का सम्मान भी सीना ठोक कर करती है। ऐसे में जो लोग इस पर सवाल उठाते हैं, उनसे यही कहा जा सकता है:
"संस्कारों की सेना से लड़ने से पहले, संस्कारों को समझो।"