वक्फ (सुधार) अधिनियम, 2025: सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर अंतरिम आदेश सुरक्षित रखा

Jitendra Kumar Sinha
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सुप्रीम कोर्ट ने 22 मई 2025 को वक्फ (सुधार) अधिनियम, 2025 पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करते हुए अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तीन दिनों तक चली सुनवाई के बाद यह निर्णय लिया। याचिकाकर्ताओं में वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, राजीव धवन और अभिषेक मनु सिंघवी शामिल थे, जबकि केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा ।


याचिकाकर्ताओं की मुख्य आपत्तियाँ

याचिकाकर्ताओं ने वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों के खिलाफ तीन प्रमुख बिंदुओं पर अंतरिम राहत की मांग की:

  1. क्या 'वक्फ बाय यूज़र' (लंबे समय से धार्मिक या धार्मिक उद्देश्य से उपयोग की जाने वाली संपत्तियाँ) को हटाया जा सकता है?

  2. राज्य वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना में केवल मुसलमानों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया गया है, क्या यह संविधान के अनुच्छेद 15 और 25 का उल्लंघन नहीं है?

  3. वह प्रावधान जिसमें जिला कलेक्टर को सरकारी भूमि की पहचान करने का अधिकार दिया गया है, क्या यह वक्फ संपत्तियों के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करता?


केंद्र सरकार का पक्ष

केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा कि वक्फ इस्लाम का एक धार्मिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक अवधारणा है। इसलिए, इसके प्रबंधन में राज्य का हस्तक्षेप संविधान के अनुरूप है। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि 'वक्फ बाय यूज़र' को हटाने का उद्देश्य सरकारी और निजी संपत्तियों की अनधिकृत कब्जेदारी को समाप्त करना है, न कि धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करना ।


न्यायालय की टिप्पणी

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक कोई मजबूत और स्पष्ट कानूनी आधार नहीं होता, तब तक अदालतें विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करतीं। यह टिप्पणी संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत संसद द्वारा पारित कानूनों की वैधता के प्रति न्यायपालिका की सामान्य प्रवृत्ति को दर्शाती है ।


आगामी प्रक्रिया

सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया है और मामले पर अंतिम निर्णय आने में कुछ समय लग सकता है। इस निर्णय का प्रभाव देशभर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन, मुस्लिम धार्मिक संस्थाओं की स्वायत्तता और राज्य के हस्तक्षेप की सीमाओं पर पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता, संपत्ति अधिकार और प्रशासनिक नियंत्रण के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा।

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