एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र को संबोधित करने वाले हैं—एक ऐसा क्षण जो हर भारतीय के लिए उम्मीद, दिशा और नेतृत्व का प्रतीक होता है—और दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी (AAP) के राज्यसभा सांसद संजय सिंह एक बार फिर अपने बेमतलब और हल्के बयान से सस्ती राजनीति का स्तर और गिरा देते हैं।
प्रधानमंत्री का संबोधन किसी भी लोकतांत्रिक देश में एक गंभीर, गरिमापूर्ण अवसर होता है। लेकिन संजय सिंह जैसे नेताओं के लिए यह एक और मौका बन जाता है घटिया चुटकुलेबाजी और ट्विटर पर सस्ता प्रचार करने का। क्या उन्होंने यह सोचने की ज़हमत भी उठाई कि इस देश का आम नागरिक प्रधानमंत्री के संदेश को लेकर गंभीर होता है? क्या उन्हें इस बात की समझ है कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि क्या है? शायद नहीं, क्योंकि जब राजनीतिक सोच की गहराई हो शून्य, तो शब्द भी उतने ही हल्के निकलते हैं।
संजय सिंह ने जिस अंदाज में प्रधानमंत्री की घोषणा को लेकर ट्वीट किया, वह न सिर्फ अमर्यादित था, बल्कि देश की लोकतांत्रिक गरिमा का अपमान भी था। लोकतंत्र में आलोचना का अधिकार सभी को है, लेकिन आलोचना और तुच्छ टिप्पणियों में फर्क होता है। जब एक राज्यसभा सांसद की भाषा गली के स्तर पर उतर आए, तो यह न केवल उनकी सोच को दर्शाता है बल्कि उस पार्टी की भी पोल खोल देता है जिसका वह प्रतिनिधित्व करते हैं।
प्रधानमंत्री का संबोधन मजाक नहीं है। यह देश की नीति, दिशा और भावी रणनीति को तय करता है। यह वह क्षण होता है जब पूरा देश एक नेता की बात सुनता है, जिसे उसने पूर्ण बहुमत से चुना है। लेकिन संजय सिंह जैसे नेताओं के लिए यह एक तमाशा है, क्योंकि उनके पास खुद कहने को कुछ नहीं होता, न कोई दृष्टि होती है, न ही कोई विचारधारा।
आज देश को विपक्ष की जरूरत है—मजबूत, विचारशील, और राष्ट्रहित में सोचने वाले विपक्ष की। लेकिन संजय सिंह जैसे नेताओं की वजह से विपक्ष मज़ाक बनता जा रहा है। ऐसे नेता अगर संसद में बैठते हैं, तो यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्य है।