पटना स्थित आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी पहल की है। अब कैंसर और डायबिटीज जैसी जटिल बीमारियों के इलाज में आयुर्वेद और नैनोटेक्नोलॉजी का समन्वय करके नई संभावनाएं तलाशने की दिशा में शोध कार्य शुरू किया गया है। यह अभिनव परियोजना वैद्यनाथ प्राइवेट लिमिटेड और प्राणजीवनी वेलनेस प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से संचालित हो रहा है।
इस शोध का मुख्य उद्देश्य पारंपरिक आयुर्वेदिक औषधियों को अत्याधुनिक नैनोटेक्नोलॉजी की सहायता से और अधिक प्रभावी एवं सुरक्षित बनाना है। नैनोपार्टिकल्स के माध्यम से औषधियों के अणुओं को सीधे प्रभावित अंगों तक पहुंचाना संभव होगा, जिससे कैंसर और मधुमेह जैसी बीमारियों का सटीक और त्वरित उपचार किया जा सकेगा।
परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय के नैनोविज्ञान एवं नैनोप्रौद्योगिकी केंद्र के दो मेधावी विद्यार्थी सिम्पल कुमार सुमन और अनिमेष कुमार को शोध के लिए प्रति माह ₹15,000 की फेलोशिप दिया जाएगा। इसके अलावा, शोध संसाधनों के विकास और प्रयोगशालाओं को उन्नत करने के लिए भी विशेष प्रयास किया जा रहा है।
इस शोध परियोजना की रूपरेखा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शरद कुमार यादव के नेतृत्व में तैयार किया गया है। चयन प्रक्रिया में विशेषज्ञ समिति की भूमिका अहम रही, जिसमें प्रो. प्रभात कुमार द्विवेदी (राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय), प्रमोद शर्मा (निदेशक, प्राणजीवनी वेलनेस प्रा. लि.), और डॉ. राकेश कुमार सिंह (अध्यक्ष, नैनोविज्ञान केंद्र) शामिल थे।
यह पहल न केवल भारत में पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली को वैज्ञानिक रूप से सशक्त बनाएगी, बल्कि यह वैश्विक स्वास्थ्य जगत में भी भारत की भूमिका को मजबूत करेगी। आधुनिक तकनीक और प्राचीन ज्ञान के समन्वय से चिकित्सा पद्धतियों में एक नया अध्याय जुड़ सकता है।
आर्यभट्ट विश्वविद्यालय की यह पहल दर्शाता है कि भारत अब न केवल पारंपरिक ज्ञान का पोषक है, बल्कि उसे वैज्ञानिक आधार पर आधुनिक चिकित्सा पद्धति में परिवर्तित करने का नेतृत्व भी कर सकता है। यदि यह शोध सफल होता है, तो यह चिकित्सा जगत में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने में सक्षम होगा।