सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) राजस्थान फ्रंटियर ने एक ऐसी मिसाल पेश की है जो पर्यावरण संरक्षण, नवाचार और रचनात्मकता का शानदार संगम है। जोधपुर स्थित बीएसएफ मुख्यालय में कबाड़ जैसे अनुपयोगी सामानों से एक बैटरी चालित कार बनाई गई है जिसे रॉल्स रॉयस जैसी भव्यता प्रदान की गई है। यह पहल न केवल पर्यावरण के प्रति जागरूकता दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करता है कि सीमित संसाधनों में भी अत्यधिक प्रभावी नवाचार संभव है।
बीएसएफ द्वारा निर्मित यह बैटरी कार देखने में किसी विदेशी लक्जरी कार से कम नहीं लगता है। इसे रॉल्स रॉयस की डिजाइन की तर्ज पर बनाया गया है। चमचमाती बॉडी, गोल हेडलाइट्स और क्लासिक ग्रिल इसे एक आकर्षक रूप देता हैं। यह कार पूरी तरह से कबाड़ में पड़ी वस्तुओं, जैसे पुराने लोहे के पाइप, खिड़कियों की ग्रिल, पुरानी कुर्सियों के पहिए आदिसे निर्मित किया गया है। इसका निर्माण बीएसएफ कर्मियों द्वारा खुद किया गया है, जिससे यह कार केवल एक वाहन नहीं बल्कि एक प्रेरणादायक उदाहरण बन गया है कि संसाधनों की कमी भी किसी विचारशील दिमाग को रोक नहीं सकता है।
इस कार का उपयोग मुख्यालय परिसर के भीतर ही किया जाता है। जो लोग मुख्य गेट से कैंटीन या क्वार्टर तक पैदल चलते थे, उनके लिए यह कार एक वरदान साबित हो रहा है। यह एक गोल्फ कार्ट की तरह काम करता है और मुख्यालय के कर्मचारियों और आगंतुकों को आरामदायक ढंग से उनके गंतव्य तक पहुंचाता है।बैटरी से संचालित होने के कारण यह कार न केवल प्रदूषण मुक्त है बल्कि संचालन में भी अत्यंत किफायती है। यह बीएसएफ की पर्यावरण के प्रति जागरूकता और हरित ऊर्जा की ओर झुकाव को दर्शाता है।
इस नवाचार का उद्घाटन बीएसएफ राजस्थान फ्रंटियर के महानिरीक्षक एम.एल. गर्ग ने सोमवार को किया था। उद्घाटन अवसर पर उन्होंने बीएसएफ जवानों की इस पहल की सराहना की और कहा कि "यह कार रचनात्मकता और समर्पण का प्रतीक है। ऐसी पहल, न केवल संगठन को मजबूत बनाती हैं बल्कि पर्यावरण और समाज दोनों के लिए लाभकारी होती हैं।"
बीएसएफ की यह पहल आज के युग में एक बड़ा संदेश देता है कि कबाड़ को बेकार न समझें। यदि सोच सकारात्मक और रचनात्मक हो, तो कबाड़ से भी कुछ ऐसा रचा किया जा सकता है जो लोगों को चौंका दे और प्रेरित करे। साथ ही यह पहल सरकारी संस्थानों के भीतर नवाचार की संभावनाओं को भी रेखांकित करता है। बीएसएफ की यह 'रॉयल राइड' सिर्फ एक वाहन नहीं है, बल्कि भारतीय नवाचार, पर्यावरण चेतना और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। जोधपुर में शुरू हुई यह पहल देशभर की अन्य संस्थाओं को भी प्रेरणा देने का काम करेगी।